“या देवी सर्वभूतेषु ज्ञान रूपेण संस्थित :”
भारतीय संस्कृति में स्त्री को शक्ति स्वरुप माना गया है । वह साक्षात ज्ञान रूप, स्मृति रूप, बुद्धि रूप ,लक्ष्मी रूप है। उसके इसी गुण के कारण उसे देवी के रूप में हमारे ऋषियों ने माना है । कुछ दिन पूर्व हमने शक्ति – आराधना का पर्व मनाया ,जहां हम मां की आराधना कर उनसे सहज ही शक्ति और सामर्थ्य मांगी,ताकि हम अपने जीवन में सुख ,शांति और समृद्धि प्राप्त कर सकें ।
शक्ति – आराधना के इस परम पावन पर्व के कुछ दिनों उपरांत हाल ही में डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल की रचना “नारी चेतना की उड़ान “का भव्य लोकार्पण हुआ । शक्ति पर्व का समापन और पुस्तक का लोकार्पण एक अद्भुत संयोग है । इस पुस्तक में कोटा संभाग की 81 लेखिकाओं को स्थान दिया है ।
हाडोती क्षेत्र की महिला रचनाकारों की विशेषताओं को, क्षमताओं को ,लेखन की विविध विधाओं को अत्यधिक बारीकी से रेखांकित किया है । यह पुस्तक इस दृष्टि में भी विशेष उपयोगी रहेगी कि जब भी भविष्य में 21वीं शताब्दी में महिला लेखन की बात होगी ,इस पुस्तक का उदाहरण दिया जाएगा । पुस्तक में लेखक ने अपने सूक्ष्म और गंभीर अन्वेषण दृष्टि से महिला लेखन की जहां बारीकियों को उजागर किया है ,वही उनके जीवन परिचय को भी रेखांकित किया है।
“साहित्य समाज का दर्पण होता है “यह कथन सर्वथा सत्य है। पुस्तक को देखकर भविष्य के पाठक अनुमान लगा सकेंगे ,कि हमारे यहां स्त्री को कितनी प्रतिष्ठा और सम्मान दिया जाता रहा है। वैदिक काल से लेकर वर्तमान काल तक जहां अपाला , गार्गी , मैत्रेई, विश्ववारा, भारती जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख वैदिक काल में मिलता है वर्तमान समाज में भी हम इस परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं।
भारतीय परिवेश गंभीरता और लेखन का उद्देश्य देखता है । मेरे विचार से इस पुस्तक के संकलन और लेखन के पीछे लेखक का मंतव्य शायद यही रहा होगा कि जहां अन्य स्थानों पर आज भी समाज में स्त्री को दोयम दर्जा प्राप्त है, भारतीय समाज में आज भी वह उच्च सोपान पर खड़ी है। सहजता , सरलता और अपने दायित्व – बोध के प्रति समर्पण ही उसको यह सामर्थ्य प्रदान करता है।
वरिष्ठ साहित्यकारों ने उन्हें आगे बढ़ाने में निश्चय ही विशेष योगदान दिया है । अपनी स्नेहमयी दृष्टि से नवोदित और स्थापित लेखिका साहित्यकारों को वे हमेशा प्रोत्साहित करते रहे हैं ।
आदरणीय श्री जितेंद्र निर्मोही जी एक ऐसे साहित्यकार हैं ,जो हमेशा कुछ नवीन चिंतन देने का कार्य करते हैं। इस पुस्तक के लेखन में बीज- रोपन का कार्य आप ही के द्वारा हुआ , और उस विचार को फल रूप में परिणित किया सिंघल सर ने पुस्तक के रूप में ।
” नई चेतना की उड़ान ” आध्यात्मिक हुए बिना संभव नहीं । दैनिक जीवन की जिम्मेदारियां को पूर्ण करती हुई ,घर और परिवार को संभालती हुई स्त्री जब,लेखन के प्रति समर्पित होती है, तब भी उसके अंतःकरण में दायित्व- बोध ही चलता रहता है, क्योंकि उसके लिए प्राथमिकता उसका परिवार ही है। योग दर्शन में इसी को निर्विकल्प समाधि कहा गया है। जब सब कुछ भूल कर केवल अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए आत्मस्थ हो जाती है। महिला लेखिकाओं की चेतना की अभी प्रारंभिक उड़ान है। इसे अभी बहुत आगे तक जाना है।