Tuesday, December 3, 2024
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नैत्रहीनों की दुनिया पर एक सार्थक संवाद

नेत्रहीनों की ज़िंदगी कितनी रोमांचक होती है, उनकी सोच और समस्याएं कैसी होती हैं, आंख वालों से बात करते समय वे कैसा महसूस करते हैं… इसके बारे में नेत्रहीन कवि प्रथम परिश्रुत ने इतने बढ़िया तरीके से सम्वाद किया कि श्रोताओं ने उनकी मुक्त कंठ से तारीफ़ की। रविवार 21 जुलाई को चित्रनगरी सम्वाद मंच मुम्बई की ओर से मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में आयोजित सृजन संवाद में प्रथम ने साबित किया कि वे एक उम्दा शायर होने के साथ-साथ एक बेहतर वक्ता भी हैं।
नेत्रहीनों की अनोखी दुनिया विषय पर सम्वाद करते हुए प्रथम ने श्रोताओं को यह महत्वपूर्ण जानकारी भी दी कि कैसे किसी नेत्रहीन की बांह पकड़ कर उसे सड़क पार कराया जाता है। मगर ऐसा करने से पहले उससे पूछना भी ज़रूरी है कि क्या आपको सड़क पार करनी है। कई श्रोताओं ने प्रथम से सवाल किये। उन्होंने बताया कि 16 साल तक उन्हें दिखाई पड़ता था फिर आंखों की रोशनी चली गई। इसके बावजूद उन्होंने बीए और एलएलबी किया। फिलहाल वे बैंक ऑफ़ इंडिया में कार्यरत हैं।
एक सवाल के जवाब में प्रथम ने बताया कि आवाज़, स्पर्श और ख़ुशबू के आधार पर वे अपने दिमाग़ में किसी इंसान का ख़ाका तैयार करते हैं। इस अवसर पर कथाकार सूरज प्रकाश ने नेत्रहीनों से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रसंग सुनाए। इस चर्चा में कथाकार मधु अरोड़ा, डॉ आर एस रावत, राजेश ऋतुपर्ण और मनोज कुमार ने महत्वपूर्ण भागीदारी की। इस अवसर पर राजू मिश्र कविरा, अर्चना वर्मा और संगीता सिंह ने सामयिक कविताएं सुनाईं। शुरुआत में ‘धरोहर’ के अंतर्गत प्रथम परिश्रुत ने सरहद पार के मशहूर शायर पीर ज़ादा क़ासिम की एक ग़ज़ल तरन्नुम में पेश की। प्रथम के ग़ज़ल पाठ के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
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