मुंबई। कवच एक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली है जिसे भारतीय रेल द्वारा अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (RDSO) के माध्यम से स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। कवच स्वचालित रूप से ब्रेक लगाकर ट्रेनों को निर्दिष्ट गति सीमा के भीतर चलाने में लोको पायलटों की सहायता करता है, तब जब लोको पायलट ऐसा करने में विफल रहता है और खराब मौसम के दौरान ट्रेन को सुरक्षित रूप से चलाने में भी मदद करता है।
पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री विनीत अभिषेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, कवच प्रणाली को आरडीएसओ द्वारा ट्रेनों की गति को 200 किमी प्रति घंटे तक बढ़ाने के लिए डिजाइन किया गया है। यह तकनीक ट्रेनों को उपयुक्त गति से चलाने में सक्षम बनाएगी। यह सिग्नल पासिंग एट डेंजर (SPAD) को रोकने में लोको पायलटों को सहायता करेगी और उन्हें निरंतर गति पर नज़र रखने में सक्षम बनाएगी। सिग्नल के पहलू और गति की हर जानकारी को लोको पायलट के कैब में प्रदर्शित किया जाएगा, जो टकराव के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करेगा। पश्चिम रेलवे पर, 90 लोको के साथ 789 किमी पर कवच प्रणाली का काम किया जा रहा है। कुल 789 किमी में से 405 किमी के लिए लोको परीक्षण सफलतापूर्वक किए गए हैं और 90 में से 60 लोको को इस तकनीक से लैस किया गया है। पश्चिम रेलवे ने इस वित्त वर्ष 2024-25 में 735 किमी पर इसे कमीशन करने का लक्ष्य रखा है।
आगे की जानकारी देते हुए श्री विनीत ने बताया कि विरार-सूरत-वडोदरा (ऑटोमैटिक सिग्नलिंग) सेक्शन पर 336 किलोमीटर में से 201 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है, जबकि वडोदरा-अहमदाबाद (ऑटोमैटिक सिग्नलिंग) सेक्शन पर 96 किलोमीटर की कवच प्रणाली के लोको ट्रायल सफलतापूर्वक पूरे हो चुके हैं। वडोदरा-रतलाम-नागदा (नॉन-ऑटोमैटिक सिग्नलिंग) सेक्शन पर 303 किलोमीटर में से 108 किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। अंतिम परीक्षण के साथ-साथ कमीशनिंग का काम भी प्रगति पर है। इसी तरह, मुंबई सेंट्रल-विरार उपनगरीय (ऑटोमैटिक सिग्नलिंग) सेक्शन के लिए 54 किलोमीटर का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया है और सर्वेक्षण का काम प्रगति पर है।
स्वदेशी रूप से विकसित कवच तकनीक का उद्देश्य भारतीय रेलवे को ‘ज़ीरो एक्डिेंट’ का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद करना है। यह प्रणाली CENELEC मानकों EN50126, 50128, 50129 और 50159 (SIL-4) के अनुरूप है।