Monday, December 23, 2024
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“फिल्म निर्माण प्रक्रिया को रहस्य से मुक्त करना आवश्यक है:” प्रसून जोशी

गोआ। कई बार हमारी कहानी के विचार समय से पहले ही मर जाते हैं, क्योंकि व्यावहारिक और रचनात्मक प्रतिबंधों के कारण हम अपने विचारों में विश्वास खो देते हैं। गोवा में आज इफ्फी 2024 के दौरान ‘मास्टरक्लास द जर्नी फ्रॉम स्क्रिप्ट टू स्क्रीन: राइटिंग फॉर फिल्म एंड बियॉन्ड’ को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध लेखक और गीतकार प्रसून जोशी ने कहा कि इस तरह भारत वह जगह है जहाँ कहानी सामने आने से पहले ही उसकी भ्रूण हत्या हो जाती है।

श्री जोशी ने कहा कि किसी भी कला का निरंतर अभ्यास करने का कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि जब अवसर हमारे दरवाजे पर दस्तक देता है, तब हम उसका अभ्यास शुरू नहीं कर सकते।

“सच्चा कंटेंट भाषा से बंधा नहीं होता और इस तरह से हम कह सकते हैं कि सबसे अच्छी कविता मौन में होती है, क्योंकि मौन एक ऐसी शाश्वत ध्वनि है जो हमें जोड़ती है। मौन ही सर्वोत्तम भाषा है।” श्री जोशी ने आगे कहा कि हमें फिल्म बनाने की प्रक्रिया को रहस्यमय नहीं बनाना चाहिए। फिल्मों में रहस्य हो सकता है लेकिन फिल्म निर्माण प्रक्रिया में नहीं।

विचारों से फिल्म तक के सफर पर बात करते हुए श्री जोशी ने अपने बचपन की घटनाओं का जिक्र किया, जो तारे ज़मीन पर फिल्म के उनके गीतों की प्रेरणा बनीं। प्रसून जोशी ने कहा, “जब आप कोई बहुत ही निजी बात कहते हैं तो वह सार्वभौमिक हो जाती है।”

“मेरी माँ कविता में कठिन शब्दों के मेरे प्रयोग पर टिप्पणी करती थीं, जिससे मेरी लेखन शैली में बदलाव आया और में ऐसा लिखने में सक्षम हुआ जो पाठकों को पसंद आए और जिससे सिर्फ मुझे ही संतुष्टि न मिले।”

रचनात्मक क्षेत्र पर एआई के प्रभाव के बारे में बोलते हुए, गीतकार ने कहा कि “मैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को हल्के में नहीं लेता। यह रचनात्मक क्षेत्रों में सबसे पहले प्रभाव डाल रहा है, जबकि इसे इन क्षेत्रों में बाद में आना चाहिए था। हमें यह याद रखना होगा कि गणित पर केंद्रित जो कुछ भी है , उसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  गणितीय प्रक्रियाओं को तो समझ सकता है, लेकिनअगर किसी की कविता या कहानी किसी सच्चाई से उत्पन्न होती है तो एआई उस अनुभव को नहीं पैदा कर सकता। सीबीएफसी के अध्यक्ष ने कहा कि एआई के हावी होने से रचनाकार प्रभावित हो रहा है, न कि सृजन।

प्रसून जोशी ने यह भी कहा कि हमें कहानी कहने की प्रक्रिया को कुछ बड़े शहरों तक सीमित नहीं रखना चाहिए। उन्होंने क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टूमॉरो (सीएमओटी) का उल्लेख किया करते हुए कहा कि अगर हमें भारत की असली कहानियां दिखानी हैं तो फिल्म निर्माण को देश के सबसे दूरदराज हिस्सों तक पहुंचाना होगा ताकि मुफ़स्सिल इलाकों से कहानीकार उभर सकें। श्री जोशी ने कहा कि हम छोटे शहरों और कस्बों की कहानियों को तब तक प्रभावी ढंग से नहीं बता सकते जब तक कि उन जगहों से फ़िल्म निर्माता नहीं निकलेंगे। अगर आप चाहते हैं कि भारत की सच्ची कहानियाँ सामने आएँ, तो आपको फ़िल्म निर्माण को देश के सबसे दूर के कोने में रहने वाले लोगों तक पहुँचाना होगा।

श्री अनंत विजय ने मास्टरक्लास का संचालन किया।

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