वागीश शुक्ल हिन्दी के उन विरले लेखकों में हैं जो हिन्दी, संस्कृत, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और इन भाषाओं के माध्यम से दूसरी भाषाओं के साहित्य को गहरायी से जानते हैं। वे वर्तमान समय में हिन्दी-साहित्य के सबसे गहरे और तीक्ष्ण ,सिद्धांसतार, आलोचक, निबंधकार एवं उपन्यासकार हैं। उनकी प्रतिभा आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जैसी ही दिखती हैं एक गणितज्ञ को साहित्य की ऐसी परख विरले देखने को मिलता है। उनके बारे में सर्च करने पर बहुत ही विलक्षण चरित्र देखने को मिलता है। गद्य साहित्य की प्रचुरता के कारण ‘बस्ती के छंदकार’ के लेखक स्मृति शेष डा मुनि लाल उपाध्याय ‘सरस’ जी ने शायद उन्हे अपने अध्ययन में ना ले सकें। उन्हें उचित स्थान देने से बस्ती मण्डल खुद को गौरवान्वित महशूस कर सकता है। इसलिए उनके अप्रकाशित भाग 3 की श्रृंखला में इस कड़ी को पिरोया जा रहा है।
स्वनाम धन्य श्री वागीश जी एक वैज्ञानिक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने गणित में स्नातकोत्तर किया है और आईआईटी दिल्ली में गणित के प्रोफ़ेसर भी रहे। उन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल दशमी विक्रम संवत् 2003 तदनुसार 9 जुलाई, 1946 ई. को इस धरती पर अपने गाँव थरौली, तप्पा बड़गों पगार, परगना महुली पश्चिम, तहसील सदर, जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश में जन्म लिया । बस्ती में वे एक ठाकुरद्वारे में रहते थे जिसे बस्ती राज-परिवार की रानी दिगम्बर कुँवरि ने बनवाया था। ये 1857 के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी बाबू कुँवर सिंह की बहिन थीं किन्तु ये स्वयं अंगरेज़ों के साथ थीं जिसके नाते बस्ती का राज्य विक्टोरिया शासनकाल में कुछ बढ़ेआकार के साथ बचा रहा।
वे वर्षों दिल्ली के आई. आई. टी. संस्थान में गणित पढ़ाते रहे और फिर सेवानिवृत्त होकर बस्ती में भी रहे हैं। उनका लिखा हुआ सरस और जटिल एक साथ होता है। उन्होंने निराला की प्रसिद्ध कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ की बहुत ही सुन्दर टीका लिखी है जो ‘छन्द छन्द पर कुमकुम’ नाम से प्रकाशित हुई है। उन्होंने देवकीनन्दन खत्री की उपन्यास श्रृंखला ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’ पर भी किताब लिखी है। उन्होंने ‘समास’ के लिए ‘भक्ति’ पर कई निबंधों की श्रृंखला भी लिखी है। वागीश जी हिन्दी में ग़ालिब की शायरी के सबसे बड़े विशेषज्ञ हैं और उन्होंने उस पर भी टीका लिख रखी है जो प्रकाशित होना बाक़ी है।
पारिवारिक पृष्ठभूमि:
1. पण्डित शूलपाणि (पूर्वज)
वागीश शुक्ल जी के पूर्वज पण्डित शूलपाणि शुक्ल थे, जो महसों (थरौली के रास्ते में) में रहते थे। राजा द्वारा किए गए अपमान से क्षुब्ध होकर वे अनशन पर बैठ गए और उनका प्राणांत हो गया। इसके बाद उनके पुत्रों ने महसों छोड़कर अन्य आश्रय की तलाश की।
2. पण्डित शिवदीन (वृद्ध प्रपितामह)
वागीश जी के वृद्ध प्रपितामह पण्डित शिवदीन शुक्ल थरौली में बस गए। उनके दो पुत्र हुए — पण्डित रामप्रसाद शुक्ल और पण्डित रामअवतार शुक्ल।
3. पण्डित रामप्रसाद शुक्ल (प्रपितामह)
पण्डित रामप्रसाद शुक्ल वागीश जी के सगे प्रपितामह थे। उनके परिवार में पण्डित शुभनारायण शुक्ल और पण्डित जयनारायण शुक्ल थे।
4. पण्डित जयनारायण शुक्ल (पितामह)
यह मकान वागीश जी के पितामह पण्डित जयनारायण शुक्ल ने बनवाया था।
5. पण्डित शुभनारायण शुक्ल (पिता)
वागीश जी अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। उनके पिता पण्डित शुभनारायण शुक्ल संस्कृत के आचार्य थे।
6. माता श्रीमती विद्यावती देवी
उनकी माता विद्यावती देवी ने 14 वर्ष की अवस्था से ही गुरुजनों की सेवा में समर्पित जीवन बिताया। उनके यहां 12 वर्षों तक कोई संतान नहीं हुई, जिसके बाद उन्होंने ऋषि पंचमी का व्रत प्रारंभ किया और फलस्वरूप वागीश जी का जन्म हुआ।
विवाह एवं वैधव्य:
वागीश जी का विवाह 1965 में श्रीमती इंदुमती से हुआ, जिनका जन्म 1951 और निधन 2023 में हुआ।
लेखन यात्रा और साहित्यिक योगदान:
आरंभिक लेखन:
वागीश जी ने नवीं कक्षा में अपनी पहली कविता लिखी, जिसकी प्रथम पंक्ति थी —
“पर्यंक-त्याग क्यों ओ बोले।”
इसी समय से वे जेब में इलायची-लोंग रखने लगे, जिसकी परिणति बाद में तंबाकू के पान खाने में हुई।
अध्ययन और प्रेरणा:
उन्होंने संस्कृत विद्यालय में देवकीनन्दन खत्री के सारे उपन्यास पढ़े। अंग्रेज़ी अच्छी करने के उद्देश्य से उनके पिता ने ‘ब्लिट्ज़’ नामक साप्ताहिक मंगवाना शुरू किया। इलाहाबाद में पढ़ाई के दौरान वे एक लालटेन के सहारे पढ़ाई करते और उसी चटाई पर सो जाते थे।
प्रमुख रचनाएं:
वागीश जी ने लगभग एक दर्जन रचनाएं लिखीं, जो प्रतिष्ठित प्रकाशनों से प्रकाशित हुई हैं। उनकी रचनाएं अमेज़न आदि ऑनलाइन माध्यमों पर भी उपलब्ध हैं।
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छन्द छन्द पर कुमकुम : राम की शक्ति पूजा
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गालिब के साहित्य की विस्तृत टीका और व्याख्या (प्रकाशनाधीन)
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Sanskrit Studied (संवत् 2063-64, 2 खंडों में)
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आहोपुरुषिका (अनुवाद)
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समालोचना: उसे निहारते हुए
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समालोचना: प्रचण्ड प्रवीर का कथा लेखन
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प्रतिदर्श (निबंध संग्रह)
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शहंशाह के कपड़े कहां हैं (निबंध)
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उर्दू साहित्य का देवनागरी में लिप्यंतरण: समस्याएं और सुझाव
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चंद्रकांता संतति का तिलस्म
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‘चिकितुषी’ त्रिपुरा रहस्य चर्या खंड का संपादन
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‘समास’ के लिए ‘भक्ति’ पर निबंध श्रृंखला
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एक सुदीर्घ उपन्यास (प्रकाशनाधीन)
शिक्षण कार्य और व्यावसायिक जीवन:
वागीश शुक्ल ने 1970 से 2012 तक आईआईटी दिल्ली में गणित के प्रोफ़ेसर के रूप में कार्य किया। सेवा निवृत्ति के बाद उन्होंने 9 वर्ष बस्ती में बिताए और 2021 से पुनः दिल्ली में निवास कर रहे हैं।
विशेषताएं और योगदान:
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वागीश जी का लेखन सरस और जटिल दोनों का संगम है।
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वे अवधारणाओं को सीधे प्रस्तुत करने के बजाय पाठक को वैचारिकता के उस स्तर तक ले जाते हैं, जहाँ अवधारणा रूप ले रही होती है।
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ग़ालिब की शायरी पर उनका काम अद्वितीय है और प्रकाशन की प्रतीक्षा में है।
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वे निराला की प्रसिद्ध कविता ‘राम की शक्तिपूजा’ पर लिखी गई ‘छन्द छन्द पर कुमकुम’ नामक टीका के लिए विख्यात हैं।
संपर्क विवरण:
फोन नंबर: 08765934624, 09868541851
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लेखक परिचय:

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में सहायक पुस्तकालय एवं सूचना अधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं।)
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