बांग्लादेश में पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की सरकार के पतन के बाद आ रही ख़बरों में कहा गया कि उन्हें सत्ता से हटाने के पीछे विदेशी हाथ है. हालांकि शेख़ हसीना ने ये बात आधिकारिक तौर पर यानी ऑन रिकॉर्ड नहीं कही है, लेकिन माना जा रहा है कि ये उनका ही बयान है. हो सकता है शायद ये गलत हो. चूंकि शेख़ हसीना को 5 अगस्त को अपने देश से भागने पर मज़बूर होना पड़ा, इसलिए उनके इस कथित बयान की अहमियत और ज़्यादा बढ़ गई है. इसमें पूर्व प्रधानमंत्री को स्पष्ट रूप से ये स्वीकार करते हुए दिखाया गया है कि “वो सत्ता में बनी रह सकतीं थीं अगर उन्होंने बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर नियंत्रण सौंपने की अमेरिका की मांगों को स्वीकार कर लिया होता”. हालांकि शेख़ हसीना के बेटे सजीब वाज़िद जॉय ने अपनी मां द्वारा दिए गए ऐसे किसी भी बयान की संभावना को खारिज़ किया है, लेकिन सजीब खुद पहले इशारों-इशारों में इस तरह के आरोप लगा चुके हैं.
शेख़ हसीना ने मई 2024 में दावा किया कि “एक श्वेत व्यक्ति ने उन्हें ये पेशकश दी थी कि अगर वो बांग्लादेश के क्षेत्र में सैनिक हवाई अड्डा बनाने की मंजूरी देती हैं तो 7 जनवरी हो होने वाले आम चुनाव में वो बिना किसी परेशानी को दोबारा उनकी सरकार बनवा देंगे”.
शेख़ हसीना ने मई 2024 में दावा किया कि “एक श्वेत व्यक्ति ने उन्हें ये पेशकश दी थी कि अगर वो बांग्लादेश के क्षेत्र में सैनिक हवाई अड्डा बनाने की मंजूरी देती हैं तो 7 जनवरी हो होने वाले आम चुनाव में वो बिना किसी परेशानी को दोबारा उनकी सरकार बनवा देंगे”. शेख़ हसीना ने आगे कहा कि “यहां कोई विवाद नहीं है, कोई संघर्ष नहीं है लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी. ये भी शायद मेरा एक अपराध है”. हालांकि, शेख़ हसीना ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन ये स्पष्ट है कि सेंट मार्टिन द्वीप में अमेरिका की रुचि थी. 2023 में भी ये अफ़वाह सामने आई थी कि अमेरिका ने अवामी लीग सरकार का समर्थन करने के बदले इस द्वीप की मांग की थी.
सेंट मार्टिन द्वीप का सामरिक महत्व
सेंट मार्टिन द्वीप खाड़ी के उत्तरपूर्वी भाग में स्थित है. ये द्वीप बांग्लादेश में कॉक्स बाजार के टेकनाफ़ तट से करीब 9 किमी दक्षिण में और उत्तर-पश्चिमी म्यांमार से 8 किमी पश्चिम में है. (चित्र 1). ये द्वीप बंगाल की खाड़ी में निगरानी की दृष्टि से आदर्श जगह पर है. बंगाल की खाड़ी में निगरानी रखना अमेरिका के लिए इसलिए भी ज़रूरी हो गया है क्योंकि हाल के वर्षों में चीन ने हिंद महासागर क्षेत्र में आक्रामक नीति अपनाते हुए महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की है.
चीन जिस तरह हिंद महासागर क्षेत्र में अपना विस्तार कर रहे है, उसे देखते हुए लगता है कि अगले दशक में चीन इस क्षेत्र में महान शक्ति बन सकता है. संख्या के लिहाज़ से देखें तो समुद्री जहाज बनाने के मामले में चीन पहले ही अमेरिका से आगे निकल गया है. यानी समुद्री शक्ति के मामलों में अमेरिका और चीन में जो अंतर था, वो कम होता जा रहा है. अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की इस होड़ में जैसे-जैसे प्रशांत क्षेत्र में शक्ति केंद्रित हो रही है, वैसे-वैसे इसके हिंद महासागर क्षेत्र में फैलने की भी संभावना है. म्यांमार और बांग्लादेश में अपनी रणनीतिक उपस्थिति को मज़बूत करने के साथ ही चीन को मलक्का जलसंधि और बंगाल की खाड़ी के आसपास भी बढ़त मिली हुई है.
अमेरिका और चीन के बीच प्रभुत्व की इस होड़ में जैसे-जैसे प्रशांत क्षेत्र में शक्ति केंद्रित हो रही है, वैसे-वैसे इसके हिंद महासागर क्षेत्र में फैलने की भी संभावना है.
शीत युद्ध के बाद जैसे-जैसे बहुपक्षवाद का युग शुरू हुआ, अमेरिका ने हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षा का बोझ साझा करने का दृष्टिकोण अपनाया. इससे सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानांतरित हो गई और क्षेत्रीय भागीदार इसका नेतृत्व करने लगे. भारत ने इस क्षेत्रीय रणनीति में एक नई भूमिका ग्रहण की, जो अमेरिका के साथ मज़बूत द्विपक्षीय संबंधों की वज़ह से और सशक्त हुई. हालांकि सार्क (साउथ एशियन एसोसिएशन ऑफ रीज़नल कोऑपपेशन) के नेतृत्व में क्षेत्रवाद की विफलता ने द्विपक्षीय और लघुपक्षीय तंत्र को मज़बूत करने के दरवाज़े खोल दिए. भारत-प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए क्वाड का दृष्टिकोण इस विकास का हिस्सा है.
राजनीतिक मंथन के बीच सुरक्षा सुनिश्चित करना
अगर सेंट मार्टिन द्वीप पर अमेरिकी की रूचि की कथित आरोपों से परे जाकर देखें तो ये द्वीप हमेशा विवाद का केंद्र रहा है. ऐतिहासिक रूप से बांग्लादेशी मछुआरों पर म्यांमार की नौसेना द्वारा अक्सर समुद्री सीमा के उल्लंघन का आरोप लगाया जाता था. ये एक ऐसा मुद्दा था जिसका समाधान 2012 में समुद्र के कानून के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरण (आईटीएलओएस) द्वारा निकाला गया.
सेंट मार्टिन क्षेत्र में उथल-पुथल की मौजूदा स्थिति, शक्ति संतुलन में बदलाव और जटिल भू-राजनीति परिस्थितियों को देखते हुए सेंट मार्टिन द्वीप की सुरक्षा करना बांग्लादेश सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा, फिर चाहे सरकार किसी की भी हो.
घरेलू राजनीतिक समस्याओं के लिए ‘विदेशी हाथ’ को ज़िम्मेदार ठहराना राजनीतिक कूटनीति का पुराना तरीका है. खासकर शीत युद्ध के समय ‘विदेशी हाथ’ के बहाने का काफी इस्तेमाल किया जाता था. फिलहाल बांग्लादेश की अंतरिम सरकार देश में सामान्य स्थिति बहाल करने की कोशिश कर रही है. ऐसे में उसे आर्थिक और शासन के असली मुद्दों का समाधान करने की ज़रूरत है, जिन्होंने छात्रों के आंदोलन को एक जन आंदोलन में बदल दिया और जिसकी वजह से पंद्रह साल पुरानी शेख़ हसीना सरकार का पतन हुआ.