इंदिरा गांधी, भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री, का बांग्लादेश के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका रही। 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए हुए युद्ध के दौरान इंदिरा गांधी की नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक निर्णयों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां इस प्रक्रिया का संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है:
पृष्ठभूमि
- पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति: 1947 में भारत के विभाजन के बाद, पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) एक ही देश के हिस्से थे। पूर्वी पाकिस्तान में भाषा, संस्कृति और राजनीतिक उपेक्षा के कारण असंतोष बढ़ रहा था।
- भाषा आंदोलन: 1950 के दशक में बांग्ला भाषा को राष्ट्रीय भाषा के रूप में मान्यता न देने के कारण पूर्वी पाकिस्तान में भाषा आंदोलन शुरू हुआ, जिसने स्वतंत्रता की भावना को और बढ़ावा दिया।
मुक्ति वाहिनी
मुक्ति वाहिनी, जिसे स्वतंत्रता सेना भी कहा जाता है, 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला एक गुरिल्ला संगठन था। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) से स्वतंत्र कराना था।
- स्थापना और उद्देश्यः मुक्ति वाहिनी की स्थापना 1971 में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश की स्वतंत्रता प्राप्त करना था । इसमें पूर्वी पाकिस्तान के स्थानीय नागरिक, छात्र, और पूर्व सैनिक शामिल थे। भारतीय सेना ने भी इसे सहायता प्रदान की। मुक्ति वाहिनी ने पश्चिमी पाकिस्तानी सेना के खिलाफ अनेक गुरिल्ला हमलों का संचालन किया।इस संघर्ष ने अंततः दिसंबर 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के संस्थापक और प्रथम राष्ट्रपति थे। शेख हसीना उनकी ही बेटी है। उन्हें बांग्लादेश की स्वतंत्रता का मुख्य नेता माना जाता है। शेख मुजीब का जन्म 17 मार्च 1920 को हुआ था।वे अवामी लीग के नेता थे, जो बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रही प्रमुख राजनीतिक पार्टी थी।1970 के आम चुनाव में अवामी लीग ने भारी जीत हासिल की।पाकिस्तान सरकार ने सत्ता हस्तांतरण में देरी की, जिसके कारण बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन को बल मिला। मुजीबुर्रहमान ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की।उन्हें “बंगबंधु” (बंगाल का मित्र) के नाम से भी जाना जाता है।
मुक्ति वाहिनी और शेख मुजीबुर्रहमान दोनों ने मिलकर बांग्लादेश की स्वतंत्रता की नींव रखी। मुक्ति वाहिनी के संघर्ष और मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व ने एक नए राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1971 का संघर्ष
- सैनिक कार्रवाई: मार्च 1971 में पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में बर्बर कार्रवाई शुरू की, जिसे ऑपरेशन सर्चलाइट कहा गया। इस कार्रवाई में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग भारत में शरण लेने के लिए भागे।
- शरणार्थी संकट: भारत में करीब 10 मिलियन (1 करोड़) बांग्लादेशी शरणार्थी आ गए, जिससे भारत पर भारी दबाव पड़ा।
इंदिरा गांधी की भूमिका
- अंतरराष्ट्रीय समर्थन: इंदिरा गांधी ने विश्व के प्रमुख देशों का दौरा किया और बांग्लादेश की स्थिति पर उनका समर्थन जुटाया। उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और अन्य देशों से सहायता और समर्थन मांगा।
- भारत का सैन्य हस्तक्षेप: 3 दिसंबर 1971 को, पाकिस्तान ने भारतीय हवाई अड्डों पर हमला किया। इसके जवाब में, भारत ने औपचारिक रूप से पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और भारतीय सेना ने मुक्ति बाहिनी (बांग्लादेश की स्वतंत्रता सेनानी सेना) के साथ मिलकर संघर्ष किया।
- निर्णायक युद्ध: 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना और मुक्ति बाहिनी ने ढाका पर कब्जा कर लिया और पाकिस्तान की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया। इस प्रकार बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
- स्वतंत्र बांग्लादेश: 26 मार्च 1971 को स्वतंत्रता की घोषणा के बाद, 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
- भारत की भूमिका: इंदिरा गांधी और भारत की सेना की निर्णायक भूमिका ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इसे भारत के सबसे बड़े सैन्य और राजनीतिक विजय के रूप में देखा जाता है। इंदिरा गांधी की रणनीतिक और राजनयिक क्षमता, साथ ही भारत के सैन्य बल का प्रभावी उपयोग, बांग्लादेश की स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कारक था। उनके नेतृत्व ने न केवल एक नया देश बनाने में मदद की बल्कि दक्षिण एशिया की राजनीति को भी नया रूप दिया।
बांग्लादेश में तख्ता पलट की कहानी
बांग्लादेश में तख्ता पलटकी कहानियाँ अक्सर राजनीति, सैन्य हस्तक्षेप और सत्ता संघर्ष के संदर्भ में देखी जाती हैं। बांग्लादेश के इतिहास में कई तख्ता पलट हुए हैं। यहाँ उनमें से कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ दी जा रही हैं:
- 1975 का तख्ता पलट:
- 15 अगस्त 1975 को, बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान को उनके परिवार के साथ हत्या कर दी गई। यह तख्ता पलट सेना के एक समूह द्वारा किया गया था। शेख मुजीब की हत्या के बाद, खंदकर मुश्ताक अहमद ने राष्ट्रपति का पद संभाला।
- 1975 का दूसरा तख्ता पलट:
- नवंबर 1975 में, एक और तख्ता पलट हुआ जिसमें सेना के चीफ मेजर जनरल खालिद मुशर्रफ ने सत्ता अपने हाथ में ले ली। हालांकि, कुछ दिनों बाद ही एक और तख्ता पलट में जनरल ज़िया उर रहमान ने सत्ता अपने हाथ में ले ली।
- 1982 का तख्ता पलट: 24 मार्च 1982 को सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हुसैन मोहम्मद एर्शाद ने राष्ट्रपति अब्दुस सत्तार को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ली। एर्शाद ने मार्शल लॉ घोषित कर दिया और राष्ट्रपति का पद संभाला।शेख हसीना
शेख हसीना वाजिद, जो अब तक बांग्लादेश की प्रधान मंत्री थी भागकर भारत आ गई है। शेख हसीना का जन्म 28 सितंबर 1947 को हुआ था।वे शेख मुजीबुर रहमान और बेगम फजीलतुन निसा की सबसे बड़ी संतान हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बांग्लादेश में प्राप्त की और बाद में विश्वविद्यालय की पढ़ाई ढाका विश्वविद्यालय से पूरी की शेख हसीना ने 1981 में बांग्लादेश की अवामी लीग (AL) पार्टी की अध्यक्षता संभाली।
1975 बांग्लादेश नरसंहार में शेख हसीना के परिवार और रिश्तेदारों को मिलाकर कुल 18 लोगों की हत्या की गई थी. जिसमें उनका 10 साल का एक भाई भी शामिल था। जिस समय पिता की हत्या हुई थी, वह अपने पति से मिलने के लिए जर्मनी गई हुई थी, जो कि एक परमाणु वैज्ञानिक थे. फिर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें जानकारी दी कि वह उन्हें सुरक्षा और शरण देना चाहती हैं. इसके बाद युगोस्लाविया के मार्शल टिटो और इंदिरा गांधी ने उन्हें रिसीव किया और वह दिल्ली आ गई थी. उस वक्त शेख हसीना और उनके परिवार को पंडारा रोड पर टॉप लेवल सिक्योरिटी के साथ एक सीक्रेट घर में रखा गया था. इसके अलावा उनके पति को एक नौकरी भी दी गई थी. हसीना के पति को नई दिल्ली में स्थित परमाणु ऊर्जा आयोग में नौकरी मिल गई. वहां उन्होंने सात वर्ष काम किया.
दिल्ली में, हसीना पहले 56 रिंग रोड, लाजपत नगर-3 में रहीं. फिर लुटियंस दिल्ली के पंडारा रोड में एक घर में शिफ्ट हो गईं. परिवार की असली पहचान छिपाने के लिए उन्हें मिस्टर और मिसेज मजूमदार की नई पहचान दी गई. पंडारा रोड का उनका घर तीन कमरों था. घर के आसपास सुरक्षा कर्मियों का पहरा रहता था.
शेख हसीना को किसी को अपनी असली पहचान बताने की मनाही थी. साथ ही दिल्ली में किसी से संपर्क रखने को भी मना किया गया था. भारत में उनके रहने से न केवल उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हुई बल्कि उन्हें राजनीतिक संबंध बनाने का मौका भी मिला।
शेख हसीना तीन बार बांग्लादेश की प्रधान मंत्री रह चुकी हैं: इस बार ये उनका चौथा कार्यकाल था और उनको बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा। शेख हसीना ने पहली बार 23 जून 1996 को बांग्लादेश की प्रधान मंत्री पद की शपथ ली। यह उनका पहला कार्यकाल था, जो 2001 तक चला । उन्होंने दोबारा 6 जनवरी 2009 को प्रधान मंत्री पद की शपथ ली। इस कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव और विकास कार्य किए।शेख हसीना ने 12 जनवरी 2014 को तीसरी बार प्रधान मंत्री पद संभाला। यह कार्यकाल 2018 में संपन्न हुआ।उन्होंने चौथी बार 7 जनवरी 2019 को पदभार संभाला।