दिल्ली हाई कोर्ट के एक न्यायमूर्ति ने एक गैर सरकारी संगठन (NGO) की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है, जिसमें उसने ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कॉपरेशन (बीबीसी) से हर्जाने की मांग की है।
दरअसल, इस याचिका में कहा गया है कि डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन‘ न केवल देश की छवि को धूमिल करती है, बल्कि इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भारतीय न्यायापालिका के खिलाफ झूठे व अपमानजनक बयान भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि वह खुद को अलग कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई कारण नहीं बताया। न्यायमूर्ति ने कहा कि याचिका को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के आदेश के अधीन 22 मई को सुनवाई के लिए दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।
बता दें कि यह याचिका गुजरात स्थित एनजीओ जस्टिस ऑन ट्रायल ने बीबीसी के खिलाफ दायर की है, जिसमें 10,000 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की गई है। कोर्ट ने इस याचिका पर पहले बीबीसी (यूके) और बीबीसी (भारत) को नोटिस जारी किया था।
जनवरी 2023 में प्रसारित हुई डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर केंद्रित है जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। एनजीओ का तर्क है कि डॉक्यूमेंट्री प्रधानमंत्री, भारत सरकार, गुजरात सरकार और भारत के लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है।
याचिका में कहा गया है कि बीबीसी (यूके) ब्रिटेन का राष्ट्रीय प्रसारक है और उसने डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन‘ जारी की है, जिसके दो एपिसोड हैं और बीबीसी (भारत) उसका स्थानीय संचालन कार्यालय है। जनवरी 2023 में इसके दो एपिसोड प्रसारित किए गए थे। सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के तुरंत बाद ही इसे प्रतिबंधित कर दिया था और डॉक्यूमेंट्री साझा करने वाले कई यूट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक कर दिया था।