Friday, April 18, 2025
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ब्रजभूषण उपाध्याय “ब्रजचन्द”

ब्रजभूषण उपाध्याय का जन्म वैसाख शुक्ल तृतीया स० १९९० विक्रमी में मेहदावल के सन्निकट बनकटा नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० रामहर्ष उपाध्याय था। ब्रजचन्द की शिक्षा-दीक्षा बी०ए० विशारद है। 1964 ई.मे जे०टी०सी० करने के बाद आप जिला परिषद के जूनियर हाई स्कूल के सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। भोजपुरी और खड़ी बोली के उभरते हुए छन्दकार के रूप में ब्रजचन्द काव्य- गोष्ठियो में विशेष सम्मान पाते हैं।

प्रकाशित पुस्तक – 1. ललकार
अप्रकाशित पुस्तक – 2. चेतक बावनी ।

   लोकगीतों के बड़े ही अच्छे कवि के रूप में ये सम्मान पाते रहे हैं। यह काव्य के प्रत्ति बड़े ही शौकीन रखते हैं।”चेतक”  के दो छन्द यहाँ प्रस्तुत है-

हिम की हिमानी देखी देखी हैअपूर्ण प्रभा
चन्दन सुगंध सदा उत्तर में हिन्दभाल।
देखी हरि गिरिकला शिव की समाधि देखी
देखी हैअखण्डज्योति उषा का अरुणकाल
शिवाकीभवानी भला किसकी है जानीनही
राणा का भाला राजपूतों की अनोखीढाल।
स्वामिभक्त चेतक का देखा है अनुप रूप
देखी हल्दीघाटी कीलड़ाई कीकलाकमाल।

पुनः एक दूसरा छन्द इस प्रकार है –
कितने सपूत देखा मातु बलि वेदी पर
प्राण पुष्प मुद्रित हो प्रेम से चढ़ाये थे।
कितने जवान देखा झूम झूम नाच नाच
हो हो कुर्बान देशभक्ति गान गाये थे।
देश है चित्तौड़ यही वीर रस वीर रूप
जौहरी अनेक जहां जौहर दिखाये थे ।
जिनकी कहानी थाती वीरता की “ब्रजचंद”
बार बार लिखते अनेक कवि आये थे।।

ब्रजचंद जी चतुर्थ चरण के एक नवोदित छन्दकार के रूप में काव्य-सेवा मे लगे हुए हैं। इनके भोजपुरी के मनोहारी गीत कवि सम्मेलनों के मचों पर काफी जमते हैं। इनके छन्दो पर कलाधर और अब्बासअली “बास” के काव्य का प्रभाव अधिक है। ब्रजचंद जी अपने आकर्षित प्रतिभा से कवि जनों को आत्मवत बना देने में बड़े सक्षम है।छन्दकारों से मिलते जुलते  रहना इन्हें बहुत अच्छा लगता है। चतुर्थ चरण के नवोदित छन्दकारों में अपनी सेवाओ से ब्रजचंद सामादृत होगे, ऐसा विश्वास है।

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।

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