Sunday, April 13, 2025
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भगवान परशुराम से बड़ा न कोई शिक्षक है, न ही कोई योद्धा

माननीय श्रम कल्याण राज्य मंत्री,
उत्तरप्रदेश सरकार.

भगवान श्री परशुराम का व्यक्तित्व आज भी त्याग, तपस्या, शौर्य, और धर्म के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। वे न्याय, संतुलन और शक्ति के आदर्श हैं। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु के वंशज, भगवान श्री विष्णु के छठवें अवतार हैं। वे कैलास लोक में तपस्या कर शस्त्रों का ज्ञान और विद्युद्भि परशु को प्राप्त किया था।भगवान परशुराम से बड़ा न कोई शिक्षक है, न ही कोई योद्धा ही।उनकी जन्मस्थली जानापांव,मध्यप्रदेश है।

भगवान परशुराम के शाश्वत अमर संदेश हैं –

राष्ट्रधर्म तथा न्याय की रक्षा के लिए शस्त्र का प्रयोग शास्त्र सम्मत है।  वेदशास्रानुमोदित यथार्थ जीवनचर्या है। अहंकार का परित्याग व मानवता का परिपालन है।

आसुरी प्रवृत्ति का परित्याग और जीवों पर दया है। आत्मसम्मान की रक्षा, सुरक्षा व सजगता है। धार्मिक प्रवृत्ति का प्रचार व संरक्षण है।परमात्मा व प्रकृति में आस्था और विश्वास है। औरसमस्त विश्व के मंगल की कामना है।

भगवान परशुराम के उपर्युक्त संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए राष्ट्रीय परशुराम परिषद का गठन किया गया। साथ ही साथ भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में विद्यमान समस्त परशुराम-स्थलों की जानकारी उपलब्ध कराना,उन स्थलों का जीर्णोद्धार करवाना जिससे  श्रद्धालुओं को भगवान श्री परशुराम के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो सके,यह भी राष्ट्रीय परिषद का उद्देश्य है। सच कहा जाय तो अन्याय का विरोधकर और न्याय का संरक्षण करना ही भगवान परशुराम का वास्तविक सन्देश है।

उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु राष्ट्रीय परशुराम परिषद का गठन किया गया जिसकी दो शाखाएं हैं-परशुराम शक्तिवाहिनी तथा परशुराम स्वाभिमान सेना। गौरतलब है कि राष्ट्रीय परशुराम परिषद के संस्थापक संरक्षक एवं मुख्य ट्रस्टी उत्तरप्रदेश सरकार के माननीय श्रम राज्य मंत्री श्री सुनील भराला जी ही हैं।

सनातनी देवी-देवताओं,ऋषियों और धर्मावलंबियों के लिए भारत ही एकमात्र ऐसा देश है  जहां पर मानवता की रक्षा के लिए समय-समय पर विश्व को जीवन जीने की प्रेरणा मिली है और आसुरी शक्तियों को परास्त किया गया है। धर्म की रक्षा के लिए सर्वशक्तिमान ईश्वर जिस भारत की धरती पर अवतार लेते हैं। दुष्ट राक्षसों का नाश करने के लिए भगवान देश, काल और परिस्थिति के अनुसार जन्म लेते हैं, अपनी लीलाएं करते हैं और माया के माध्यम से ही इस मायावी संसार का उद्धार करते हैं।यहां पर उल्लेखनीय बात यह है कि एक ओर भगवान श्री परशुराम ने सभी दुष्टों का नाश किया तो दूसरी ओर भगवान शिव की अनन्य भक्ति, प्रेरणा और शिक्षाओं के माध्यम से उन्होंने संपूर्ण मानव जाति का कल्याण भी किया।

इसीलिए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी भगवान परशुराम से बड़ा न कोई शिक्षक हुआ न ही कोई योद्धा ही। भगवान परशुराम एकतरफ जहां उच्चतम आदर्शों और जीवन-मूल्यों के संस्थापक थे ,वहीं वे शस्त्र उठाकर अपनी प्रजा की रक्षा के लिए भी तत्पर रहते थे।श्री परशुराम भगवान धाम एक बार फिर समाज के लिए प्रेरणा का केंद्र बने  जहां परशुराम स्वाभिमान सेना के माध्यम से देश की युवा शक्ति को संगठित कर समाज में फैल रहे आतंकवाद को जड़ से खत्म करने का सशक्त प्रयास किया जा रहा है वहीं परशुराम शक्ति वाहिनी के माध्यम से नारी शक्ति को जागृत कर राष्ट्र को नई ऊर्जा, नई शक्ति और नई दृष्टि प्रदान की जा रही है।

राष्ट्रीय परशुराम परिषद का मुख्यालय नई दिल्ली में है जबकि राष्ट्रीय परशुराम परिषद शोध पीठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य श्री कृष्णन जी, चेन्नई के हैं। भगवान परशुराम की जन्मस्थली,कर्मस्थली,ज्ञानस्थली और युद्ध स्थली सम्पूर्ण भारत में कहां- कहां पर है,इसकी भी सही जानकारी भगवान परशुराम के भक्तों तक पहुंचान राष्ट्रीय परशुराम परिषद का मूल उद्देश्य है। गौरतलब है कि पूरे भारत में कुल 56 ऐसी स्थली हैं जहां से भगवान परशुराम का  प्रत्यक्ष तथा परोक्ष संबंध रहा। उनमें से एक स्थली महेंद्रगिरि पर्वत ओड़िशा में भी है जहां पर भगवान परशुराम जी कभी तपस्या किया करते थे और वहां पर आज भी भगवान परशुराम की विधिवत पूजा होती है।

बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि जिस प्रकार  भगवान श्री रामचंद्र जी की जन्म भूमि अयोध्या है, भगवान श्री कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा है तो फिर श्री भगवान परशुराम जी की जन्म भूमि कहां पर है-इसे कोई भी बता नहीं पाता है।

यह है भगवान परशुराम की जन्मस्थली जन्मस्थली जानापांव,मध्यप्रदेश जो लोग उज्जैन महाकाल के दर्शन करते हैं, ओंकारेश्वर भगवान के दर्शन करते हैं वे अब मध्यप्रदेश की जानापांव पहाड़ी पर भी पहुंचकर भगवान श्री परशुराम जी के दर्शन कर रहे हैं।

प्रस्तुति -अशोक पाण्डेय , भुवनेश्वर से

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