Tuesday, April 1, 2025
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भारतीय कैलेंडर और पंचांग का महत्व

भारतीय पंचांग विश्व के सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक कैलेंडर प्रणालियों में से एक है। इसमें ग्रह, नक्षत्र, तारे, सूर्य और चंद्रमा की गति को आधार माना गया है। इसीलिए इसका हर पर्व, व्रत और शुभ मुहूर्त खगोलीय घटनाओं से जुड़ा होता है।

दैनिक जीवन में उपयोग

शुभ मुहूर्त (विवाह, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ)

व्रत और उपवास (एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या आदि)

धार्मिक अनुष्ठान (यज्ञ, पूजा, संस्कार)

त्योहारों की तिथि निर्धारण (दीवाली, होली, गुड़ी पड़वा आदि)

सभी कार्य पंचांग देखकर ही तय होते हैं।

पंचांग के मुख्य अंग

पंचांग में पाँच मुख्य बातें बताई जाती हैं:

तिथि (चंद्रमा की स्थिति)

वार (सप्ताह का दिन)

नक्षत्र (तारा समूह)

योग (ग्रहों का विशेष योग)

करण (आधा तिथि भाग)

इन पाँचों का समन्वय ही पंचांग कहलाता है।

भारतीय पंचांग के अनुसार नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है। इसे संवत्सर कहते हैं। हर संवत्सर का एक नाम होता है और यह 60 वर्षों का चक्र है।

भारतीय पंचांग न केवल तिथियाँ बताता है, बल्कि दिन-प्रतिदिन के शुभ-अशुभ, ग्रह दोष, योगफल, राशिफल आदि की जानकारी भी देता है, जो धर्म और अध्यात्म से गहरे जुड़े होते हैं।

भारतीय पंचांग ही ऋतुओं का सटीक ज्ञान कराता है। वर्षा ऋतु, शरद ऋतु, वसंत ऋतु आदि का सही समय और महत्व पंचांग से ही जाना जाता है।

न वैदिके कर्मणि कालमन्तरेण सिद्धिः।
अर्थात् — वैदिक कर्म बिना कालज्ञान के सिद्ध नहीं होते।
इसलिए पंचांग और कालगणना को वेदों में अत्यंत आवश्यक माना गया है।

भारतीय पंचांग के प्रमुख प्रकार
भारत में पंचांग कई प्रकार के प्रचलित हैं। मुख्य रूप से ये चंद्रमा और सूर्य की गति पर आधारित होते हैं।

सौर पंचांग (Solar Calendar)
यह सूर्य की गति पर आधारित पंचांग होता है।
इसमें महीनों की गणना सूर्य के राशि परिवर्तन (संक्रांति) से होती है।
प्रत्येक माह तब बदलता है जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
उदाहरण: तमिल, मलयालम, ओडिया और बंगाल का कैलेंडर सौर पंचांग पर आधारित है।

चंद्र पंचांग (Lunar Calendar)
यह चंद्रमा की गति पर आधारित होता है।
इसमें माह तब बदलता है जब चंद्रमा एक अमावस्या से दूसरी अमावस्या (अमांत) या पूर्णिमा से पूर्णिमा (पूर्णिमांत) तक जाता है।
यह भारत में बहुत सामान्य रूप से उपयोग किया जाता है।
उदाहरण: उत्तर भारत, गुजरात, महाराष्ट्र आदि में प्रचलित पंचांग।

सौर-चंद्र पंचांग (Luni-Solar Calendar)
यह पंचांग सूर्य और चंद्र दोनों की गति को ध्यान में रखकर बनाया जाता है।
इसमें तिथि चंद्रमा से और माह सूर्य से तय होता है।
जब चंद्र पंचांग में एक वर्ष में 12 से अधिक मास होते हैं तो अधिक मास या मलमास जोड़ा जाता है।
उदाहरण: विक्रमी और शक पंचांग इसी प्रणाली से जुड़े हैं।

विक्रम संवत (Vikram Samvat)
इसे राजा विक्रमादित्य ने प्रारंभ किया।
इसका आरंभ 57 ईसा पूर्व से माना जाता है।
यह पंचांग चंद्र-सौर आधारित है।
भारत के उत्तर, पश्चिम और मध्य भागों में प्रचलित है।
नववर्ष: चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है।

शक संवत (Shaka Samvat)
शक संवत भारत सरकार द्वारा आधिकारिक पंचांग के रूप में उपयोग में लिया जाता है।
इसका आरंभ 78 ईस्वी से हुआ।
यह भी चंद्र-सौर पंचांग है।
भारत के दक्षिण भारत में विशेष रूप से मान्य है।
नववर्ष: चैत्र मास से ही शुरू होता है।

 मुख्य अंतर संक्षेप में:
प्रकारआधारितनववर्षक्षेत्र
सौर पंचांग  सूर्यसंक्रांति से  दक्षिण भारत, बंगाल
चंद्र पंचांग चंद्रमा पूर्णिमा या अमावस्या से उत्तर भारत
विक्रम संवतचंद्र-सौरचैत्र प्रतिपदा उत्तर भारत
शक संवतचंद्र-सौरचैत्र प्रतिपदासरकारी पंचांग, दक्षिण भारत

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