Tuesday, April 8, 2025
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भारतीय जनता पार्टी :शून्य से शिखर तक का सफर

 स्थापना दिवस 6 अप्रैल पर विशेष
व्यक्ति या संस्था जब शिखर पर होता है तब उसकी विजयगाथा गायी जाती है और यह स्वाभाविक भी है. आज की भारतीय जनता पार्टी की बुनियाद में उसके संघर्ष के दिनों की यात्रा उसकी नींव है. 1951 में जनसंघ के रूप में यात्रा शुरू हुई और जनता पार्टी के रूप में विस्तार मिला और 6 अप्रेल 1980 को स्वयं की पहचान के साथ भारतीय जनता पार्टी की यात्रा आरंभ हुई तो अविरल चल रही है. कभी दो सांसदों के साथ लोकसभा में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाली भारतीय जनता पार्टी आज देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी के रूप में उपस्थित है.
यहां यह जान लेना जरूरी है कि भारतीय जनता पार्टी की यात्रा का आरंभ कहां से शुरू होता है. वैसे तो यह सबको पता है कि 6 अप्रेल 1980 को भाजपा का एक राजनीतिक पार्टी के रूप में गठन हुआ लेकिन भाजपा की रीति-नीति हिन्दुत्व की रही है और इसी आधार पर तब 1951 में हिंदू समर्थक समूह की राजनीतिक शाखा के रूप में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नींव डाला था. ध्येय था हिंदू संस्कृति के अनुसार भारत के पुनर्निर्माण की वकालत की और एक मजबूत एकीकृत राज्य के गठन का आह्वान। यात्रा आहिस्ता आहिस्ता आगे बढऩे लगा और 1967 तक भारतीय जनसंघ ने उत्तर भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों में अपनी मजबूत पकड़ बना ली थी। दस साल बाद, पार्टी ने हिंदी भाषी क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत कर ली।
देश में 1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद जनसंघ का अन्य दलों के साथ विलय हो गया और इसके साथ ही जनसंघ के स्थान पर नया नाम मिला जनता पार्टी.  जनता पार्टी के गठन के बाद नयी ताकत दिखी और जनता पार्टी ने 1977 में कांग्रेस को पराजित कर दिया. जनता पार्टी में विलय हुई जनता पार्टी की रीति-नीति से अन्य दलों का मेल नहीं खाया और उनके रास्ते अलग अलग हो गए. पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुये अटल बिहारी वाजपेयी ने तीन अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया। जनता पार्टी से अलग होकर सरकार की बागडोर अपने हाथ में ले ली। हालांकि, गुटबाजी और आंतरिक विवादों से त्रस्त होकर जुलाई 1979 में सरकार गिर गई। जनता गठबंधन के भीतर असंतुष्टों द्वारा विभाजन के बाद 1980 में औपचारिक रूप से भाजपा की स्थापना हुई।
यद्यपि शुरुआत में पार्टी असफल रही और 1984 के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही।  इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को ताकत दी। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये 1996 में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो 13 दिन चली। 1998 में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम-चुनावों में राजग को पुन: पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। 2004 के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले 10 वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई।
उल्लेखनीय है कि भाजपा हिन्दुत्व के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त करती है और नीतियाँ ऐतिहासिक रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद की पक्षधर रही हैं। इसकी विदेश नीति राष्ट्रवादी सिद्धांतों पर केन्द्रित है। जम्मू ृऔर कश्मीर के लिए विशेष संवैधानिक दर्जा खत्म करना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करना तथा सभी भारतीयों के लिए समान नागरिकता कानून का कार्यान्वयन करना भाजपा के मुख्य मुद्दे हैं।
भाजपा को 1989 में चुनावी सफलता मिलनी शुरू हुई, जब उसने अयोध्या में हिंदुओं द्वारा पवित्र माने जाने वाले एक क्षेत्र में हिंदू मंदिर के निर्माण की मांग करके मुस्लिम विरोधी भावना को भुनाया , लेकिन उस समय बाबरी मस्जिद (बाबर की मस्जिद) का कब्जा था। 1991 तक भाजपा ने अपनी राजनीतिक अपील में काफी वृद्धि की थी, लोकसभा (भारतीय संसद के निचले सदन) में 117 सीटों पर कब्जा कर लिया और चार राज्यों में सत्ता संभाली। 1998 में भाजपा और उसके सहयोगी दल वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के साथ बहुमत वाली सरकार बनाने में सफल रहे। उस वर्ष मई में, वाजपेयी द्वारा आदेशित परमाणु हथियार परीक्षणों की व्यापक अंतरराष्ट्रीय निंदा हुई। 13 महीने के कार्यकाल के बाद, गठबंधन सहयोगी ऑल इंडिया द्रविड़ प्रोग्रेसिव फेडरेशन (अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कडग़म ) ने अपना समर्थन वापस ले लिया और वाजपेयी को लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने के लिए बाध्य होना पड़ा, जिसमें वे एक वोट के अंतर से हार गये।
भाजपा ने 1999 के संसदीय चुनावों में एनडीए के आयोजक के रूप में चुनाव लड़ा, जो 20 से अधिक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों का गठबंधन था। गठबंधन ने सत्तारूढ़ बहुमत हासिल किया, जिसमें भाजपा ने गठबंधन की 294 सीटों में से 182 सीटें जीतीं। गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री चुने गए।
हालाँकि वाजपेयी ने कश्मीर क्षेत्र को लेकर पाकिस्तान के साथ देश के लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को सुलझाने और भारत को सूचना प्रौद्योगिकी में विश्व नेता बनाने की कोशिश की, लेकिन गठबंधन ने 2004 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस पार्टी के संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) गठबंधन के सामने अपना बहुमत खो दिया और वाजपेयी ने पद से इस्तीफा दे दिया। 2009 के संसदीय चुनावों में लोकसभा में पार्टी की सीटों का हिस्सा 137 से घटकर 116 रह गया क्योंकि यूपीए गठबंधन फिर से प्रबल हो गया ।

2014 के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली।  2014 के लोकसभा चुनाव कांग्रेस शासन के प्रति असंतोष बढऩा था.  मोदी को भाजपा के चुनावी अभियान का नेतृत्व करने के लिए चुना गया. उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार पार्टी ने घोषित किया। भाजपा ने 282 सीटें जीतीं, जो सदन में स्पष्ट बहुमत था, और इसके एनडीए सहयोगियों ने 54 और सीटें जीतीं। मोदी ने 26 मई, 2014 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.

दो सीटों पर विजय प्राप्त करने वाली भाजपा ने 2014 से जो विजय यात्रा आरंभ की तो पीछे पलट कर नहीं देखा. लोकसभा के साथ ज्यादतर राज्यों में भाजपा की सरकार बनती गई. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आइकॉन बनकर उभरे. वे समाज के सभी वर्गों में लोकप्रिय हो गए. वे अपने सख्त फैसले से अलग पहचान बना लिया. अयोध्या में राममंदिर निर्माण, जम्मू कश्मीर में बदलाव, तीन तलाक कानून खत्म करने, गोवध रोकने कानून, जीएसटी लागू कर देश में परिवर्तन की नयी बयार ला दी. भाजपा को बनाने और विस्तार देने में अटलविहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी का नाम लिया जा सकता है तो एक दशक में भाजपा को मजबूती देने वालों में नरेन्द्र मोदी के नाम का ही उल्लेख मिलेगा. भाजपा ने अपने संकल्प और दूरदृष्टि से आज वैकल्पिक नहीं बल्कि लोकतांत्रिक भारत में मुखर और प्रखर राजनीतिक दल के रूप में सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी है.
 (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

एक निवेदन

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