उदयपुर । भारत सरकार ने प्राचीन भाषा प्राकृत को शास्त्रीय (क्लासिकल) भाषा का दर्जा प्रदान करने की स्वीकृति प्रदान की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रीमंडल ने गुरुवार को प्राकृत सहित पाँच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दी है। जैन समाज, प्राकृत प्रेमियों और प्राकृत सेवियों ने सरकार के इस निर्णय का अभिनंदन किया है।
श्रमण डॉ. पुष्पेन्द्र ने बताया कि जैन समाज और प्राकृत प्रेमी लंबे समय से प्राकृत को शास्त्रीय भाषा की मान्यता की मांग कर रहे थे। प्राकृत में शास्त्रीय भाषा की सारी विशेषताएँ पूरी तरह से विद्यमान हैं। जैन समाज में प्राकृत भाषा का शिक्षण और प्राकृत साहित्य का स्वाध्याय आम बात है, इससे जैन धर्म के विपुल साहित्यिक विरासत की सुरक्षा सुनिश्चित होगी क्यूँकि प्राकृत भाषा जैन संस्कृति की आधार स्तंभ है, प्राकृत भाषा जैनधर्म-दर्शन और आगम की मूल भाषा है। यही तो महावीर की वाणी है जो लोक भाषा प्राकृत में गुम्फित है. रचित है और प्रवाहित है। भारतीय भाषाओं की जननी है प्राकृत भाषा, क्यूँकि प्राकृत का इतिहास सर्वाधिक प्राचीन रहा है।
उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व छह भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिल चुका था- तमिल, संस्कृत, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़ और ओडिया। अब प्राकृत के साथ ही पालि, असमिया, बांग्ला, मराठी मिलाकर कुल ग्यारह शास्त्रीय भाषाएं हो गई हैं। शास्त्रीय भाषाओं का एक लंबा इतिहास और समृद्ध, अद्वितीय और विशिष्ट साहित्यिक विरासत होती है। प्राकृत के प्रारंभिक ग्रंथ 2 हजार से ढाई हजार वर्ष प्राचीन हैं। इनमें भारत की सांस्कृतिक विरासत का खजाना है।
ज्ञातव्य हो कि 2022 में रोहतक (हरियाणा) में आयोजित प्रथम राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी में भी प्राकृत मनीषी डॉ. दिलीप धींग ने प्राकृत को शास्त्रीय भाषा की मान्यता का प्रस्ताव रखा था, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था।
स्कूली शिक्षा में राजस्थान में लागू है प्राकृत भाषा-
उल्लेखनीय है कि माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान द्वारा कला संकाय के अंतर्गत पूर्व में संचालित प्राकृत भाषा वैकल्पिक विषय को शैक्षणिक सत्र 2023-24 से अतिरिक्त विषय के रूप में भी सम्मिलित करने का निर्णय किया है। बोर्ड सचिव मेघना चौधरी के आदेश के अनुसार कक्षा 11 एवं 12 में कला संकाय के अंतर्गत लिये जाने वाले तीन वैकल्पिक विषयों के साथ ही विद्यार्थी अब चौथे अतिरिक्त वैकल्पिक विषय के रूप में अध्ययन कर सकेंगे। स्कूली शिक्षा के स्तर पर प्राकृत भाषा को अतिरिक्त विषय के रूप में लागू करने वाला राजस्थान देश का प्रथम राज्य है।
प्राकृत भाषा सीखने से क्या लाभ होगा?
अंतरराष्ट्रीय प्राकृत शोध केन्द्र के पूर्व निदेशक डॉ दिलीप धींग अनुसार शोधकर्ताओं को अब प्राकृत में अध्ययन करने में सुगमता रहेगी क्यूँकि देश के किसी भी विश्वविद्यालय में अब प्राकृत भाषा का अध्ययन करवाया जाएगा जिससे प्राकृत जानने वालों की संख्या में इजाफा होगा. लोकतंत्र में सारी योजनाएं संख्या के आधार पर होती है और सरकार प्राकृत के विकास पर और अधिक ध्यान देगी। तीर्थंकरों की वाणी प्राकृत सीखने से श्रद्धालु को ठीक से समझ पाएंगे. हमारी विरासत, आगम ग्रंथों की ओर लोगों का ध्यान जाएगा. इनके अनुवाद और पठन-पाठन पर शोध-परक काम होगा।