Wednesday, December 4, 2024
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भारत का अहिन्दूकरण

आज पुरे भारत में दलित जाति के हिन्दूओं को जोर शोर से इसाई बनाया जा रहा रहा है. हिन्दू सो रहा है. प्रायः हिन्दू समझता है कि मत/ मजहब बदलने से कुछ अंतर नहीं पड़ता. सच तो यह है कि मतान्तरण आगे चल कर राष्ट्रान्तरण में बदल जाता है. जो भी मुस्लिम बन जाता है उसकी तीसरी पीढ़ी अपनी जड़ें मक्का मदीना से जोडती है. जो ईसाई बन जाता है उसकी तीसरी पीढ़ी अपने को वेटिकन के अधिक निकट पाती है. भारत में जहाँ भी हिन्दू कंम है उन्ही राज्यों में अधिक अशांति है. जैसे कश्मीर और मिजोरम. यह समस्या कितनी जटिल है इसका जन सामान्य को अनुमान नहीं है.

पाठको ने संभवतः मुहम्मद अली जिन्नाह (पाकिस्तान निर्माता) और मुहम्मद इकबाल (पाकिस्तान के वैचारिक जनक) का नाम सुना होगा. इनके पूर्वज भी हिन्दू से मुस्लिम बने थे. परन्तु इन्होने भारत विभाजन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई यह सभी जानते हैं. इसी तरह पण्डित नीलकंठ शास्त्री का उदाहरण है. ये महाराष्ट्रिय ब्राह्मण थे. संस्कृत के विद्वान थे व इन्होने महाभारत पर नीलकंठी टीका भी लिखी है. एक घटना से प्रभावित होकर ये इसाई बन गए. उसके बाद इन्होने अनेक हिन्दूओं को इसाई बनाया. यद्यपि आर्यसमाज के प्रभाव के कारण ये पंजाब में अधिक सफल नहीं हुए परन्तु संयुक्त प्रान्त ( जिसमे मुखयतः आज का उत्तरप्रदेश है. ) इन्होने बड़ी सफलता पाई.

चूक कहाँ हुई –
एक समय था जब अनेक स्थानों पर मुस्लिम दुबारा हिन्दू बनना चाहते थे. परन्तु हमने रोटी बेटी का रिश्ता नहीं जोड़ा. हमारे अंदर जाति का मिथ्याभिमान आवश्यकता से अधिक है. मेवात में एकबार यही प्रश्न उठा था. मुस्लिम नेता ने कहा कि हमारी बेटियां सुन्दर हैं उन्हें हिन्दू ले लेंगे. परन्तु हमें अपनी बेटी कौन हिन्दू देगा. उस समय वहां हजारों की संख्या में हिन्दू उपस्थित थे परन्तु एक भी खड़ा नहीं हुआ. उस घटना को लगभग 50 साल हो चुके हैं. मेवात में हिन्दूओं की सैंकड़ों बेटियां लव जेहाद का शिकार हो कर मुस्लिम बन चुकी हैं. अब यह समस्या लाइलाज बन चुकी है क्योंकि 1980 के बाद आए पेट्रोडालर ने बाजी ही पलट दी है. सऊदी पैसा आने के बाद उत्तरप्रदेश से सैंकड़ों इमाम मेवात की मस्जिदों में आए और इनकी विचारधारा ही बदल दी.

स्वामी श्रद्धानन्द जी अपनी पुस्तक हिन्दू संगठन में लिखते हैं–
राजपूताना ( आज का राजस्थान) से कुछ युवक मेरे पास आए और मुझे सन्यासी समझ कर प्रणाम किया. मैंने उन्हें हिन्दू समझा. उन्होंने अपने सिर पर टोपी उतार कर चोटी भी दिखाई .मैंने उन्हें शुद्धि की आवश्यकता के बारे में बताया. तभी कोई आया और उसने मुझे बताया कि ये युवक मुस्लिम हैं. उसके बाद मैंने सोचा इनकी कैसी शुद्धि? इन्होने तो अत्यन्त कठिन परिस्थिति में भी अपना धर्म नहीं छोड़ा. प्रायश्चित तो हिन्दू समाज को करना चाहिए जिन्होंने अपने भाइयों को अलग कर दिया.

एक अन्य उदाहरण देखिए –
दक्षिण भारत में  भयंकर हिन्दू मुस्लिम दंगा हुआ. अनेकों हिन्दूओं को जबरदस्ती मुस्लिम बनाया गया. दंगा शांत होने के बाद उत्तर भारत से लोग गए.  उनमे 2 मुख्य थे
1- करपात्री जी महाराज 2 – प्रिंसिपल लक्ष्मी जी (स्वामी विद्यानन्द जी)
करपात्री जी ने कहा – जिसे मुस्लिम बना लिया गया है यदि वह हिन्दू बनना चाहता है तो उसे एक पाव गाय का गोबर खाना पड़ेगा. ( यह जानकारी उस समय की मैगजीन में भी छपी थी)
प्रिंसिपल लक्ष्मी जी आर्य समाज से थे. उन्होंने कहा- जो अपने को हिन्दू मानता है वह हिन्दू है. उसे कोई प्रायश्चित की जरूरत नहीं है.
आज की स्थिति देखिए

श्री एम0 मुजीब ने अपनी पुस्तक ‘दी इडियन मुस्लिम‘ में कई उदाहरण देते हुये किया है और विस्तार से बताया है कि धर्म बदलने के बाबजूद मुसलमानों ने अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों में हिंदू तहजीब को अपनाये रखा। उन्होंनें लिखा है-
‘ करनाल में 1865 तक बहुत से मुस्लिम किसान अपने पुराने गांवों के देवताओं की पूजा करते थे और साथ ही मुसलमान होने के कारण कलमा भी पढ़ते थे। इसी तरह अलवर और भरतपुर के मेव और मीना मुसलमान तो हो गये थे पर उनके नाम पूर्णरुपेण हिंदू होते थे और अपने नाम के साथ वो खान लगाते थे। ये लोग दीपावली, दुर्गापूजा, जन्माष्टमी तो मनाते ही थे साथ ही कुएं की खुदाई के वक्त एक चबूतरे पर हनुमान की पूजा करते थे। मेव भी हिंदुओं की तरह अपने गोत्र में शादी नहीं करते। मीना जाति वाले मुस्लिम भैरो (शिव) तथा हनुमान की पूजा करते थे और (क्षत्रिय हिंदुओं की तरह) कटार से शपथ लेते थे।

बूंदी राज्य में रहने वाले परिहार मीना गाय और सूअर दोनों के गोश्त से परहेज करते थे। रतलाम से लगभग 50 मील दूर जावरा क्षेत्र में कृषक मुसलमान शादी के समय हिंदू रीति-रिवाज को मानतें है.


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