प्राचीनकाल में भारत विश्व गुरु रहा है इस विषय पर अब कोई शक की गुंजाईश नहीं रही है क्योंकि अब तो पश्चिमी देशों द्वारा पूरे विश्व के प्राचीन काल के संदर्भ में की गई रिसर्च में भी यह तथ्य उभरकर सामने आ रहे हैं। भारत क्यों और कैसे विश्व गुरु के पद पर आसीन रहा है, इस संदर्भ में कहा जा रहा है कि भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के नियमों के आधार पर भारतीय नागरिक समाज में अपने दैनंदिनी कार्य कलाप करते रहे हैं। साथ ही, भारतीयों के डीएनए में आध्यतम पाया जाता रहा है जिसके चलते वे विभिन्न क्षेत्रों में किए जाने वाले अपने कार्यों को धर्म से जोड़कर करते रहे हैं। लगभग समस्त भारतीय, काम, अर्थ एवं कर्म को भी धर्म से जोड़कर करते रहे हैं।
प्राचीनकाल में भारत में राजा का यह कर्तव्य होता था कि उसके राज्य में निवास कर रही प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट नहीं हो और यदि किसी राज्य की प्रजा को किसी प्रकार का कष्ट होता था तो वह नागरिक अपने कष्ट निवारण के लिए राजा के पास पहुंच सकता था। परंतु, जैसे जैसे राज्यों का विस्तार होने लगा और राज्यों की जनसंख्या में वृद्धि होती गई तो उस राज्य में निवास कर रहे नागरिकों के कष्टों को दूर करने के लिए धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन भी आगे आने लगे एवं नागरिकों के कष्टों को दूर करने में अपनी भूमिका का निर्वहन करने लगे। समय के साथ साथ धनाडय वर्ग भी इस पावन कार्य में अपनी भूमिका निभाने लगा। फिर, और आगे के समय में एक नागरिक दूसरे नागरिक की परेशानी में एक दूसरे का साथ देने लगे। परिवार के सदस्यों के साथ पड़ौसी, मित्र एवं सह्रदयी नागरिक भी इस प्रक्रिया में अपना हाथ बंटाने लगे। इस प्रकार प्राचीन भारत में ही व्यक्ति, परिवार, पड़ौस, ग्राम, नगर, प्रांत, देश एवं पूरी धरा को ही एक दूसरे के सहयोगी के रूप में देखा जाने लगा। “वसुधैव कुटुंबकम”, “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय”, “सर्वे भवंतु सुखिन:” का भाव भी प्राचीन भारत में इसी प्रकार जागृत हुआ है। “व्यक्ति से समष्टि” की ओर, की भावना केवल और केवल भारत में ही पाई जाती है।
वर्तमान काल में लगभग समस्त देशों में चूंकि समस्त व्यवस्थाएं साम्यवाद एवं पूंजीवाद के नियमों पर आधारित हैं, जिनके अनुसार, व्यक्तिवाद पर विशेष ध्यान दिया जाता है और परिवार तथा समाज कहीं पीछे छूट जाता है। केवल मुझे कष्ट है तो दुनिया में कष्ट है अन्यथा किसी और नागरिक के कष्ट पर मेरा कोई ध्यान नहीं है। जैसे यूरोपीयन देश उनके ऊपर किसी भी प्रकार की समस्या आने पर पूरे विश्व का आह्वान करते हुए पाए जाते हैं कि जैसे उनकी समस्या पूरे विश्व की समस्या है परंतु जब इसी प्रकार की समस्या किसी अन्य देश पर आती है तो यूरोपीयन देश उसे अपनी समस्या नहीं मानते हैं। यूरोपीयन देशों में पनप रही आतंकवाद की समस्या पूरे विश्व में आतंकवाद की समस्या मान ली जाती है।
आज संघ कामना कर रहा है कि पूरे विश्व में निवास कर रहे प्राणी शांति के साथ अपना जीवन यापन करें एवं विश्व में लड़ाई झगड़े का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अतः हिंदू सनातन संस्कृति का पूरे विश्व में फैलाव, इस धरा पर निवास कर रहे समस्त प्राणियों के हित में है। इस संदर्भ में आज हिंदू सनातन संस्कृति को किसी भी प्रकार का प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि अब तो विकसित देशों द्वारा की जा रही रिसर्च में भी इस प्रकार के तथ्य उभर कर सामने आ रहे हैं कि भारत का इतिहास वैभवशाली रहा है और यह हिंदू सनातन संस्कृति के अनुपालन से ही सम्भव हो सका है। अतः आज विश्व में शांति स्थापित करने के उद्देश्य से हिंदू सनातन संस्कृति को पूरे विश्व में ही फैलाने की आवश्यकता है।
उक्त संदर्भ में संघ द्वारा नवम्बर 2025 से जनवरी 2026 के दौरान किन्हीं तीन सप्ताह तक बड़े पैमाने पर घर घर सम्पर्क अभियान की योजना बनाई गई है, इसका विषय “हर गांव, हर बस्ती, हर घर” होगा। साथ ही, संघ द्वारा समस्त मंडलों और बस्तियों में हिंदू सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। इन सम्मेलनों में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के जीवन में एकता और सद्भाव, राष्ट्र के विकास में सभी का योगदान और पंच परिवर्तन में प्रत्येक नागरिक की भागीदारी, का संदेश दिया जाएगा। प्रत्येक खंड एवं नगर स्तर पर सामाजिक सद्भाव बैठकें भी आयोजित की जाएंगी, इन बैठकों में एक साथ मिलकर रहने पर बल दिया जाएगा। इन बैठकों का उद्देश्य सांस्कृतिक आधार और हिंदू चरित्र को खोए बिना आधुनिक जीवन जीने का संदेश देना होगा। प्रयागराज में हाल ही में सम्पन्न महाकुम्भ में समस्त क्षेत्रों में लोग एक साथ आए थे, किसी को भी किसी नागरिक की जाति, मत, पंथ, आदि की जानकारी नहीं थी। विभिन्न नगरों के संभ्रांत नागरिकों के साथ संवाद कार्यक्रम भी आयोजित किए जाने की योजना बनाई जा रही है। इसी प्रकार, युवाओं के लिए भी राष्ट्र निर्माण, सेवा गतिविधियां एवं पंच परिवर्तन पर केंद्रित विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाने की योजना विभिन्न प्रांतों द्वारा तैयार की जा रही है।
आज भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तरह अन्य धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठनों को भी आगे आकर मां भारती को एक बार पुनः विश्व गुरु के रूप में प्रतिष्ठित करने में अपना योगदान देने की आवश्यकता है।
प्रहलाद सबनानी
सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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