29 जनवरी 1528: चंदेरी में बाबर का विध्वंस : 1500 क्षत्राणियों का जौहर
भारतीय इतिहास के कुछ पन्ने रक्त से ऐसी रंजित घटनाओं से भरे हैं जिनका विवरण आज भी रोंगटे खड़े देता है । ऐसा ही एक विवरण चंदेरी का है जहाँ लाशों के ढेर लगाकर आक्रांताओं ने अट्टास किया ।
मध्यप्रदेश में ग्वालियर संभाग के अंतर्गत अशोक नगर जिले में स्थित है। यह वही चंदेरी है जो पूरे संसार में अपनी साड़ियों की शिल्पकला के लिये प्रसिद्ध है । उन दिनों भी यह वस्त्र कला निर्माण ही नहीं व्यवसाय का भी एक बड़ा केन्द्र था । चंदेरी में यह विध्वंश मुगल हमलावर बाबर ने किया था । बाबर ने चंदेरी में केवल विध्वंस ही नहीं किया था बल्कि जिन सैनिकों और नागरिकों को जान बख्शी का आश्वासन देकर समर्पण कराया था उन सब बंदियों के शीश काटकर ऊँचा पहाड़ बनाया था। फिर कटे हुये असंख्य शीश के उस पहाड़ पर अपनी जीत का झंडा फहराया था । निर्दोष स्त्री बच्चों को पकड़ कर गुलाम बनाया था, अत्याचार किये थे और कुछ को गुलामों के बाजार में बेचने के लिये खुरासान भेज दिया था और इसी विध्वंस के बीच अपने स्वत्व की रक्षा केलिये महरानी मणिमाला ने 1500 क्षत्राणियों तथा अन्य स्त्रियों के साथ जौहर किया था। इस जौहर की स्मृति को एक स्मारक के रूप में चंदेरी किले में सहेज लिया गया है । इस स्मारक पर पहुँचते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं, शरीर में सिरहन भी पैदा होती हैं ।
यह युद्ध वर्ष 1528 जनवरी के अंतिम सप्ताह में हुआ था । किसी विश्वासघाती द्वारा चंदेरी दरबाजा खोलने की तिथि 28 और 29 जनवरी के बीच की रात है । रात भर वीरों का खून बहा, स्त्रियों की चिता जली, इसलिये कुछ इतिहासकारों ने विध्वंस की तिथि 28 जनवरी मानी और कुछ ने 29 जनवरी 1528 माना ।
उन दिनों चंदेरी पर प्रतिहार वंशीय शासक मेदनीराय का शासन था । अंतराष्ट्रीय रेशम के व्यापार का बड़ा केन्द्र के रूप में भी चंदेरी की ख्याति रही है । मेदिनीराय अपनी सेना लेकर चितौड़ के शासक राणा साँगा की कमान में बाबर से युद्ध करने के लिये खानवा के मैदान में गये थे। चित्तौड से कुछ रिश्तेदारियाँ भी थीं। राणा साँगा मेदनीराय को पुत्रवत् मानते थे । दुर्योग से खानवा के युद्ध में राणाजी की पराजय हुई । इस युद्ध में राणा जी की हार के दो कारण रहे एक तो उनकी सेना में विश्वासघात और दूसरा बाबर ने अपने तोपखाने के आगे गायों को बाँध कर खड़ा कर दिया था । गायों को सामने देखकर राणाजी का तोपखाना रुक गया । बाबर की रणनीति काम आई । बाबर का तोपखाना गरज उठा और युद्ध का नक्शा ही बदल गया । राणा जी के घायल होकर निकल जाने के बाद बाबर ने अपनी जीत का जश्न मनाया । बाबर ने उन सभी राजपूत राजाओं के दमन का अभियान चलाया जो राणा साँगा की कमान में बाबर से युद्ध करने खानवा पहुँचे थे । इनमें मेदिनीराय का नाम प्रमुख था । खानवा युद्ध के बाद मेदिनी राय चंदेरी लौट आये और राणा जी के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा करने लगे ।
चंदेरी अभियान के लिये बाबर 9 दिसम्बर 1527 को सीकरी से रवाना हुआ । इसकी खबर मेदिनी राय को लग लग गयी थी उन्होंने सहायता के लिये मालवा के अन्य राजाओं को संदेश भेजे और आवश्यक सामग्री एकत्र करके स्वयं को किले में सुरक्षित कर लिया था। चंदेरी का यह किला पहाड़ी पर बना है । इसकी गणना देश के अति सुरक्षित किलों में की जाती है । बाबर और उसकी फौज रास्ते भर लूट हत्याएँ और बलात्कार करती हुई आगे बढ़ी और 20 जनवरी 1528 को चंदेरी पहुँची । बाबर ने रामनगर तालाब के पास अपना कैंप लगाया और दो संदेश वाहक शेख गुरेन और अरयास पठान को राजा मेदिनी राय के पास भेजा ।
संदेश वाहकों ने तीन संदेश दिये एक मुगलों की आधीनता स्वीकार करो और मुगलों के सूबेदार बनों दूसरा चंदेरी का किला खाली करदो इसके बदले कोई दूसरा किला ले लो और तीसरा रनिवास एवं मालखाने का पूर्ण समर्पण । स्वाभिमानी मेदनी राय ने शर्तों को अस्वीकार कर दिया । मेदिनी राय को लगता था कि बाबर की फौज पहाड़ी न चढ़ पायेगी । लेकिन बाबर के पास तोपखाना और बारूद का पर्याप्त भंडार था । उसने पहाड़ी काटकर रास्ता बना लिया था और किले के दरबाजे तक आ गया । दूसरी तरफ राजपूतों के पास न बारूद था न तोपखाना । उनके पास तीर कमान, तलवार, भाला या आग के गोलों के अतिरिक्त कुछ नहीं था । वह 26 जनवरी 1528 की तिथि थी जब समर्पण के लिये बाबर का अंतिम संदेश राजा मेदिनीराय को मिला ।
संदेश पाकर राजा ने रणभेरी बजाने का आदेश दिया । 27 जनवरी से युद्ध आरंभ हुआ पर मुगलों के तोपखाने के सामने राजपूत सेना कमजोर पड़ी । बाहर घेराबंदी भी तगड़ी थी । राजा घायल हो गये उन्हे किले के भीतर लाकर पुनः किले के द्वार बंद कर दिये गये । 28 जनवरी को दिन भर बाबर का तोपखाना चंदेरी किले दीवार पर गरजता रहा । दीवार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गयी थी । महारानी मणिमाला को भविष्य का अंदाजा हो गया । उन्होंने जौहर करने का निर्णय लिया । वे किले के भीतर विराजे महाशिव के मंदिर में चली गई । उनके साथ राज परिवार और किले एवं नगर की अन्य स्त्रियाँ भी थीं। जिनकी संख्या 1500 से अधिक लिखी है ।
सभी स्वाभिमानी स्त्रियों ने पहले शिव पूजन किया फिर स्वयं को अग्नि को समर्पित कर दिया । यह जौहर 28 और 29 जनवरी की मध्य रात्रि से आरंभ हुआ । जिस समय ये देवियाँ जौहर कर रहीं थी तभी किसी विश्वासघाती ने किले का दरबाजा खोल दिया । मुगलों की फौज भीतर आ गयी । किले के भीतर यूँ भी मातम जैसा माहौल था । जिसके हाथ में जो आया उससे मुकाबला करने लगा । पर यह युद्ध नाममात्र का रहा । रातभर मारकाट हुई । हमलावरों ने किले के भीतर किसी पुरूष को जीवित न छोड़ा । जो स्त्रियाँ जीवित मिलीं उन्हें और बच्चों बंदी बना लिया गया । 29 जनवरी की सुबह बाबर ने किले में प्रवेश किया । जौहर की लपटें तेज थीं। चारों ओर लाशें बिखरी पड़ीं थीं । सारी लाशे एकत्र की गयीं । उनके के शीश काटे गये, सिरों का ढेर लगाया गया और उस पर मुगलों का ध्वज फहराया गया । बाबर चंदेरी में पन्द्रह दिन रुका । किले में खजाना खोजा गया । आसपास जहाँ तक बन पड़ा लूटपाट की गयी । लाशों के ढेर किले और नगर में ही नहीं गांवो में भी लगे । मकानों को ध्वस्त किया गया । यातनायें देकर छुपा हुआ धन वसूला गया । अपने एक जमादार अय्यूब खान को चंदेरी का सूबेदार बनाकर बाबर लौट गया
(इस युद्ध और जौहर का वर्णन लेखक देवी सिंह ने “प्रतिहारों का इतिहास” पुस्तक में विस्तार से है । जबकि युद्ध वर्णन ग्वालियर और गुना जिले के गजट में भी है । चंदेरी में जौहर स्थल भी बना है वहां महिलाएं पूजन करने भी जातीं हैं)