बाल सोच को नई दृष्टि प्रदान करती बाल कहानियां
बालमन की जिद्द पर आधारित कहानी ” कच्ची पौध” एक अत्यंत शिक्षा प्रदान है । कभी भी जीव जंतुओं को पालतू बना कर उनके प्राकृतिक वातावरण का हनन नहीं करना चाहिए। उन्हें प्रकृति के बीच रहना ही अच्छा लगता है। यह जन्म दिन पर उपहार के जिद्द से शुरू हुई कहानी है जिसमें मीहू कछुआ उपहार में लेने की ठान लेती है और अपने दादा से कछुआ लाने को कहती है, जो श्रीनाथद्वारा गए हैं। वह उनसे फोन पर कहती है वहां एक कुंड में बहुत सारे कछुए हैं, मेरे जन्म दिन पर उपहार के लिए एक कछुआ लेकर आना। इधर वह और उसके तीन दोस्त सभी आने वाले कछुए के रहने के लिए ईंट का ढांचा बना कर उसके लिए पीने का पानी और खाने की व्यवस्था में जुट जाते हैं।
दादा आ कर बताते हैं ,पुलिस वाले ने उन्हें कछुआ नहीं लाने दिया। उसने कहा ये प्राकृतिक वातावरण में जल और थल दोनों पर रहते हैं। इन्हें पालतू बनाना उचित नहीं है। मेहू उदास हो कहती है और कहती है कि उसने तो कछुए को रखने का पूरा प्रबंध कर लिया है। तब दादा अपने मोबाइल में लाए कछुओं के चित्र उन्हें दिखा कर पूछते हैं क्या तुम इनके लिए पानी में रहने की व्यवस्था कर सकती थी ? तब मेहू कहती है ” सही है, इतनी व्यवस्था तो हम नहीं कर सकते ।” दादा कहते हैं ” तो उसे पालने की बात भूल जाओ । तुम्हारा पालना उसे कैदी बना देगा। क्या तुम कछुए के साथ ऐसा करना पसंद करोगे। चारों दोस्त अब चुप, टकटकी लगाए बनाए गए ईंट के घर को देख रहे थे।
बच्चों को दिशा देती देश की प्रसिद्ध बाल साहित्यकार सलूंबर निवासी डॉ. विमला भंडारी द्वारा लिखित बाल कहानी संग्रह ” मस्तानों की टोली ” बारह बाल कहानियों की एक ऐसी कृति है जो बातों – बातों में बच्चों को कोई न कोई सीख दे कर उनकी सोच को एक नई दृष्टि प्रदान करती है। एक कहानी के शीर्षक मस्तानो की टोली के नाम पर कृति का नाम रखा गया है। भाषा और शब्द शिल्प इतना सहज और सरल है कि बच्चों के दिल और मन पर आसानी से उतर जाए। कहानियां बाल मनोविज्ञान पर खरी उतरती हैं। बुधवार 8 जनवरी को इस पुस्तक सहित कुछ और बाल पुस्तकें डाक से प्राप्त हुई। इस पुस्तक को हाथों हाथ पढ़ डाली।
कृति की विशेषता है लेखिका के विचार। वे अपने लेखकीय में कहानियों का संकेत कुछ इस प्रकार देती हैं कि बच्चों को उन्हें पढ़ने की स्वाभाविक जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है। वे कहानियों के प्रसंग लिख कर एक प्रश्न बच्चे के सामने उछाल देती है, जो पूरी कहानी पढ़ने के लिए बाल मन में एक ललक पैदा कर देता है। उनका प्रस्तुतिकरण कृति की आत्मा कह सकते हैं।
संग्रह की कहानी “लापता हुआ पैकेट ” एक बच्चे रोहित की समझ और उनके चिंतन की ऐसी कहानी है जो बच्चों को एक दिशा बोध देती है कि खाने की चीजों को बेकार कचरे में न फेंक कर, किसी भूखे को खाने के लिए दें। यह दिशा बोधक कहानी रसोई में कागज में लपेट कर रखी गई रोटी के पैकेट के इर्दगिर्द लिखी गई है। रसोई से गायब हुए इस पैकेट की जब कोई भी जिम्मेदारी नहीं लेता तो लता एक तरकीब निकालती है।
वह खाना बनाने के बाद एक रोटी का कागज में लपेट कर पैकेट बना कर फिर से रखी है। अब वह इस पर नजर रखती है। बेटे रोहित ने अपने स्कूल का टिफिन ले कर अपने स्कूल बैग की जेब में रोटी का पैकेट रखने वाला ही था ,तब ही मम्मी ने उसका हाथ पकड़ लिया। रोहित अपनी माँ को कहता है मैं देखता था कि आप यह रोटी कई बार डस्टबिन में फेंक देती थी। मेरा एक दोस्त है जो टिफिन नहीं लाता। उसे भूख लगती है, वह भूखा रहता है। कल वह रोटी ले जाकर मैंने उसे दे दी, वह बहुत संतुष्ट हुआ। मैंने गलत तो नहीं किया मॉ ? लता ने अपने बेटे को गले से लगा लिया । कानों में रोहित के स्वर गूंज रहे थे , रोटी कचरे में बेकार जा रही थी। मैंने उसका अच्छा उपयोग किया। भूखे को रोटी दे कर ठीक किया ना !
कहानियों की इन कतिपय बानगी के साथ – साथ डोसा ने बदली आदत, बदलती तस्वीर , चमत्कारी पीला पत्थर, मस्तानों की टोली, एक के बाद एक, नेकी की राह, जेजू मैं आई, कुएं का मेढक, सांप की केचुली और सर्पराज की कुई कहानियां इस कृति की दिशा बोधक कहानियां हैं।
कृति के शीर्षक के अनुरूप का रंगीन आवरण पृष्ठ पर बच्चों की मस्ती खूब भाती है। आरंभ में बाल बुद्धि की मस्कत के लिए “आइस्क्रीम किस को मिलेगी” और “तितली को फूलों तक पहुंचाओं” मनोरंजनपूर्ण हैं। ” नए जगत के इस कहानी संसार में ” लेखिका ने बाल मन में कृति को पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न की हैं। कृति के 64 पृष्ठों में आकर्षक रेखा चित्रों से सजी कहानियां निश्चित ही लेखिका की बाल मनोविज्ञान पर गहरी समझ का प्रतीक हैं।
पुस्तक : मस्तानों की टोली ( बाल कहानी संग्रह)
लेखक : डॉ. विमला भंडारी, सलूंबर, राजस्थान
प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशन, दिल्ली
मूल्य : 160 ₹
संपर्क : मोबाइल
————
समीक्षक : डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा