Thursday, November 28, 2024
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मुसलमानों में शिया सुन्नी विवाद, जातियाँ , मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम देशों का सच

मुस्लिम समुदाय में “जाति” का विचार हिन्दू समाज की जाति व्यवस्था के समान नहीं है। इस्लाम धर्म का मूल सिद्धांत यह है कि सभी लोग अल्लाह के सामने समान हैं, और इस्लाम में किसी व्यक्ति का मूल्य उसके कर्मों और धार्मिकता पर आधारित है, न कि उसकी जाति, नस्ल या परिवार पर। हालांकि, विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक कारणों से मुसलमानों में भी कई तरह के समुदाय, समूह, और जातिगत विभाजन देखे जाते हैं।

मुस्लिम समाज के विभाजन के कुछ प्रमुख आधार:

  1. धार्मिक सम्प्रदाय (Sectarianism):
    • सुन्नी (Sunni): मुसलमानों का सबसे बड़ा समूह, जो पैगंबर मुहम्मद के चार खलीफाओं को स्वीकार करता है।
    • शिया (Shia): मुसलमानों का दूसरा सबसे बड़ा समूह, जो मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के बाद उनके उत्तराधिकारी हजरत अली और उनके वंशज हैं।
    • सूफी (Sufi): सूफी इस्लाम एक आध्यात्मिक आंदोलन है, जो इस्लाम में एक गहरे आध्यात्मिक अनुभव और ध्यान पर जोर देता है।
    • अहमदिया (Ahmadiyya): यह समुदाय पैगंबर मुहम्मद के बाद मिर्ज़ा गुलाम अहमद को मसीहा और महदी मानता है, हालांकि इसे सुन्नी और शिया मुसलमान मुख्यधारा का हिस्सा नहीं मानते।
    • सलफी (Salafi): यह समूह इस्लाम के शुरुआती तीन पीढ़ियों के जीवन शैली और विश्वासों का अनुसरण करने पर जोर देता है।
  2. सांस्कृतिक और जातीय विभाजन (Ethnic and Cultural Divisions):
    • मुसलमान विभिन्न जातीय और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों से आते हैं, और इनमें कई स्थानीय जातियाँ और उपजातियाँ होती हैं।
    • उदाहरण के लिए:
      • दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश): यहाँ मुसलमानों में अशरफ (उच्च जाति के मुसलमान जैसे सैयद, शेख, पठान, मुगल) और अजलाफ (अन्य जातियाँ) का भेद होता है। इसके अलावा, पिछड़ी जातियाँ और दलित मुस्लिम भी होते हैं।
      • अरब: अरब देशों में कबीलों (tribes) का विभाजन है, जैसे कुरैश, बानी हाशिम, आदि।
      • अफ्रीका: अफ्रीकी मुस्लिम समाजों में भी कई जातीय समूह होते हैं, जैसे कि स्वाहिली, हौसा, और बर्बर।
      • ईरान: यहाँ शिया मुसलमान बहुसंख्यक हैं, और कुर्द, अजरबैजान, बलूच जैसी जातीय समूह भी पाए जाते हैं।
  3. सामाजिक और आर्थिक वर्ग (Social and Economic Class):
    • कई मुस्लिम समाजों में सामाजिक और आर्थिक विभाजन भी देखा जाता है, जैसे कि अमीर और गरीब के बीच का फर्क, या शहर और गांव के निवासियों के बीच का अंतर।
  4. स्थानीय परंपराएं और उपसमूह (Local Traditions and Subgroups):
    • कई मुसलमान अपने क्षेत्रीय और स्थानीय संस्कृति के अनुसार अलग-अलग समुदायों में बँटे होते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में बोहरा, मेमन, और देओबंदी जैसी उपसमुदाय हैं।

शिया और सुन्नी की क्या पहचान है

इस्लाम के दो प्रमुख सम्प्रदाय हैं, जिनकी पहचान उनके धार्मिक विश्वासों और ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है। इन दोनों सम्प्रदायों के बीच कुछ ऐतिहासिक और धार्मिक अंतर हैं जो उनकी पहचान को अलग करते हैं।

  1. शिया (Shia):

शिया मुस्लिम इस्लाम के शुरुआती समय से ही हजरत अली और उनके वंशजों को पैगंबर मुहम्मद के असली उत्तराधिकारी मानते हैं। ‘शिया’ शब्द का मतलब है “अली के अनुयायी”। शिया मुसलमानों का मानना है कि इमामत (धार्मिक नेतृत्व) पैगंबर के परिवार में ही रहनी चाहिए, विशेषकर हजरत अली और उनके वंशजों में।

शिया समुदाय की प्रमुख पहचान:

  • इमामत का सिद्धांत: शिया मुसलमान 12 इमामों को मानते हैं, जो उनके अनुसार पैगंबर मुहम्मद के परिवार से चुने गए हैं।
  • हजरत अली और हुसैन की विशेष महत्ता: हजरत अली को पैगंबर मुहम्मद का सच्चा उत्तराधिकारी और उनके बेटे इमाम हुसैन को कर्बला की लड़ाई का शहीद माना जाता है, जिसका बहुत सम्मान है।
  • आशुरा का पर्व: कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के उपलक्ष्य में मुहर्रम के महीने में आशुरा मनाया जाता है, जिसमें शोक और मातम का माहौल होता है।
  • सिरात और पूजा पद्धति में फर्क: शिया मुस्लिमों की नमाज़ पढ़ने की शैली और उनके धार्मिक रीति-रिवाज सुन्नियों से थोड़े अलग हो सकते हैं, जैसे सजदा के लिए मिट्टी की टैबलेट का प्रयोग।
  1. सुन्नी (Sunni):

सुन्नी इस्लाम के अनुयायी मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के बाद उनके चार खलीफाओं (अबू बकर, उमर, उस्मान, अली) में से किसी को भी धार्मिक और राजनीतिक नेता के रूप में मान्यता दी जा सकती है। ‘सुन्नी’ शब्द ‘सुनना’ से आया है, जो पैगंबर मुहम्मद के जीवन और उनकी शिक्षाओं पर आधारित है।

सुन्नी समुदाय की प्रमुख पहचान:

  • खिलाफत का सिद्धांत: सुन्नी मुसलमानों का मानना है कि नेतृत्व (खिलाफत) समुदाय के विचार से चुना जा सकता है और यह पैगंबर के परिवार तक सीमित नहीं होना चाहिए।
  • चार खलीफाओं की मान्यता: अबू बकर, उमर, उस्मान, और अली को इस्लाम का प्रथम चार खलीफा माना जाता है, और सुन्नी इन सबको सम्मान देते हैं।
  • पूजा पद्धति: सुन्नी मुस्लिमों की नमाज़ पढ़ने की शैली थोड़ी अलग होती है, जैसे वे सीधा सजदा करते हैं और मिट्टी की टैबलेट का उपयोग नहीं करते।
  • सुन्नत और हदीस पर जोर: सुन्नी मुसलमानों के लिए हदीस (पैगंबर मुहम्मद की कहावतें) और सुन्नत (उनका जीवन तरीका) बहुत महत्वपूर्ण हैं।

मुख्य अंतर:

  • नेतृत्व: शिया समुदाय हजरत अली और उनके वंशजों को धार्मिक नेता मानता है, जबकि सुन्नी समुदाय में नेतृत्व किसी योग्य व्यक्ति को चुना जा सकता है।
  • धार्मिक प्रतीक: शियाओं में इमामों का बहुत उच्च स्थान है, विशेषकर इमाम हुसैन, जबकि सुन्नियों में खलीफाओं का सम्मान होता है।
  • आध्यात्मिकता और धार्मिक अनुष्ठान: शिया और सुन्नी मुसलमानों के धार्मिक अनुष्ठान, नमाज़ की शैली और अन्य आध्यात्मिक गतिविधियों में मामूली अंतर होते हैं

अहमदिया मुसलमान कौन हैं देवबंदी कौन हैं

अहमदिया और देवबंदी मुसलमान दो अलग-अलग धार्मिक समूह हैं, जो इस्लाम के विभिन्न दृष्टिकोणों और सिद्धांतों का पालन करते हैं। इन दोनों का संबंध इस्लाम से है, लेकिन उनकी मान्यताओं और धार्मिक शिक्षाओं में महत्वपूर्ण अंतर हैं।

  1. अहमदिया मुसलमान (Ahmadiyya Muslims):

अहमदिया इस्लाम का एक अलग समुदाय है, जिसकी स्थापना 19वीं सदी में मिर्ज़ा गुलाम अहमद (1835-1908) ने भारत के क़ादियान (अब पंजाब, भारत में स्थित) में की थी। अहमदिया समुदाय का मानना है कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद इस्लाम के मसीहा (मसीह) और महदी (धार्मिक नेता) हैं, जो इस्लामी दुनिया के उद्धारकर्ता के रूप में आए।

अहमदिया समुदाय की प्रमुख मान्यताएँ:

  • मिर्ज़ा गुलाम अहमद का मसीह और महदी होना: अहमदिया मुसलमानों का मानना है कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद वही मसीह और महदी हैं जिनकी भविष्यवाणी पैगंबर मुहम्मद ने की थी। वह इस्लाम के पुनरुत्थान और शांति के लिए आए थे।
  • अहमदिया समुदाय के दो प्रमुख संप्रदाय:
    • क़ादियानी: वे अहमदिया जो मानते हैं कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद पैगंबर थे।
    • लाहोरी: यह अहमदिया का एक अन्य समूह है, जो मिर्ज़ा गुलाम अहमद को केवल एक धार्मिक नेता और सुधारक मानता है, न कि पैगंबर।
  • खिलाफत (Caliphate): अहमदिया मुसलमान मानते हैं कि मिर्ज़ा गुलाम अहमद के बाद खिलाफत की एक प्रणाली बनी रहनी चाहिए, और अब भी अहमदिया समुदाय के पास खलीफा हैं जो उनके धार्मिक और सामाजिक जीवन का नेतृत्व करते हैं।
  • मुख्यधारा इस्लाम से मतभेद: अहमदिया मुसलमानों का यह दावा सुन्नी और शिया दोनों मुस्लिम समुदायों द्वारा अस्वीकार किया जाता है, जो मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के बाद कोई और नबी या मसीहा नहीं आ सकता। इस कारण, पाकिस्तान और कई अन्य देशों में अहमदिया मुसलमानों को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया है।
  1. देवबंदी मुसलमान (Deobandi Muslims):

देवबंदी एक सुन्नी इस्लामी आंदोलन है, जिसकी स्थापना 19वीं सदी में भारत के देवबंद (उत्तर प्रदेश) में हुई थी। यह आंदोलन दारुल उलूम देवबंद नामक एक धार्मिक संस्थान से शुरू हुआ, जो इस्लामिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया था। देवबंदी आंदोलन का उद्देश्य इस्लाम के सच्चे रूप को संरक्षित करना और इस्लामी कानून (शरिया) को मानने पर जोर देना था।

देवबंदी समुदाय की प्रमुख मान्यताएँ:

  • इस्लामी कानून (शरिया) का पालन: देवबंदी आंदोलन का उद्देश्य मुसलमानों को इस्लामी कानून के अनुसार जीवन जीने के लिए शिक्षित करना है। वे इस्लाम के कट्टरपंथी रूप को मानते हैं और इसे आधुनिकता से प्रभावित होने से बचाने की कोशिश करते हैं।
  • पैगंबर मुहम्मद के अंतिम नबी होने पर विश्वास: देवबंदी मुसलमानों का मानना है कि पैगंबर मुहम्मद इस्लाम के अंतिम नबी थे, और उनके बाद कोई और नबी नहीं आ सकता। इस मामले में, वे अहमदिया समुदाय से पूर्णतः असहमत हैं।
  • सूफी परंपरा से संबंध: देवबंदी इस्लाम में सूफी सिद्धांतों का प्रभाव है, लेकिन यह बहुत नियंत्रित और शुद्धतावादी दृष्टिकोण अपनाते हैं। वे इस्लाम के धार्मिक कर्तव्यों (जैसे नमाज़, रोज़ा) पर ज़ोर देते हैं।
  • राजनीतिक और धार्मिक प्रभाव: देवबंदी आंदोलन का प्रभाव भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, और अफगानिस्तान में गहराई से देखा जा सकता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के कई धार्मिक मदरसे देवबंदी विचारधारा के आधार पर चलते हैं।

देवबंदी और अन्य सुन्नी संप्रदायों में अंतर:

  • बरेलवी आंदोलन से मतभेद: देवबंदी मुसलमान बरेलवी मुसलमानों से धार्मिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण में भिन्न हैं। बरेलवी आंदोलन पैगंबर मुहम्मद की आध्यात्मिक शक्ति और सूफी संतों के प्रति अधिक श्रद्धा रखता है, जबकि देवबंदी इस्लाम अधिक शुद्ध और पारंपरिक इस्लामी मूल्यों पर ज़ोर देता है।
  • अहमदिया समुदाय मिर्ज़ा गुलाम अहमद को मसीह और महदी मानता है, जबकि देवबंदी पैगंबर मुहम्मद के बाद किसी और नबी को मान्यता नहीं देते।
  • अहमदिया का विश्वास सुन्नी और शिया दोनों मुख्यधारा से अलग है, और इन्हें कई इस्लामी देशों में गैर-मुस्लिम माना जाता है, जबकि देवबंदी सुन्नी इस्लाम का हिस्सा हैं और इसे एक शुद्ध और परंपरागत इस्लामी आंदोलन के रूप में देखा जाता है।

देवबंदी मुसलमान दो अलग-अलग धार्मिक समूह हैं, जो इस्लाम के विभिन्न दृष्टिकोणों और सिद्धांतों का पालन करते हैं। इन दोनों का संबंध इस्लाम से है, लेकिन उनकी मान्यताओं और धार्मिक शिक्षाओं में महत्वपूर्ण अंतर हैं। आइए इन दोनों समूहों के बारे में विस्तार से जानते हैं:

मुस्लिम राष्ट्र 

  1. सऊदी अरब और ईरान:

सऊदी अरब (सुन्नी बहुसंख्यक) और ईरान (शिया बहुसंख्यक) के बीच संबंधों में सबसे गहरा विरोध है। यह शिया-सुन्नी विभाजन, क्षेत्रीय प्रभुत्व और धार्मिक नेतृत्व की लड़ाई पर आधारित है।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • धार्मिक विभाजन: सऊदी अरब सुन्नी इस्लाम के कट्टरपंथी वहाबी संस्करण का पालन करता है, जबकि ईरान शिया इस्लाम का प्रमुख केंद्र है। ये दोनों राष्ट्र इस्लामी दुनिया में अपने-अपने धार्मिक प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश करते हैं।
  • क्षेत्रीय प्रभुत्व: सऊदी अरब और ईरान मध्य पूर्व में सबसे शक्तिशाली मुस्लिम राष्ट्र बनना चाहते हैं। दोनों देश यमन, सीरिया, इराक और लेबनान जैसे देशों में परोक्ष रूप से एक दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं।
    • यमन में संघर्ष: सऊदी अरब यमन में हादी सरकार का समर्थन करता है, जबकि ईरान हूती विद्रोहियों का समर्थन करता है, जो शिया हैं।
    • सीरिया में संघर्ष: सऊदी अरब ने सीरिया में बशर अल-असद की सरकार का विरोध किया, जबकि ईरान ने असद की सरकार का समर्थन किया।
  • आर्थिक और सैन्य प्रतिस्पर्धा: दोनों देश तेल के उत्पादन में प्रमुख हैं, और अपने-अपने आर्थिक और सैन्य प्रभाव का विस्तार करना चाहते हैं।
  1. कतर और सऊदी अरब (तथा उसके सहयोगी देश):

कतर और सऊदी अरब के बीच भी तनाव रहा है, खासकर 2017 में, जब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), बहरीन, और मिस्र ने कतर पर राजनीतिक और आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • कतर का मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ समर्थन: सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों का मानना है कि कतर मुस्लिम ब्रदरहुड जैसे इस्लामी समूहों का समर्थन करता है, जिन्हें वे अपने लिए खतरा मानते हैं।
  • कतर का ईरान से संबंध: कतर और ईरान के बीच भी अच्छे संबंध हैं, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में, जो सऊदी अरब के लिए चिंता का कारण है।
  • अल जज़ीरा: कतर स्थित समाचार चैनल अल जज़ीरा ने कई अरब देशों की आलोचना की है, जिससे कई देश नाराज हुए हैं।
  1. तुर्की और सऊदी अरब (तथा UAE):

हाल के वर्षों में तुर्की और सऊदी अरब, तथा UAE के बीच भी तनाव बढ़ा है।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • क्षेत्रीय नेतृत्व की लड़ाई: तुर्की राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोआन के नेतृत्व में इस्लामी दुनिया में अपनी राजनीतिक और धार्मिक स्थिति को मजबूत करना चाहता है, जो सऊदी अरब और UAE के लिए खतरा है।
  • मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन: तुर्की मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन करता है, जबकि सऊदी अरब और UAE इसे एक आतंकवादी संगठन मानते हैं।
  • कट्टरपंथी इस्लाम बनाम उदारवाद: तुर्की का इस्लामिक शासन मॉडल और राजनीतिक दृष्टिकोण सऊदी अरब और UAE के अपेक्षाकृत रूढ़िवादी दृष्टिकोण से अलग है। यह विशेष रूप से अरब वसंत (Arab Spring) के बाद देखा गया, जहां तुर्की ने कई इस्लामी सरकारों का समर्थन किया।
  1. सऊदी अरब और कतर बनाम सीरिया और हिजबुल्लाह:

सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान, सऊदी अरब और कतर ने सीरियाई विपक्ष का समर्थन किया, जबकि सीरिया की बशर अल-असद सरकार को ईरान और लेबनान स्थित हिजबुल्लाह का समर्थन मिला।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • बशर अल-असद का शासन: सऊदी अरब और कतर ने सीरियाई विपक्षी ताकतों को समर्थन दिया, क्योंकि वे बशर अल-असद के शासन को हटाना चाहते थे। असद सरकार को ईरान और हिजबुल्लाह से समर्थन मिला।
  • हिजबुल्लाह का बढ़ता प्रभाव: हिजबुल्लाह, एक शिया संगठन है, जिसे ईरान से समर्थन मिलता है। यह संगठन लेबनान और सीरिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसे सऊदी अरब और कतर खतरे के रूप में देखते हैं।
  1. सऊदी अरब और यमन:

सऊदी अरब और यमन के हूती विद्रोहियों के बीच तनाव 2015 से चल रहा है, जब सऊदी अरब ने यमन में हस्तक्षेप किया।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • हूती विद्रोहियों का ईरान से समर्थन: हूती विद्रोही, जो शिया ज़ैदी समुदाय से हैं, ईरान से समर्थन प्राप्त करते हैं। सऊदी अरब इसे अपने लिए एक बड़ा खतरा मानता है और इसलिए यमन की हादी सरकार का समर्थन करता है।
  • यमन में युद्ध: यमन में चल रहा गृहयुद्ध, सऊदी अरब और ईरान के बीच एक परोक्ष युद्ध (proxy war) के रूप में देखा जाता है, जिसमें सऊदी अरब हूती विद्रोहियों के खिलाफ लड़ रहा है।
  1. तुर्की और मिस्र:

तुर्की और मिस्र के बीच भी हाल के वर्षों में तनाव बढ़ा है, खासकर 2013 में मिस्र में अब्देल फतह अल-सिसी द्वारा मुस्लिम ब्रदरहुड की सरकार को हटाने के बाद।

विरोध के प्रमुख कारण:

  • मुस्लिम ब्रदरहुड का समर्थन: तुर्की ने मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड की सरकार का समर्थन किया था, जबकि सिसी ने इसे हटा दिया और ब्रदरहुड को कुचलने का काम किया। इससे तुर्की और मिस्र के बीच संबंध खराब हो गए।
  • लीबिया में हस्तक्षेप: तुर्की और मिस्र दोनों लीबिया में विरोधी गुटों का समर्थन कर रहे हैं, जो उनके बीच तनाव का एक और कारण है।

एक निवेदन

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