Monday, March 31, 2025
spot_img
Homeजियो तो ऐसे जियोलोरियों की मिठास और परंपरा को जीवनदान देने वाले योगीराज योगी

लोरियों की मिठास और परंपरा को जीवनदान देने वाले योगीराज योगी

( कोटा के बाल साहित्यकार योगिराज योगी से लेखक और पत्रकार डॉ. प्रभात कुमार सिंघल का साक्षात्कार )
सदियों से समाज में बच्चों को सुलाने के लिए प्रचलित लोरियां मौखिक साहित्य बन गया । कई साहित्यिक उद्धरण भी साहित्य में इनके महत्व को प्रतिपादित करते हैं। जब तक संयुक्त परिवार प्रचलन में रहे समाज में लोरियों का निरंतर महत्व बना रहा। एकल परिवार और महिलाओं का काम के लिए घर से बाहर जाने से इनका प्रचलन कम होने लगा। कई फिल्मों में यदाकदा जब लोरियां सुनाई पड़ती हैं तो कितना अच्छा लगता है और इसकी परम्परा याद आती है।
 इस विषय को ले कर क्या लोरियां का महत्व क्या है, क्या ये लुप्त हो रही हैं, लुप्त होने के कारण क्या हैं और साहित्य में इनकी क्या स्थिति है आदि प्रश्नों के अपने जवाब की शुरुआत वे एक अत्यंत लोकप्रिय लोरी से करते हैं……….
लल्ला लल्ला लोरी, दूध की कटोरी
दूध में बताशा, मुन्नी करे तमाशा
छोटी-छोटी प्यारी सुंदर परियों जैसी है
किसी की नज़र ना लगे मेरी मुन्नी ऐसी है
शहद से भी मीठी, दूध से भी गोरी
चुपके-चुपके चोरी-चोरी।
कहते हैं  यह वह लोरी है जो आज तक सभी की जुबान पर है। सभी प्रचलित लोरियों में यह आज भी शिद्दत से अपना अस्तित्व बनाए हुए है। लोरी को वे पालना गीत बताते हुए कहते हैं, इसका बच्चों के साथ भावनात्मक संबंध होता है। क्योंकि बच्चे का संसार में पहला परिचय माँ से होता है इसलिए बच्चा अपनी मां की बोली को पसंद करता है। खास बात यह है कि शब्द से ज्यादा बच्चों के मन को छूती है इसकी लय। मां जब गा-गा कर बच्चों को लोरी सुनाती है तो बच्चे को असीम आनंद मिलता है। चाहे वह शब्दों के अर्थ में अनजान है लेकिन लोरी की संगीतात्मक / लयात्मक शैली उसे रिझाती है। उसे सुखद एहसास दिलाती है। मां की लोरी में मातृभाषा की मिठास घुली होती है।
मां, दादी और नानी से सुनी ये लोरियां पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार का हिस्सा बनी रहती हैं।  लोरियों को सुनकर कभी हम नींद के आगोश में खो जाते थे । हम स्वयं भी चाहे कितने भी बड़े क्यों न हो जाएँ लेकिन लोरी सुनते ही हमें भी अपने बचपन की याद आ ही जाती है और हमारे होठों पर एक मधुर मुस्कान बिखर जाती है।
योगी कहते हैं लोरी के रूप में मां के मुंह से बाल साहित्य का उदय हुआ है। परंतु विडंबना यह है कि आज अधिकांश माताएं लोरियां नहीं जानती। लोरियां धीरे-धीरे पुरानी पीढ़ी से लुप्त होती जा रही हैं। संयुक्त परिवार टूटते जा रहे हैं,जिससे बच्चे परिवार में अकेलापन महसूस करने लगे हैं। वर्तमान समय में कई माताएं कामकाजी महिला की भूमिका में हैं, जिनके पास बच्चों के लिए समय का अभाव है। जबकि छोटे बच्चों को मां के ममत्व की, स्तनपान की व सान्निध्य की आवश्यकता सबसे ज्यादा होती है। ऐसी अवस्था में बच्चों को किसी आया के पास या पालना घर ( चाइल्ड केयर होम ) में छोड़ दिया जाता है। जहां उसे किसी प्रकार का भावनात्मक वात्सल्य नहीं मिलता है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं  जो माताएं घर पर रहती हैं, वे भी बच्चों के हाथ में मोबाइल का झुनझुना पकड़ा देती हैं तथा अपने दैनिक कार्य में व्यस्त हो जाती हैं। बच्चों को टीवी के सामने बिठाकर कार्टून फिल्म लगाकर फिर अपने काम में व्यस्त हो जाना, दिनचर्या का हिस्सा है। भौतिक परिवेश से प्रभावित आधुनिक जीवन शैली से भी माताएं प्रभावित नजर आती हैं।  लोरी तो दूर की बात , कई माताएं अपने बच्चों को स्तनपान तक नहीं करवाती। बच्चों को अपने इस अधिकार से वंचित रखती हैं। अधिकांश माताएं यह भ्रम पाले हुए है कि बच्चों को स्तनपान करवाने से उनकी खूबसूरती पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।  जबकि नवजात शिशु को मां की लोरी नींद की मीठी गोली के समान है जो उसे अच्छी नींद लेने में सहायक तो है ही, उसे मन ही मन आनंद भी देती है। मां का सान्निध्य बच्चों में सुरक्षा का भाव भी पैदा करता है जो उसके उत्तम स्वास्थ्य की निशानी है।
कुछ प्रसिद्ध लोरियों  की चर्चा कर योगी कहते हैं , इनका अस्तित्व कभी खत्म नहीं होगा, रूप बदल सकता है। हमारी फिल्मों ने कई परम्परागत लोरियां अपनाते हुए नई लोरियां भी बनाई है, जो लोक में प्रचलित हो गई। लोरिया महत्वपूर्ण बाल साहित्य का हिस्सा हैं।  गांवों में तो आज भी इनका प्रचलन देखने को मिलता है। यथा …….
नींद भरी रे गुलाल भरी…
नींद भरी रे गुलाल भरी,
मेरे लाडले की अंखियां नींद भरी
मेरे ललना की अंखियां नींद भरी…
मेरे ललना की अंखियां नींद भरी…
जगमग तारों की चुनरी ओढ़ी
निंदिया रानी आएगी दौड़ी…
निंदिया रानी आएगी दौड़ी…
सपनों में आएगी सोनपरी
मेरे लाड़ले की अंखियां नींद भरी
मेरे ललना की अंखियां नींद भरी
नींद भरी रे गुलाल भरी,
मेरे लाडले की अंखियां नींद भरी
राजा बेटा घोड़े पे करके सवारी
इक दिन लाएगा राजकुमारी…
इक दिन लाएगा राजकुमारी…
राजकुमारी होगी सुंदर परी…
मेरे लाडले की अंखियां नींद भरी…
नींद भरी रे गुलाल भरी,
मेरे लाडले की अंखियां नींद भरी…
 वह बताते हैं श्रीमती शकुंतला सिरोठिया बाल साहित्य व लोरी गीत की सशक्त हस्ताक्षर हैं । लोरी गीत रचनाओं के लिए इनका सदैव स्मरण किया जाएगा। शिशु गीतों / लोरियों पर इनकी कलम खूब चली है। इनकी लोरी का उदाहरण देते हैं….
सो जा गुड़िया रानी , तेरी कल कर दूंगी शादी ।
मधुर-मधुर मेरे द्वारे पर बजेगी खूब शहनाई ।
तुझे विदा करके रानी , आएगी मुझे रुलाई ।
तू मत रोना लेकिन गुड्डे के संग जाना ।
चंदा सा दूल्हा पाकर गुड़िया , दुल्हन का कम निभाना ।
कहते हैं एक उदाहरण और देखिए……
आ जा निदिया ,
चाँद की विंदिया , सो जा प्यारे लाल |
आँख बंद कर सो जा मुन्ना , तुझे सुनाऊँ लोरी |
चाँद लोक से परियां उतरी कुछ काली कुछ गोरी।
      ऐसे ही श्री कन्हैयालाल मत्त  हिंदी में लोरी गीत लिखने वाले अग्रणी कवियों में से हैं। इनकी लोरियों की पहली पुस्तक ‘लोरियांँ और बालगीत’ 1941 में प्रकाशित हुई। एक लोरी देखिए …….
सो जा भैया, सो जा बीर!
चाहे हंसता-हंसता सो जा,
चाहे रोता-रोता सो जा,
सो जा लेकर मेरी पीर!
सो जा भैया, सो जा बीर!
जो तू भूखा है, तो सो जा,
जाड़ा लगता है, तो सो जा,
कैसे तुझे बंधाऊं धीर!
सो जा भैया, सो जा बीर!
लाऊं तुझको दूध कहां से?
गद्दे-तकिए मिलें कहां से?
मिलता नहीं फटा भी चीर!
सो जा भैया, सो जा बीर!
भगवान, मेरा दुःख बंटाओ,
जल्दी आकर इसे सुलाओ,
पड़ी द्रौपदी की-सी भीर!
सो जा भैया, सो जा बीर!
      साहित्यिक प्रसंगों को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं,  भारतीय संस्कृति और धर्म शास्त्रों में सदियों से लोरियों का महत्व रहा है। गोस्वामी तुलसीदास गीतावली में लिखते हैं। माता कौशल्या बालक श्री राम को सुलाने के लिए लोरी गाती है ….
पौढ़िये लालन, पालने हौं झुलावौं ।
कर पद मुख चखकमल लसत लखि लोचन-भँवर भुलावौं ।
बाल-बिनोद-मोद-मञ्जुलमनि किलकनि-खानि खुलावौं ।
तेइ अनुराग ताग गुहिबे कहँ मति मृगनयनि बुलावौं ।।
तुलसी भनित भली भामिनि उर सो पहिराइ फुलावौं ।
चारु चरित रघुबर तेरे तेहि मिलि गाइ चरन चितु लावौं ।
      माता यशोदा बाल कृष्ण को सुलाने का जतन करने के लिए लोरी गाती है। सूरदास लिखते हैं ………
जसोदा हरि पालनै झुलावे।
हलरावै  दुलराइ मल्हावै, जोई सोई कछु गावै
मेरे लाल को आवु नींदरिया, काहे न आनि सुवावै
तू काहे न बेगहि आवै, तोकों कान्ह बुलावै।
      बताते हैं मार्कंडेय पुराण में 18 से 24 वें अध्याय में महारानी मदालसा का प्रसंग आता है जिसमें मदालसा ( विश्वावसु गन्धर्वराज की पुत्री ) अपने बच्चों  को सुलाने के लिए लोरी सुनाती है। मदालसा को लोरी की जननी कहा जाता है। इसका ब्रह्म ज्ञान जगत विख्यात है। पुत्रों को झुलाते ब्रह्म ज्ञान का उपदेश दिया था।
  आज के परिवेश के संदर्भ में उनका कहना है कि बच्चों को खेलकूद की उम्र में बस्ते के बोझ तले दबा दिया जाता है। जब बच्चा अपनी सूरत संभालता है तो देखता है कि उसका बचपन न जाने कहां गुम हो गया है। इन नन्हें मुन्ने बच्चों की मुट्ठी में बंद सपने पता नहीं कहां गुम हो गए हैं। आज हम महसूस करते हैं कि बच्चे अपनी उम्र से कहीं अधिक समझदार दिखने लगे हैं। यह इनकी अनुचित परवरिश का दुष्परिणाम है।  बच्चों को अपनी नैसर्गिक बाल सुलभ चेष्टाओं, क्रियाकलापों से वंचित रखा जाता है। आज बच्चे शरारती नहीं रहे, जो उनका बाल सुलभ गुण है।
अपनी बात को विराम देते हुए कहते हैं आवश्यकता इस बात की है कि माताएं अपने बच्चों को अपने ममत्व की छाया में संरक्षण प्रदान करें। उनकी उचित देखभाल हो, पर्याप्त खेलकूद का समय व पोषक तत्वों से युक्त पौष्टिक भोजन बच्चों को मिले यह सुनिश्चित हो तभी एक स्वस्थ बालक देश का योग्य, वीर, साहसी व संस्कार युक्त भावी नागरिक बन सकेगा।
एक अंतिम प्रश्न और क्या ऐसा समय भी आएगा कि लोरियां केवल साहित्य और फिल्मों में ही दिखाई देंगी और समाज से लुप्त हो जाएंगी ? उन्होंने कहा मेरा अपना मानना है कि वर्तमान सामाजिक व्यवस्था को देख कर
प्रतीत होता है कि चाहे इनका प्रचलन कितना भी कम क्यों न हो जाए इनका अस्तित्व खत्म नहीं होगा। साहित्य, संस्कृति और परंपराएं हमेशा जिंदा रहती हैं, ये लोरी की याद दिलाती रहेंगी। हां ! ग्रामीण इलाकों में इसका प्रचलन अभी भी कायम है। माना जाता है की लोरी सुनकर बच्चा बोलने का प्रयास भी करता है। लोरी सुनकर बच्चे में सुरक्षा का भाव बढ़ता है और वह संतुष्ट महसूस करता है।
—————-
योगीराज योगी
2-बी-15, महावीर नगर विस्तार योजना,
कोटा (राज.)324009

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार