वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया शंख क्षेत्र पुरी धाम में अक्षय तृतीया के रुप में अनुष्ठित होती है। 2025 की अक्षय तृतीया 30 अप्रैल को है।ओड़िशा प्रदेश की संस्कृति जगन्नाथ संस्कृति है जिसमें अक्षय तृतीया मनाने का प्रचलन ओड़िशा प्रदेश के घर-घर,गांव-गांव और शहर-शहर में अनादि काल से है।पुरी में अक्षय तृतीया के मनाये जाने की सुदीर्घ तथा अत्यंत गौरवशील परम्परा रही है। यह भगवान जगन्नाथ के प्रति ओड़िया लोक आस्था और विश्वास का प्रतीक है। प्रतिवर्ष अक्षय तृतीया के पवित्र दिवस पर पुरी धाम में भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के लिए नये रथों के निर्माण का कार्य आरंभ होता है। जगन्नाथ भगवान की विजय प्रतिमा मदनमोहन आदि की 21 दिवसीय बाहरी चंदनयात्रा चंदन तालाब में अनुष्ठित होती है।अक्षय तृतीया के दिन से ही ओड़िशा के किसान अपने-अपने खेतों में जुताई-बोआई का कार्य आरंभ करते हैं।स्कन्द पुराण के वैष्णव खण्ड के वैशाख महात्म्य में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जो वैष्णव भक्त अक्षय तृतीया के सूर्योदयकाल में प्रातः पवित्र स्नान कर भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करता है।उनकी कथा सुनता है वह मोक्ष को प्राप्त होता है।
राममय भारतवर्ष में अक्षय तृतीया मनाने का महत्त्व अलग-अलग रुपों में है। जैसेःअक्षय तृतीया के दिन को युगादि तृतीया कहते हैं।अक्षय तृतीया के दिन से ही त्रैतायुग तथा सत्युग का शुभारंभ हुआ था।अक्षय तृतीया के दिन से ही भगवान बदरीनाथजी का कपाट उनके भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया जाता है।सबसे बड़ी बात यह कि श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को अक्षय तृतीया महात्म्य की कथा सुनाई थी।
ओड़िशा के प्रत्येक सनातनी वैष्व के इष्टदेव, गृहदेव, ग्राम्यदेव तथा राज्य देव भगवान जगन्नाथ ही हैं।इसीलिए तो ओड़िशा में अक्षय तृतीया का विशेष सामाजिक और धार्मिक महत्त्व है।ऐसी बात कही जाती है कि अक्षय तृतीया के दिन ही द्वारकाधीश के बाल सखा सुदामा उनसे मिलने के लिए द्वारका गये थे।
अक्षय तृतीया के दिन पुरी धाम में श्रीजगन्नाथ भगवान को चने की दाल का भोग निवेदित किया जाता है। ओडिशा के सनातनी लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की चिर शांति हेतु अक्षय तृतीया के दिन फल, फूल आदि का दान करते हैं।जो भक्त अक्षय तृतीया के दिन सायंकाल भगवान जगन्नाथ को शर्बत निवेदित करता है वह अपने सभी पापों से शीघ्र मुक्त हो जाता है।अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री जगन्नाथ कथा श्रवण एवं दान- पुण्य का अति विशिष्ट महत्त्व माना जाता है।कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन जो भक्त भगवान जगन्नाथ की पूजा करता है,वह अपने पूरे कुल का उद्धारकर बैकुण्ठ लोक को प्राप्त करता है।
प्रतिवर्ष शंख क्षेत्र पुरी धाम में मनाई जानेवाली अक्षय तृतीया का सीधा संबंध भगवान जगन्नाथ में समस्त ओड़िशावासियों के अटूट विश्वास तथा जगन्नाथ संस्कृति में पूर्ण आस्था से है।