हिंदी साहित्य में अपनी मातृभाषा के उपयोग से परहेज़ नहीं हो – किशन प्रणय
कोटा / साहित्यकार को हिंदी साहित्य में अपनी मातृभाषा के उपयोग से परहेज़ नहीं करना चाहिए। फणीश्वर नाथ रेणु की पहचान उनकी मातृ बोली के साहित्य के कारण ही हुई है। यह विचार व्यक्त करते हुए मुख्य अतिथि युवा साहित्यकार किशन प्रणय ने कहा है कि अंग्रेजी भाषा में श्रृंगार जैसे विषय को समेटना आसान नहीं है ,लेखिका शिखा अग्रवाल ने यह कर दिखाया है। वे बुधवार को समरस संस्थान साहित्य सृजन भारत , गांधीनगर, गुजरात की कोटा इकाई द्वारा दादाबाड़ी कोटा में भीलवाड़ा की लेखिका शिखा अग्रवाल की आंग्ल भाषा में सृजित कृति ” फैशन एन इंस्टिंक्ट” के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि फैशन इंसान की उस मूल प्रवृत्ति का परिणाम है, जिसमें वह सुंदरता, रचनात्मकता, और आत्म-अभिव्यक्ति के लिए निरंतर प्रयास करता है। दस अध्यायों में विभाजित यह पुस्तक बताती है कि फैशन वैश्विक या किसी भी आंचलिक स्तर पर केवल कपड़ों या बाहरी दिखावे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह इंसानी व्यक्तित्व, भावनाओं, और समाज में अपने स्थान को अभिव्यक्त करती है।
समारोह के मुख्य वक्ता कथाकार और समीक्षक विजय जोशी ने कहा कि यह कृति प्राचीन, आधुनिक और पाश्चात्य श्रंगार पक्ष का सार है। लेखिका ने अधिक से अधिक जानकारी समेटने की कोशिश करते हुए इसे उपादेय बनाया है। उन्होंने कहां रचनाकार ने शृंगार की प्राचीन परंपरा से वर्तमान आधुनिक परंपरा को जोड़ते हुए युवाओं के लिए बॉलीवुड फैशन पर भी लिख कर कृति को युवाओं से जोड़ने का अनुपम प्रयास किया है।
आशीर्वचन में वरिष्ठ साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही ने कहा कि आदिकाल से ढोला मारू, क्रिसन रुक्मिणी वेली,हंसाऊली, आदि में श्रृंगार सामग्री अद्भुत है। खासतौर पर आजादी के बाद श्रृंगार साहित्य में गीतों ने विशेष स्थान पाया है। श्रृंगार के क्रम में मेरी कृति ” राजस्थानी काव्य में सिणगार”में आदिकाल से लेकर आज़ तक का श्रृंगार समकालीन काव्य और रचनाकारों को समेटने की कोशिश रही है। यह कृति श्रृंगार को लेकर विशेष सामग्री समेटे हुए है। युवाओं में शिखा अग्रवाल और किशन प्रणय प्रेरक का कार्य कर रहे हैं। एक दिन इनका देश में बड़ा नाम होगा।
आशीर्वचन में वरिष्ठ साहित्यकार रामेश्वर शर्मा रामू भैया ने कहा कि लेखिका ने आंग्ल साहित्य में शृंगार जैसे सरस विषय को जिस प्रकार क्रमबद्ध तरीके से रोचकता के साथ लिपिबद्ध किया है वह इनके साहित्यिक कौशल को बताता है। उन्होंने इसका अनुवाद हिंदी में करने का सुझाव दिया।
समरस संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और समारोह अध्यक्ष डॉ. शशि जैन ने कहा कि संस्थान ऐसे उभरते रचनाकारों को निरंतर प्रोत्साहन देता है। गांधीनगर गुजरात में कतिपय साहित्यकारों से शुरू किया गया यह संस्थान आज वट वृक्ष बन गया है और देश के विभिन्न राज्यों में इसके 80 हज़ार सदस्य हैं। संस्थान की कोटा इकाई के अध्यक्ष राजेंद्र कुमार जैन ने सभी का स्वागत किया।
लेखिका शिखा अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह पुस्तक फैशन का इतिहास, प्राचीन भारत में फैशन, आभूषणों, सोलह सिंगार, आंचलिक और जनजातीय लोकाचार के साथ – साथ बॉलीवुड में किए गए फैशन के प्रयोगात्मक तथ्यों को पाठक के सामने लाती हैं। पुस्तक की सामग्री उपलब्ध कराने में दिए गए सहयोग के लिए कोटा कथाकार और समीक्षक विजय जोशी तथा झालावाड़ के इतिहासकार ललित शर्मा का आभार जताया।
उन्होंने किए गए सम्मान के प्रति सभीसंस्थाओं और साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते हुए बताया कि इस कृति का शृंगार पर अन्य विविध जानकारियां सम्मिलित करते हुए हिंदी में संपादित संस्करण निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस वर्ष में हिंदी की पुस्तक सामने लाने का प्रयास है।
लेखिका का सम्मान :
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समरस संस्थान गांधी नगर की ओर से लेखिका शिखा अग्रवाल का सम्मान पत्र भेंट कर ,शाल ओढ़ा कर एवं प्रतीक चिन्ह से सम्मानित किया गया। आर्यन लेखिका मंच से रेखा पंचोली, डॉ अपर्णा पाण्डेय, श्यामा शर्मा, रंगितीका साहित्य संस्था कोटा से स्नेहलता शर्मा, रीता गुप्ता, डॉ वैदेही गौतम, रेणु सिंह राधे और केसर काव्य मंच की अध्यक्ष डा. प्रीति मीणा सहित विजय शर्मा एवं विजय महेश्वरी ने लेखिका शिखा अग्रवाल का माल्यार्पण और शाल ओढ़ा कर, प्रतीक चिन्ह भेंट कर सम्मान किया।
समारोह का प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया और डॉ. वैदेही गौतम और शशि जैन ने संयुक्त रूप से सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम का संचालन समरस संस्थान के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने किया।