Saturday, December 21, 2024
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शिव ने सती के शरीर को उठाकर किया विनाश का दिव्य तांडव नृत्य, बन गए 51 शक्तिपीठ

हिन्दू धर्म में देवी के 51 शक्ति पीठ हिंदुओं की देवी के प्रति गहन आस्था और विश्वास का प्रतीक हैं। भक्तगण पूरे वर्ष श्रद्धा के साथ इनके दर्शन करने जाते हैं। नवरात्रि के दिनों में भक्तों की अपार भीड़ एकत्रित होती हैं एवं धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। देवी के शक्तिपीठों के पीछे की प्रचलित कथा के अनुसार राज दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदंबिका ने जन्म लिया जिसका नाम सती रखा गया। सती ने बड़ी होकर भगवान शिव के साथ विवाह किया। कथानक के अनुसार दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और इसमें भगवान शिव और अपनी पुत्री माता सती को छोड़ कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती ने यज्ञ में उपस्थित होने की अपनी इच्छा शिव के सामने व्यक्त की, जिन्होंने उसे रोकने के लिए अपनी पूरी कोशिश की परंतु माता सती यज्ञ में चली गई। यज्ञ के पहुंचने के पश्चात माता सती का स्वागत नहीं किया गया।
 इसके अलावा, दक्ष ने शिव का अपमान किया। माता सती  अपने पिता द्वारा अपमान भरे शब्दों को सुन न सकी और उन्होंने अपने शरीर का बलिदान दे दिया। यज्ञ में हुए अपने अपमान और माता सती के बलिदान से क्रोधित होकर भगवान शिव ने वीरभद्र अवतार में दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया।  दुख में डूबे शिव ने सती के शरीर को उठाकर  विनाश का दिव्य तांडव नृत्य किया। अन्य देवताओं ने विष्णु को इस विनाश को रोकने के लिए हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया, जिस पर विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल करते हुए माता सती के देह के 51 टुकड़े कर दिए। शरीर के विभिन्न हिस्सें भारतीय उपमहाद्वीप के कई स्थानों पर गिरे और वह शक्ति पीठों के रूप में स्थापित हुए।
देवी के शक्ति पीठों की संख्या देवी भागवत पुराण में 108, कालिकापुराण में 26, शिवचरित्र में 51, दुर्गा शप्तसती और तंत्रचूड़ामणि में शक्ति पीठों की संख्या 52 बताई गई है। देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गयी है और यह सभी शक्तिपीठ बहुत पावन तीर्थ माने जाते हैं। वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ भारत, पाकिस्तान,  श्रीलंका और बांग्लादेश  के कई हिस्सों में स्थित है। भारत में 42 , बांग्लादेश में 4, नेपाल में 2, पाकिस्तान, श्रीलंका और तिब्बत में एक – एक शक्ति पीठ हैं।
 
भारत के शक्ति पीठ
1.जम्मू – कश्मीर में अमरनाथ गुफा महामाया शक्ति पीठ पहलगाव जिले में है जहां  माता का कंठ गिरा था।  महामाया का मंदिर लगभग 5000 हजार साल पुराना है। यहाँ माता को महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं। जम्मू और श्रीनगर सड़क के माध्यम से जुड़े हुए हैं।
 2.मां ज्वाला देवी मंदिर – कांगड़ा घाटी में माता ज्वालादेवी का मंदिर स्थित है। यहाँ माता को सिद्धिदा (अंबिका) और भैरव को उन्मत्त कहते हैं। यह हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी से 30 किमी और धर्मशाला से 60 किमी की दूरी पर है। यहां प्रज्वलित ज्वाला प्राकृतिक न होकर चमत्कारिक मानी जाती है। मन्दिर कारीगरी युक्त दर्शनीय है।
काली धर पर्वत की शांत तलहटी में बसे इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। मान्यता  है कि यहां देवी सती की जीभ गिरी थी जहां पर पृथ्वी गर्भ से नौ अलग-अलग जगह से ज्वाला निकल रही थी जिसके ऊपर ही मंदिर बन गया है इन नौ ज्योतियां को महाकाली ,अंत पूर्णा , चंडी , हिंगलाज , विद्यावाहिनी ,महालक्ष्मी सस्वरस्वति , अंबिक , आजीदेवी के नाम से जाना जाता है।
3. नैना देवी -हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में  स्थित, नैना देवी शक्तिपीठ की अपार महत्ता है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे ने से इसका नाम नैना देवी हो गया। देवी के मन्दिर  के र्गभ ग्रह में मुख्य तीन मूर्तियां हैं। दाई तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अने क शताब्दी पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाई ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है।
मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देती हैं। शेर माता का वाहन माना जाता है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है। मन्दिर पहाड़ी पर समुद्र तल से 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां पहुंचने के लिए चंडीगढ़ और पालमपुर तक रेल सुविधा है। इसके पश्चात बस, कार व अन्य वाहनो से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है। चंडीगढ देश के सभी प्रमुख शहरो से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। वर्तमान मे उत्तर भारत की नौ देवी यात्रा मे नैना देवी का छटवां दर्शन होता है।
वैष्णो देवी से शुरू होने वाली नौ देवी यात्रा मे माँ चामुण्डा देवी, माँ वज्रेश्वरी देवी, माँ ज्वाला देवी, माँ चिंतपुरणी देवी, माँ नैना देवी, माँ मनसा देवी, माँ कालिका देवी, माँ शाकम्भरी देवी सहारनपुर आदि शामिल हैं।
4. कर्नाट शक्तिपीठ भी कांगड़ा में स्थित है। यहां सती के दोनों कान गिरे थे। यहां देवी को जय दुर्गा एवं शिव को अबिरू रूप में पूजा जाता हैं।
5 बिहार में जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में मिथिला शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता का बायाँ स्कंध गिरा था। इस शक्तिपीठ में शक्ति को ‘उमा’ या ‘महादेवी’ और भैरव को महोदर कहते हैं।
6.बिहार से अलग हुए झारखंड के देवघर में जयदुर्गा शक्तिपीठ पार्वती मंदिर बैजनाथ धाम देवघर में स्थित है। देवघर में स्थित वैद्यनाथ धाम ज्योतिर्लिग के साथ जयदुर्गा शक्तिपीठ भी है। यहां सती का हृदय गिरा था, जिस कारण यह स्थान ‘हार्दपीठ’ से भी जाना जाता है। इसकी माता शक्ति है जयदुर्गा और शिव को वैद्यनाथ कहते हैं।
7.पंजाब के जालंधर में माता सती का शक्तिपीठ त्रिपुर मालिनी मां मंदिर है। यह मंदिर देवी तालाब मंदिर नाम से भी जाना जाता है। यहाँ मां सती का इस जगह बाया वक्ष(स्तन) गिरा था। जिसके बाद से मां यहां पर शक्ति ‘त्रिपुरमालिनी’ तथा भैरव ‘भीषण’ के रुप में विराजमान है।
8.हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित शक्तिपीठ श्री देविकूप भद्रकाली मंदिर को “सावित्री पीठ”, “देवी पीठ”, “कालिका पीठ” या “आदी पीठ” भी कहा जाता है। भद्रकाली मंदिर में माता सती के दाहिने घुटने गिर गए थे। महाभारत की लड़ाई से पहले, भगवान कृष्ण के साथ पांडवों ने यहां उनकी पूजा की और अपने रथों के घोड़ों को दान दिया। श्री देविकूप भद्रकाली मंदिर में श्रीकृष्ण और बलराम का मुंडन संस्कार भी किया गया था।
 9. उत्तर प्रदेश के इलाहबाद शहर के संगम तट पर माता की हाथ की अँगुली गिरी थी। यहाँ तीन मंदिरों को शक्तिपीठ माना जाता है और तीनों ही मंदिर प्रयाग शक्तिपीठ की शक्ति ‘ललिता’ के हैं। इस शक्तिपीठ को ललिता के नाम से भी जाना जाता हैं। 10.वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर विशालाक्षी मंदिर में स्थित है विशालाक्षी शक्तिपीठ। यहाँ पर देवी सती के कान के मणिजड़ीत कुंडल गिरे थे। इसलिए इस जगह को ‘मणिकर्णिका घाट’ कहते है। यहाँ देवी को विशालाक्षी मणिकर्णी और भैरव को काल भैरव रूप में पूजा जाता है।
11.वाराणसी में ही माँ वराही पंच सागर शक्तिपीठ स्थित है। इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है, लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति माता वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं। देवी वराही एक बोना का सिर है। वह अपने हाथ में एक चक्र, शंख, तलवार लिये रहती है।
12.चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर रामगिरि शक्तिपीठ है। यहाँ माता का दायाँ स्तन गिरा था। यहाँ माता सती को शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं। 13.मथुरा जिले के वृंदावन तहसील श्री उमा शक्ति पीठ स्थित है। इसे कात्यायनी शक्तिपीठ भी कहते है। इस पवित्र स्थान पर माता के बाल के गुच्छे और चूड़ामणि गिरे थे। यहाँ राधारानी ने भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिए पूजा की थी। यहाँ माता सती है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।
14.राजस्थान में अजमेर से 11 किमी उत्तर-पश्चिम में विश्व प्रसिद्ध पुष्कर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर गायत्री पहाड़ के पास स्थित मणिबंद शक्तिपीठ है। सती माँ की इस शक्तिपीठ को मणिदेविक मंदिर भी कहते हैं। इस जगह माँ सती के हाथ की कलाई गिरी थी। यह शक्तिपीठ मणिदेविका शक्तिपीठ और गायत्री मन्दिर के नाम से ज्यादा विख्यात है। यहाँ शक्ति माँ गायत्री और शिव भैरव् सर्वनंदा कहलाते हैं।
15.राजस्थान के भरतपुर में महाभारतकालीन विराट नगर के प्राचीन ध्वंसावशेष के निकट एक गुफ़ा है, जिसे भीम की गुफ़ा कहते हैं। यहीं के विराट ग्राम में माँ अंबिका शक्तिपीठ स्थित है। इस स्थान पर सती के दायें पाँव की उँगलियाँ गिरी थीं। यहाँ की सती अंबिका तथा शिव अमृतेश्वर हैं।
16.माता का हार गिरने के कारण कुछ मैहर (मध्य प्रदेश) के शारदा देवी मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं, तो कुछ चित्रकूट के शारदा मंदिर को शक्तिपीठ मानते हैं। ये दोनों ही स्थान तीर्थ माने गए हैं।
17.मध्यप्रदेश के अमरकंटक में शोन नदी के पास कालमाधव शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ  माता का बायाँ नितंब गिरा था। यहाँ एक गुफा है। यहाँ शक्ति माँ को काली और भैरव को असितांग कहते हैं।
18.मध्यप्रदेश के अमरकण्टक में ही नर्मदा के उद्गम स्थल शोणदेश स्थान पर सती माता का दायाँ नितंब गिरा था। यहाँ माता सती “नर्मदा” या “शोणाक्षी” और भगवान शिव “भद्रसेन” कहलाते है।
 19.मध्यप्रदेश के उज्जैन में अवंती या भैरव पर्वत शक्तिपीठ  स्थित है। यहां पर सती के ऊपरी होंठ गिर गये थे। होंठ पतन के स्थान पर एक मंदिर का निर्माण किया गया था। यहां मां सती की प्रतिमा अवंती के रूप में और भगवान शिव लाम्बाकर्ण के रूप में पूजे जाते हैं।
20.गुजरात और राजस्थान की सीमा पर स्थित माउंट आबू से 45 किमी. की दूरी पर गुजरात में अंबा माता का प्राचीन शक्तिपीठ है। यहाँ मां सती का हृदय गिरा था। इसमें माता भवानी की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि यहां पर एक श्रीयंत्र स्थापित है। इस श्रीयंत्र को कुछ इस प्रकार सजाया जाता है कि देखने वाले को लगे कि मां अम्बे यहां साक्षात विराजी हैं। यह बहुत ही खूबसूरत मन्दिर है।
21.जूनागढ़ जिले में सोमनाथ मंदिर के प्रभास क्षेत्र में त्रिवेणी संगम के निकट चंद्रभागा शक्ति पीठ स्थित है। यहाँ माँ सती के शरीर का उदर/आमाशय गिरा था यहाँ सती माता को चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड के रूप में जाना जाता है।
22.महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी में जनस्थान शक्तिपीठ स्थित है। इस जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। यहां मां सती भ्रामरी और भैरव विकृताक्ष के रूप में पूजे जाते हैं।
23.उड़ीसा के उत्कल में ब्रह्मकुंड के समीप स्थित विरजा देवी का मंदिर है। यहाँ पर माता माता सती की नाभि गिरी थी। समग्र उत्कल ही सती का नाभिक्षेत्र है और इसे ही विरजाक्षेत्र कहते हैं। इस क्षेत्र में विमला के नाम से महादेवी और जगन्नाथ के नाम से भैरव निवास करते हैं।
24.पश्चिमी बंगाल में सबसे ज्यादा शक्तिपीठ हैं। कोलकाता के कालीघाट में कालीघाट शक्तिपीठ स्थित है। मंदिर माता के बाएँ चरण का अँगूठा गिरा था। यहाँ शक्ति को कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं। इस पीठ में काली की भव्य प्रतिमा विराजित है, जिनकी लाल जीभ बहार निकली हुई है। जीभ से रक्त की कुछ बूंदे टपक रही हैं। देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे हुए है। हाथ में कुल्हाड़ी तथा कुछ नरमुण्ड हैं। जनश्रुति के अनुसार देवी के गुस्से को शांत करने के लिए शिव उनके रास्ते में लेट गये। देवी ने गुस्से में उनकी छाती पर पैर रख दिया। जैसे ही उन्होंने भगवान शिव को पहचाना उनका गुस्सा शांत हो गया। मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी एवं मुक्तकेशी भी विराजमान हैं। समीप ही नकुलेश का मंदिर भी है। बताया जाता है कि पुराने मंदिर के स्थान पर वर्तमान 1809 ई. में बनवाया गया था।
25.कोलकाता के हावड़ा से 145 किलोमीटर दूर वर्धमान जिले से 8 किमी दूर अजेय नदी के तट पर स्थित बाहुल शक्तिपीठ स्थापित है। यहाँ माता माता सती का बायां हाथ गिरा था। यहाँ की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।
26.वर्धमान जिले के उज्जयनी नामक स्थान पर मांगल्य चंडिका मंदिर है। यहाँ माता की दायीं कलाई गिरी थी। यहाँ माता को मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।
27.वर्धमान जिले से लगभग 32 किलोमीटर दूर जुगाड्या (युगाद्या) स्थान पर शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी ‘युगाद्या’ तथा भैरव ‘क्षीर कण्टक’ हैं। इस स्थान पर माता सती के दाहिने चरण का अँगूठा गिरा था। त्रेता युग में अहिरावण ने पाताल में जिस काली की उपासना की थी, वह युगाद्या ही थीं। अहिरावण की कैद से छुड़ाकर राम-लक्ष्मण को पाताल से लेकर लौटते हुए हनुमान देवी को भी अपने साथ लाए तथा क्षीरग्राम में उन्हें स्थापित किया।
28.पश्चिमी बंगाल के जलपाईगुड़ी के बोडा मंडल के सालबाढ़ी ग्राम स्थित त्रिस्रोत स्थान पर भ्रामरी शक्तिपीठ स्थित है। इस स्थान पर माता सती का बायाँ पैर गिरा था। यहाँ पर शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं।
29.मुर्शीदाबाद जिले के लालबाग कोर्ट रोड स्टेशन के पास स्थित देवी माता के इस स्थान को किरीट विमला और माता मुक्तेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। इन्हें देवी भुवनेशी भी कहा जाता है। यहाँ माता सती का मुकुट गिरा था। किरीट का अर्थ ही सिर का आभूषण या मुकुट होता है। यहां देवी माता सती को विमला और भैरव को संवर्त्त कहते हैं।
30.बीरभूम जिले में बोलीपुर स्टेशन के 10 किमी उत्तर-पूर्व में कोप्पई नदी के तट पर देवगर्भा शक्तिपीठ स्थित है। इस स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। इस मंदिर में देवी माँ को स्थानीय रूप से कंकालेश्वरी के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ शक्ति माँ को देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।
31.पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर विभाष शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता की बायीं एड़ी गिरी थी। यहाँ माँ सती कपालिनी और शिव भगवान शिवानन्द कहलाते है।
32.वीरभूम जिले के नलहाटी स्टेशन के निकट कालिका तारापीठ है। यहाँ माता के पैर की हड्डी गिरी थी। यहाँ शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं। एक अन्य मान्यता अनुसार तारापीठ में देवी सती के नेत्र गिरे थे, इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है।
33.वीरभूम जिले के दुबराजपुर स्टेशन से सात किमी दूर वक्रेश्वर में पापहर नदी के तट पर महिषमर्दिनी शक्तिपीठ स्थित है।  यहाँ माता का भ्रूमध्य (मनरू) गिरा था। इसकी माता शक्ति है महिषमर्दिनी और भैरव को वक्रनाथ कहते हैं।
34.वीरभूम जिले के सैंथिया रेलवे स्टेशन नंदीपुर स्थित चारदीवारी में बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। यही नंदीपुर शक्तिपीठ है। यहाँ माता शक्ति है नंदिनी और भैरव को नंदिकेश्वर कहते हैं।
35.लाबपुर ’(लामपुर) में अट्टाहास शक्तिपीठ स्थित है। इस स्थान पर माता का निचला ओष्ठ गिरा था। यहाँ माता सती ‘फुल्लरा’ तथा शिव ‘विस्वेश’ हैं।
36.असम के गुवाहाटी जिले में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर कामाख्या देवी मंदिर स्थित है।  यहाँ माता का योनि भाग गिरा था। यह सबसे पुराना शक्तिपीठ है जो कामाख्या देवी को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह में योनी के आकार का एक कुण्ड है जिसमें जल निकलता है। इसे योनी कुण्ड कहा जाता है। योनी कुण्ड लाल कपड़े व फूलों से ढ़का रहता है। मंदिर में प्रति वर्ष अम्बुबाची मेले का अयोजन किया जाता है। इस मेले में देशभर के तांत्रिक और अघोरी भाग लेते हैं। मान्यता है कि मेले के दौरान कामाख्या देवी रजस्वला होती है और इन तीन दिन में योनी कुण्ड से जल की जगह रक्त प्रवाह होता है। अम्बुबाची मेले को कामरूपों का कुम्भ भी कहा जाता है। कामाख्या देवी की पूजा दैनिक रूप से करने के साथ-साथ कुछ विशेष अवसरों पर भी आयोजित की जाती है। सितम्बर-अक्टूबर माह में दुर्गा पूजा, पौष माह में पोहन बिया पूजा (इस दौरान भगवान कमेश्वरा और कामेश्वरी की प्रतिकात्मक विवाह की पूजा), फाल्गुन माह में दुर्गाडियूल पूजा, चौत्र माह में बसन्ती पूजा एवं इसी माह मडानडियूल पूजा का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है।
37.मेघालय की जयंती पहाड़ी पर जयंती शक्तिपीठ स्थापित है। यहां सती के वाम जंघ का नीपात हुआ था। भारत के पूर्वी भाग में मेघालय पर्वतीय राज्य है।
38.त्रिपुरा के अगरतला से 140 किमी की दूरी पर स्थित उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गाँव में त्रिपुर सुंदरी शक्ति पीठ मंदिर है। यहाँ पर माता का दायाँ पैर गिरा था। यहाँ शक्ति को त्रिपुर सुंदरी और भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।
39.आंध्रप्रदेश के राजामुंद्री क्षेत्र स्थित गोदावरी नदी के तट पर  गोदावरीतीर  सर्वशैल शक्ति पीठ है। यहाँ कोटिलिंगेश्वर पर माता के गाल गिरे थे। गोदावरी शक्ति पीठ को सर्वशैल भी कहा जाता है। इस मंदिर में शक्ति को देवी विश्वेश्वरी और राकिनी के रूप पूजा जाता है और भैरव को वत्सनाभ और दण्डपाणि के रूप में पूजा जाता है।
40.आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन मंदिर के पीछे कुछ सीढ़ियां चढ़ने पर आदिशक्ति माता भ्रमराम्बा देवी शक्ति पीठ मंदिर है। इस स्थान पर दक्षिण गुल्फ अर्थात दाएँ पैर की एड़ी गिरी थी। यहाँ इस मंदिर में शक्ति को श्री सुंदरी के रूप में और भैरव को सुंदरानंद रूप में पूजा जाता है। दूसरी मान्यता के अनुसार कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के पर्वत पर माता के दाएँ पैर की पायल गिरी थी। बावन शक्तिपीठों में से एक इस पवित्र धाम में सती माता की ग्रीवा (गला या गरदन) गिरी थी।
41.तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर में शुचि-नारायणी शक्तिपीठ है। यहाँ पर माता की ऊपरी दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। यहाँ की माता शक्ति ‘नारायणी’ तथा भैरव ‘संहार या ‘संकूर’ हैं। महर्षि गौतम के शाप से इंद्र को यहीं मुक्ति मिली थी, वह शुचिता (पवित्रता) को प्राप्त हुए, इसीलिए इसका नाम शुचींद्रम पड़ा। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। सुचीन्द्रम शक्ति पीठ को ठाँउमालयन या स्तानुमालय मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर सात मंजिला है जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है।  मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए लगभग 30 मंदिर है जिसमें पवित्र स्थान में बड़ा लिंगम, आसन्न मंदिर में विष्णु की मूर्ति और उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर हनुमान की एक बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।
42.कन्याकुमारी में कन्याआश्रम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्ति पीठ के रूप में भी जाना जाता है। कन्याश्रम में माता की पीठ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वाणी के नाम से जाना जाता है। यहाँ देवी को सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं।
भारतीय उप महाद्वीप के शक्तिपीठ
बांग्लादेश -43 (सुनंदा)  शक्तिपीठ -माँ सुगंध का शक्तिपीठ बांग्लादेश के शिकारपुर से 20 किमी दूर सुंगधा (सुनंदा) नदी के तट पर स्थित है। यहाँ माता सती की नासिका (नाक) गिरी थी। यहाँ देवी ‘सुनंदा’ और शिव ‘त्र्यम्बक’ हैं। भारत से जाने वाले लोगों को इस तीर्थ यात्रा के लिए वीजा प्राप्त करना होगा।
44.श्रीशैल शक्तिपीठ -बांग्लादेश के सिल्हैट जिले के उत्तर-पूर्व में जॉइनपुर गांव के पास शैल नामक स्थान पर श्रीशैल शक्तिपीठ है। यहाँ माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। यहाँ शक्ति माँ महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।
 45.करतोयातट- अपर्णा शक्तिपीठ- बांग्लादेश के शेरपुर बागुरा स्टेशन से 28 किमी दूर भवानीपुर गांव के पार करतोया की सदानीरा नदी के तट स्थान अपर्णा शक्तिपीठ है। यहाँ पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति माता को अर्पण और भैरव को वामन कहते हैं। यहां पहले भैरवरूप शिव के दर्शन करें, फिर देवी का दर्शन करना चाहिए।
46.यशोर- यशोरेश्वरी शक्तिपीठ- बांग्लादेश के खुलना जिला के ईश्वरीपुर के यशोर स्थान पर यशोरेश्वरी शक्तिपीठस्थित है। इस स्थान पर माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड, शिव को चंद्र कहते हैं। यह बांग्लादेश का तीसरा सबसे प्रमुख शक्तिपीठ है।
47. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ- गुह्येश्वरी मंदिर, काठमांडु, नेपाल में स्थित पशुपतिनाथ मंदिर के पास ही है। यहां सती के शरीर के दोनो घुटने गिरे थे। यहां देवी का नाम महाशिरा एवं भैरव हैं कपाली। इस मंदिर का नाम गुह्येश्वरी मंदिर भी है। यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालु बस, ट्रेन और हवाई रास्ते द्वारा काठमांडू पहुंच सकते हैं।
48.गण्डकी शक्तिपीठ – नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर स्थित मुक्तिनाथ शक्तिपीठ स्थित है। यहाँ माता का मस्तक या गंडस्थल गिरा था। गण्डकी पीठ को मुक्तिदायिनी माना गया है। इस स्थल के मुक्तिनाथ भी बोला जाता है। यहाँ सती गण्डकी चंडी तथा शिव चक्रपाणि हैं। तिब्बत–49.मानसा-दाक्षायणी माता शक्तिपीठ -तिब्बत में स्थित मानसरोवर के पास माता का यह शक्तिपीठ स्थापित है। इसी जगह पर माता माता सती का दायाँ हाथ गिरा था, इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उनका रूप मानकर पूजा जाता है। यहाँ दर्शन करने  लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा में भाग लेना होता है।
श्रीलंका–50.इन्द्राक्षी शक्तिपीठ – श्रीलंका के ट्रिकोनेश्वरम मंदिर में शक्तिपीठ श्रीलंका में है। यहाँ माता सती की पायल गिरी थी। यहं माता सती को इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं। रावण और भगवान राम ने भी यहां पूजा की थी। इसे शंकरी देवी मंदिर भी कहते है। यहां शिव का मंदिर भी है, जिन्हें त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है।
 51.माता हिंगलाज शक्तिपीठ-माता सती का यह शक्तिपीठ पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में स्थित है। यहाँ माता का सिर गिरा था। सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित यह गुफा मंदिर इतना विशालकाय क्षेत्र है कि आप इसे देखते ही रह जाएंगे। यह मंदिर 2000 वर्ष पूर्व भी यहीं विद्यमान था। यहाँ माता को कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) और भैरव को भीमलोचन कहते हैं। कराची से वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल के महीने में शुरू होती है। यहां वाहन द्वारा पहुंचने में लगभग 4 से 5 घंटे लगते हैं।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल

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