Thursday, April 17, 2025
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सुखी जीवन के १२ शिव सूत्र

आदिनाथ शिव यानि भारतीय संस्कृति के अद्भुत देव,एक प्रेरणा जो समाज के हर वर्ग के अतृप्त ह्रदय पर शीतलता का लेप हैं ऐसे परमदेव जिनके हर मन्त्र और कथा व्रतांत में एक सन्देश छुपा है. समाज की हर त्याज व उपेक्षित वस्तु उनके लिए परम प्रिय . हर प्राणी और वस्तु  में समता और स्वीकार्यता परन्तु दीनता के भाव से नहीं बल्कि सर्वोपरियता का विचार है.उत्पत्ति और विनाश शक्ति के द्वारा ही संभव होता है। शक्ति का रूप बदलता है, लेकिन नाश नहीं होता। ब्रह्मांड में गति शक्ति के द्वारा ही दिखाई देती है। हमारे शरीर में प्राणों की गति भी इसी शक्ति से होती है। जन्म, जीवन और मृत्यु इसी शक्ति से है। शिव और शक्ति अलग नहीं, बल्कि एक दूसरे से अभिन्न हैं.शिव में जो ई की मात्रा है, वह शक्ति का ही प्रतीक है और अगर शिव से ई की मात्रा हटा दी जाए, तो वह महज शव रह जाता है। शक्ति जब शांत होती है, तब वह शिव कहलाती है।ये दोनों तत्व ब्रह्मांड का आधार हैं। शिव के हाथ में त्रिशूल उनकी तीन मूल भूत शक्तियों इच्छाशक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान का प्रतीक है।

स्त्री शक्ति का सम्मान
शिव जी का अर्धनारीश्वर रूप उनके शक्ति रूप का प्रतीक है। वही एकमात्र देव हैं जिनका आधा रूप पुरुष और आधा स्त्री का है। शक्ति बिना सृष्टि संभव नहीं है। बिना नारी के किसी का जन्म नहीं हो सकता। शिव एवं शक्ति दोनों सृष्टि के मूलाधार हैं। शिव और शक्ति एक-दूसरे के पर्याय हैं। शिव के तीनों नेत्र शिवा के ही प्रतीक हैं जो क्रमश: गौरी के रूप में जीव को मातृत्व व स्नेह देते हैं, लक्ष्मी के रूप में उसका पोषण करते हैं तथा काली के रूप में उसकी आंतरिक तथा बाहरी बुराइयों का नाश करते हैं। शिव के ललाट पर सुशोभित तीसरा नेत्र असल में मुक्ति का द्वार है।

प्रेम
शिव सांसारिक होते हुए भी महायोगी हैं यानि प्रेम की जीवन में उपस्थति को योग में बढ़ाना.  स्त्री को शक्ति और प्रेरणा की तरह स्वीकार किया जाना चाहिये .सत्य तो यह है की जीवन में सच्चे प्रेम के कारण मूढ़ भी सफलता के सोपान छू लेता है

निराभिमानी
शिव भोले बाबा हैं .स्रष्टि के हर  जीव से उनका ऐसा तारतम्य है के वो उन्हें अपने शिशु सा ही प्रेम करते हैं. यही वजह है की शिव गण में भूत-प्रेत और भयंकर जानवर शामिल हैं जिनके लिए संसार में कहीं कोई स्थान प्राप्त नहीं है उनके लिए कैलाश धाम है .ऐसे सरल ढंग से जीने का अंदाज ही हमें निराभिमानी बना सकता है.

निर्भयता
शिव कभी भी हिंसा के पक्षधर नहीं हैं वो महायोगी हैं साधनारत स्वरुप में हैं .मगर राक्षसों के उत्पाती और अत्याचारी रूप का संहार करने में कभी नहीं रुके. इस प्रकार ये जरूरी है की सांसारिक जीवन जीने के बाद भी आवश्यकता और परिस्थती के अनुकूल निर्भय होना जरूरी है.

समय का महत्त्व
सृष्टि निर्माण व विनाश के मूल में समय ही प्रमुख है। शिव अपने तन पर विभूति रमाते हैं। वह अपना श्रृंगार श्मशान की राख से करते हैं। उनका एक रूप सर्वशक्तिमान महाकाल का भी है। वह जीवन, मृत्यु के चक्र पर भी नियंत्रण रखते हैं।यह काल के देवता हैं और काल का अर्थ समय है.

संतुलन
शिव के हाथ में त्रिशूल उनकी तीन मूल भूत शक्तियों इच्छाशक्ति, क्रिया शक्ति और ज्ञान का प्रतीक है। इसी त्रिशूल से शिव प्राणी मात्र के दैहिक, दैविक एवं भौतिक तीनों प्रकार के शूलों का शमन करते हैं। इसी त्रिशूल से वह सत्व, रज और तम तीन गुणों तथा उनके कार्यरूप उनकी पूजा ब्रह्मा, विष्णु, राम ने भी की है। सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी ने की, विष्णु जी पालक और रक्षक का दायित्व निभाते हैं इसके चलते सृष्टि में जो असंतुलन पैदा होता है उसकी जिम्मेदारी भोले बाबा संभालते हैं। इसलिए उनकी भूमिका को ‘संहारक’ रूप में जाना जाता है। वह संहार करने वाले या मृत्यु देने वाली भूमिका नहीं निभाते हैं, वह तो मृत्युंजय हैं। वह संहार कर नए बीजों,  मूल्यों के लिए जगह खाली करते हैं। उनकी भूमिका उस सुनार व लोहार की तरह है जो अच्छे आभूषण एवं औजार बनाने के लिए सोने व लोहे को पिघलाते हैं, उसे नष्ट करने के लिए नहीं। इस प्रक्रिया के उपरांत ही सुंदर रूप में आभूषण व उपयोगी औजार का निर्माण होता है।

स्वीकार भाव
शिव शक्ति के अनन्य स्रोत हैं। वह संसार की बुरी से बुरी, त्याज्य से त्याज्य वस्तुओं से भी शक्ति ग्रहण कर लेते हैं। भांग, धतूरा जो सामान्य लोगों के लिए हानिकारक है वे उससे ऊर्जा ग्रहण करते हैं। यदि वह अपने कंठ में विष को धारण नहीं करते तो देवताओं को कभी अमृत न मिलता।शिव सब के हैं कम से कम साधनों में भी कोई भी उन्हें प्रसन्नं कर सकता है.

रमना (समर्पण )

हिमालय में ध्यानमग्न शिव समर्पण का उदाहरण है .जीवन में अपने उद्देश्य के लिए पूर्ण समर्पण और धैर्य का सन्देश शिव की महिमा में छुपा है .बिना समर्पण के कोई नही मकसद पूरा नहीं किया जा सकता है .कई प्रलोभनों को पार करके ही उद्देश को पाना संभव हो पता है

नवीनता .

संसार में प्रतिदिन पुराना जाता है और नया आता है यही प्रकृति का सत्य है.पुराने पत्ते टूटते हैं तभी नई कोपलें आती हैं .महामृतुन्जय मन्त्र में भी यही सत्य परिलक्षित है .जन्म नवीनता का प्रतीक है ,म्रत्यु परिवर्तन का .मनुष्य होने के नाते इस व्यवस्था का पालन करना ही हमारी नियति है. अतः जीवन में परिवर्तनों से न घबराते हुए उन्हें स्वीकार करना ही शिव सन्देश है.

सकारात्मकता और जनकल्याण
शिव जन जन के देव हैं उनकी हर कथा में उनके जनकल्याणकारी स्वरुप की महिमा है. जीवन को सकारात्मक कार्यों में लगाते हुए जनकल्याण करना ही मानव का उद्देश होना चाहिये.अपनी ओर से छोटा बड़ा कोई भी प्रयास हो मगर वह जनकल्याण के लिए सुनिश्चित हो .यही शिव सूत्र है.

तपस्या
भगवान शिव सदैव ही एकांत एवं निर्जन स्थान पर एकाग्र भाव से तपश्चर्या एवं ध्यान में लीन रहते हैं। इससे व्यक्ति सांसारिक भावों से दूर हो जाता है। इसके कारण संसारजनित विकार काम, क्रोध, लोभ से मुक्ति संभव है .जीवन भी तपस्या की तरह है हर दिन हम हजारों पाप के अवसरों का सामना करते हैं ऐसे में बहुत कम लोग हैं जो अपने मन को विचलित किये बगैर आगे बढ़ पाते हैं.

न्यूनतम आवश्यकताएं

भगवान शिव शरीर पर भस्म धारण करते हैं तथा मृगछाल पहनते हैं। हाथ में जल भरने हेतु कमंडल रखते हैं तथा खड़ाऊं धारण किए हैं। उनकी आवश्यकताएं अत्यंत सीमित हैं। जीवन को कम से कम आवश्यकताओं में भी प्रसन्नता से जीना भी एक कला है.

पुराण कहते हैं कि परमात्मा के विभिन्न कल्याणकारी स्वरूपों में भगवान शिव ही महाकल्याणकारी हैं। जगत कल्याण तथा अपने भक्तों के दुख हरने के लिए वह असंख्य बार विभिन्न नामों और रूपों में प्रकट होते रहते हैं जो मनुष्य के लिए तो क्या, देवताओं के लिए भी मुक्ति का मार्ग बनता है।

आज समाज में मानव संबंधों में इतना विष भर चुका है कि समुद्र मंथन का विष भी कम पड जाए .धर्म जाति,लिंग वर्ग और संस्कृति के नाम पर खून के प्यासे हुए लोगों को शिव चरित्र से मार्गदर्शन मिल सकता है.आज शिव चरित्र का स्मरण और आत्मसात करना समय की जरूरत है .धार्मिक पक्ष के इतर व्यवहारिक रूप से भी शिव एक सम्पूर्ण पुरुष हैं उनका नाम ही शक्ति और पुरुष के संतुलन को सिद्ध करता है .शिवरात्रि के पावन पर्व पर आवश्यक है की हम जीवन से नकारात्मकता का गरल हर तरीके से हटायें और शिव भक्ति के अमृत में डूब जाएँ.इस उद्देश में शिव के सूत्र जरूर लाभकारी सिद्ध होंगे.

एक निवेदन

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