Sunday, April 13, 2025
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Homeजियो तो ऐसे जियोहनुमानगढ के दीनदयाल शर्माः बाल मन के कुशल चितेरे

हनुमानगढ के दीनदयाल शर्माः बाल मन के कुशल चितेरे

बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा राजस्थान के ऐसे रचनाकार है जिनकी पहचान देशभर में हैं। शायद ये देश के पहले ऐसे रचनाकार हैं जो ”  दीनदयाल की चौपाल ” के नाम पहचान बनाते हैं। इस चौपाल के माध्यम से ये  जनवरी, 2022 से यूट्यूब चैनल दीनदयाल की चौपाल पर देशभर के बाल साहित्यकारों की कहानियां और बाल कविताओं का वाचन करते हैं, जिन्हें न  केवल बच्चे वरन् बड़े भी बड़े चाव से सुनते हैं और इनकी नई रचना सुनने का इंतज़ार करते हैं।
बाल साहित्य कैसा हो इस पर अपनी चिंता व्यक्त कर बताते हैं ” हम बच्चों के लिए स्तरीय लेखन करें ताकि बच्चे साहित्य से जुड़ सकें। यदि स्तरहीन रचनाएं लिखी जाती रहे तो पर्यावरण का तो नुकसान होगा ही क्योंकि जब पुस्तकें छपती हैं तो न जाने कितने पेड़ों को बलिदान देना पड़ता है। स्तरहीन लिखी गई रचनाओं को बच्चे पढ़ेंगे तो वे बाल साहित्य की हल्की रचनाओं के बाद स्तरीय रचनाएं भी नहीं पढ़ेंगे क्योंकि उन्हें बाल साहित्य से नफ़रत हो जाएगी। ” उनका यह भी मानना है कि हम बच्चों से बात करें। उनकी भावनाओं को समझें। बच्चों से जुड़ाव के कारण हम उनके स्तर की अच्छी बाल रचनाएं सृजित कर सकते हैं। बच्चों को हर खुशी के मौके पर स्तरीय बाल साहित्य की पुस्तक भेंट में दें। जिसे पहले आप पढ़ें।
कहते हैं बच्चा बन कर और बच्चों की तरह सोच कर , उनके समझ के स्तर को देखते हुए सरल भाषा में  बच्चों की कविताएं और कहानियां ऐसी हों जिन्हें वे रुचि ले कर पढ़े। उनका मनोरंजन भी हो और कोई न कोई जीवन उपयोगी संदेश भी उनको मिले। उनकी एक बाल कविता ” किताबें ” की पंक्तियां देखिए………….
कहाँ सिर झुकाना / कहाँ तन कर खड़ा होना है।
 सारी बातें / सिखाती हैं किताबें।।
ज्ञान की गंगा / लगाइए डुबकी।
मन की मलिनता  / मिटाती हैं किताबें।।
गागर में सागर है / पाइए मोती।
 ज्ञान धन  सदा / लुटाती हैं किताबें।।
जीवन में अंधेरा /  छा जाए जब ये। /
प्रकाश अपना / फैलाती हैं किताबें।।
मिले इस ज्ञान को / चुरा न पाए कोई भी।
अनगिन तजुर्बे / सिखाती हैं किताबें।
पढ़ने वाला पाएगा / आगे बढ़ जाएगा।
जीवन को बेहतर / बनाती हैं किताबें ।
समय निकाल कर / जरूर आप पढ़िए।
ढेर सारा प्यार / लुटाती हैं किताबें ।।
कविता की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है, सभी कुछ अपने आप में स्पष्ट है।
इस सहज और सरल कविता के माध्यम से उन्होंने किताबों का महत्व बच्चों को जिस रोचक तरीके से समझाया है वह न  केवल काबिले तारीफ है  साथ ही साथ ही बाल रचनाकारों के लिए प्रेरक भी हैं। उनके संग्रह की एक और कविता ” नानी ” की पंक्तियां दृष्टव्य हैं…………
नानी तू है कैसी नानी
नहीं सुनाती नई कहानी।
नानी बोली प्यारे नाती
नई कहानी मुझे न आती।
मेरे पास तो वही कहानी
एक था राजा एक थी रानी।
नई बातें कहाँ से लाऊँ
तेरा मन कैसे बहलाऊँ।
तुम जानो कम्प्यूटर बानी
तुम हो ज्ञानी के भी ज्ञानी।
मैं तो हूँ बस तेरी नानी।
तुम्हीं सुनाओ कोई कहानी।।
कविता की विशेषता इस में है कि परम्परागत नानी की कहानियां सुनाने वाली नानी भी आधुनिक युग के कंप्यूटर का महत्व जान कर बच्चें को कहती है अब तो तेरे पास ज्ञानी कंप्यूटर है, मैं तो राजा – रानी की पुरानी कहानी ही जानती हूं, तेरे लिए नई कहानी कहां से लाऊं। मैं तो तुम्हारी नानी हूं अब तो तुम ही सुनाओ कोई कहानी। नानी का स्थान कंप्यूटर ने ले लिया और नानी की कहानियां तो पुरानी हो गई। जिस सहजता से रचनाकार ने बच्चे को नानी के माध्यम से कंप्यूटर से जोड़ा वह अपने आप में उनकी परिकल्पना का अनूठा उदाहरण है।
 रचनाकार हिंदी और राजस्थानी दोनों भाषाओं में बाल साहित्य का सृजन करते हैं। इन्होंने  वर्ष 1975 से हिंदी भाषा में और वर्ष 1985 से राजस्थानी भाषा में लिखना शुरू किया। दोनों ही भाषाओं पर इनका सामान अधिकार हैं। इनकी मूल विधा: हिन्दी-राजस्थानी बाल साहित्य ही है।
 लेखन की विशेषता है की आपकी कई रचनाएं दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात आदि कई राज्यों के विद्यालयों के पाठ्यक्रम में रचनाएं शामिल की जा चुकी हैं। आपकी अब तक हिन्दी और राजस्थानी में  63 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। राजस्थानी बाल साहित्य की तीन विधाओं में पहली पुस्तक होने का गौरव आपको प्राप्त हैं। ये हैं  संस्मरण पुस्तक ‘बाळपणै री बातां’ (2009), एक टाबर री डायरी (2021) और आलोचना पुस्तक ‘बाळपणै री बातां ” (2024)। आपने आंग्ल भाषा में भी एक पुस्तक ” द ड्रीम्स ” लिखी जिसका लोकार्पण 17 नवम्बर, 2005 को तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा राष्ट्रपति भवन में किया गया। युवा कवि और बाल साहित्यकार दुष्यन्त जोशी और वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवयित्री डॉ. मेघना शर्मा के संपादन में वर्ष 2018 में “कुछ अनकही बातें”  पुस्तक में देशभर के 101 साहित्यकारों की ओर से बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर लिखी गद्य-पद्य रचनाओं की पुस्तक है। आप बच्चों के लिए टाबर टोली’ (पाक्षिक बाल समाचार पत्र ) 2003 से लगातार प्रकाशित कर रहे हैं।
 डॉ. अरूप कुमार दत्ता की अंग्रेजी पुस्तक का राजस्थानी भाषा में अनूदित ‘असम रो रणबंको : लाचित बरफुकन’ (2023) देशभर से चुने हुए 32 रचनाकारां की पांच-पांच हिन्दी बाल कविताएं राजस्थानी भासा में अनूदित और संपादित ‘राजस्थानी बाल बत्तीसी’ (2024)।  दीनदयाल शर्मा के बाल साहित्य पर प्रोजैक्ट निर्माण (2011), एम. फिल (2010) और पीएच. डी. (2019) की गई।
आपके पुरस्कार और सम्मान की सूची काफी बड़ी हैं। प्रमुख रूप से राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर से हिन्दी बाल कहाणी पुस्तक ‘चिंटू-पिंटू की सूझ’ पर डॉ. शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार 1988 में प्राप्त हुआ। राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति अकादमी, बीकानेर से राजस्थानी बाल नाटक पुस्तक ‘शंखेसर रा सींग’ पर पं. जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य पुरस्कार 1998 में प्राप्त हुआ। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली से राजस्थानी बाल संस्मरण पुस्तक ‘बालपणै की बातां’ पर राजस्थानी बाल साहित्य के राष्ट्रीय पुरस्कार से 2012 में सम्मानित हुए। पं. जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, जयपुर से ‘प्रेरणाप्रद बाल पहेलियां’ पर श्री मोहनलाल ओझा ग्रामीण बाल साहित्य पुरस्कार से 2022 में सम्मानित हुए और इसी अकादमी से 2023 में बाल साहित्य मनीषी सम्मान से नवाजा गया।
परिचय :
बाल साहित्य के क्षेत्र में नाम कमाने वाले रचनाकार दीनदयाल शर्मा का जन्म हनुमानगढ़  जिले की तहसील नोहर के ग्राम जसाना में पिता  प्रयाग चंद जोशी एवं माता महादेवी के आंगन में 15 जुलाई 1956 को हुआ। आपने   एम. कॉम. और पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त की। आपने 1984 में राजस्थान साहित्य परिषद् तथा 1986 में
 राजस्थान बाल कल्याण परिषद् की स्थापना की। वर्तमान में आप निरंतर बाल साहित्य लेखन में लगे हैं।
चलते – चलते……….
जब भी खोलू से खिड़की/  झट से भीतर वह आ जाता।
कब जाता है बाहर जाने /जादू उसको आता ॥
कमरे में आता है तब ये /महक फूल की लाता ।
कर देता तरोताजा मुझको /जब-जब यह आता।।
हवा का झोंका बहुत ही प्यारा / मेरे मन को भाता।
घर के दरवाजे से देखो /वह घर में घुस जाता।।
बड़ा मस्त स्वभाव है उसका / रहे सदा मुस्काता।
ऐसे मित्र पर गर्व करूं मैं / मुझको स्वस्थ बनाता ।।
खेत, पार्क या जाऊ कहीं भी / मेरा साथ निभाता ।
हुआ निहाल मैं उसको पा कर / मेरा सच्चा भ्राता ।।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

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