10वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन अब तक के विश्व हिंदी सम्मेलनों में मील के पत्थर की तरह एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के संबंध मेँ अभिभूत, गद्गद्, भाव-विभोर, अभूतपूर्व, श्रेष्ठतम जैसे किसी एक शब्द का प्रयोग किया जाए तो बात अधूरी होगी । शायद ये सभी शब्द मिलकर भी कमजोर पड़ जाएँ। भोपाल मेँ आयोजित 10वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन न केवल अब तक का सर्वश्रेष्ठ हिंदी सम्मेलन कहा जा सकता है बल्कि यह कहा जाए कि भारत में शायद ही कभी इतना बड़ा, भव्य और सार्थक सम्मेलन हुआ होगा तो भी शायद गलत न होगा। लगता था कि सारा शहर पलक–पावड़े बिछा कर बैठा था। भोपाल मेँ गाड़ी से उतरकर बाहर निकले ही थे कि सम्मेलन के कार्यकर्ताओं ने जिस तरह आगे बढ़कर बुलाया बैठाया और फिर चाय-पानी के बारे में पूछा तो एकबारगी लगा कि शायद इनमें कुछ परिचित हैं जो आवभगत कर रहे हैं, पर ऐसा था नहीं। फिर पूछा कहाँ जाना है, तत्काल गाड़ी की व्यवस्था और वह भी एक कार्यकर्ता सहित । भारत में और वह भी इतने बड़े सम्मेलन में हर व्यक्ति के प्रति ऐसा प्रेम और सद्भाव कल्पना से दूर था । मैंने पूछा आप कौन से विभाग से हैं तो उन्होंने कहा साहब हम स्थानीय भाजप और संघ के कार्यकर्ता हैं । हमारे देश, हमारे राज्य और हमारे शहर में विश्व हिंदी सम्मेलन हो रहा है यह गर्व और गौरव की बात है। ‘अतिथि देवो भव’ । हर दिन हर पल ऐसे ही अनुभव थे।
रास्ते भर हिंदी के लेखकों, कवियों व साहित्यकारों की तस्वीरें लगता था कि पूरा शहर हिंदीमय हो गया है । पंडाल हिंदी के रचनाकार साहित्यकारोँ की अमर रचनाओं से गुंथा हुआ था। सरकारी अधिकारियोँ और कार्यकर्ताओं की टोलियाँ विनम्रता व सम्मान के साथ सेवा परोसती दिखीं। संख्या की दृष्टि से भी यह सम्मेलन संभवत: सबसे बड़ा सम्मेलन होगा । विदेशों में जहाँ पांच-सात सौ लोग होते हैं तो यहाँ उससे दस गुना लोग थे। कोई सभागार, कोई परिसर इन्हें कहाँ समेट सकता था। इसलिए लाल परेड मैदान को एक विशाल सभा परिसर का स्वरूप प्रदान किया गया था। सुरक्षा ऐसी कि पंछी तक पर न मार सके, खातिरदारी ऐसी कि जैसे बारातियों की होती है। स्वयं मुख्यमंत्री व्यवस्था को इस प्रकार देख रहे थे जैसे बारात में लड़की का पिता काम करता है। उस पर भव्यता स्वच्छता और संयोजन भी उत्कृष्ट था । मुख्यमंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान दिन रात इसके आयोजन मेँ लगकर पूरे समय व्यक्तिगत तौर पर इस पर ध्यान दे रहे थे। इस सम्मेलन में सरकार ने आवाभगत, भव्य आयोजन करके और देश और प्रदेश की समृद्ध ऐतिहासिक, सांस्कृतिक झांकी प्रस्तुत कर जिस प्रकार देश-विदेश के प्रतिनिधियों व अतिथियों को लुभाया उससे राज्य सरकार ने सम्मेलन के बहाने राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने का कार्य भी कुशलतापूर्वक किया है।
पहले ही दिन भारत के प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में पधारकर राजभाषा हिंदी के प्रति अपने सरोकार प्रकट कर दिए और अपने ओजस्वी भाषण के माध्यम से हिंदी को उचित स्थान दिलवाने का निश्चय भी प्रकट कर दिया था। प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री, गृहमंत्री, गृह राज्यमंत्री, विदेश राज्य मंत्री, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री, तीन राज्यपाल और अनेक सांसद और विधायकों सहित हिंदी के लिए देश और राज्य सरकार के तमाम बड़े चेहरे पूरी तन्मयता से लगे थे। समापन में तो हरियाणा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी मौजूद थे। स्वयं मुख्यमंत्री एक सत्र की संगोष्ठी संचालक के रुप मेँ तीनों दिन एक कुशल संगोष्ठी-संचालक के रूप में विद्वानों और प्रतिभागियों के विचार व सुझाव सुन रहे थे।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का भाषण तो प्रभावमय था ही समानान्तर प्रशासन सत्र में स्वयं बैठकर एक कुशल संगोष्ठी संचालक के रूप में भी उनकी भूमिका प्रभावी व महत्वपूर्ण थी। वे प्रतिनिधियों और विद्वानों के विचार सुनने व सभी को अवसर देने के लिए प्रयासरत थे और शायद सर्वाधिक प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखी। उन्होंने सम्मेलन के दौरान बार – बार यह संकल्प व्यक्त किया कि वे सम्मेलन मेँ लिए गए सभी निर्णयों को अपनी राज्य मेँ लागू करेंगे। इससे सम्मेलन में पधारे प्रतिनिधियों का उत्साह तो बढ़ ही रहा था अन्य मंत्रियों व नेताओं को भी संदेश जा रहा था । निश्चय ही हरियाणा और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री तक भी संदेश पहुंचा होगा और कुछ वैसा ही वहाँ भी होने की आस तो पैदा होती है।
पहली बार ऐसा हुआ विभिन्न सत्रों में लिए व दिए गए सुझाव सम्मेलन मेँ ही निष्कर्ष रुप मेँ और सिफारिश रुप मेँ प्रस्तुत किए गए और उन्हें लागू करने का संकल्प भी व्यक्त किया गया। अंत मेँ भारत के गृह मंत्री ने आगे बढ़कर यह कहा कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए । उन्होंने यह संकल्प भी व्यक्त किया कि जिस प्रकार योग दिवस के लिए विश्व के विभिन्न देशों का समर्थन प्राप्त किया गया है, उसी प्रकार हिंदी के लिए भी समर्थन जुटाने के प्रयास किए जाएंगे। निश्चय ही सार्थकता की दृष्टि से भी यह सम्मेलन बाकी सम्मेलनों से काफी आगे दिखाई देता है। सभी पक्षों में सबसे आगे होने के चलते 10वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन भुलाए न भूलेगा ।
पहले विश्व हिंदी सम्मेलन में काका साहेब कालेलकर ने हिंदी को सेवा की भाषा बनाने की बात कही थी लेकिन अब तक के प्राय: सभी विश्व हिंदी सम्मेलन मुख्यत: साहित्य पर ही केंद्रित रहे और तमाम सेवाएं, सुविधाएँ, वाणिज्य-व्यापार और शिक्षा व रोजगार अंग्रेजी की तरफ जाता रहा । इस सम्मेलन में सरकार ने इस विषय पर भी भरपूर ध्यान दिया और गंभीरता से चर्चा की गई । कुछ लोगों को यह कहते सुना गया कि भाषा को महत्व देकर साहित्यकारों की उपेक्षा की गई है। पर विचार की बात तो यह है कि भाषा पिछड़ेगी तो उस भाषा का साहित्य कैसे आगे बढ़ेगा और दूसरी बात यह कि साहित्य भाषा का घटक है न कि पर्याय। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि इस सम्मेलन में भी सम्मान तो अधिकांशतः साहित्यकारों को ही दिए गए हैं। दो –एक अपवाद छोड़ दें तो हिंदी के लिए संघर्षरत लोग तो इस बार भी सम्मान के मंच पर कुछ दिखे नहीं। पर निश्चय ही भोपाल में आयोजित 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन पूर्णतः संतुलित था और सही राह पर लौटता दिखाई दिया।
जिस प्रकार एक-एक सुझाव को भारत सरकार व राज्य के मंत्रियों, प्रतिनिधियों और स्वयं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने गंभीरता से लिया है, निश्चय ही यह ऐतिहासिक था। दूसरे दिन रात्रि मेँ भाषा को लेकर जो सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया वह अकल्पनीय, अविस्मरणीय और जिन्होंने नहीं देखा उनके लिए अविश्वसनीय था। सम्मेलन के आयोजन में लगे मध्यप्रदेश के आई.ए.एस. अधिकारी, सांस्कृतिक सचिव और हिंदी साहित्यकार मनोज श्रीवास्तव की भूमिका विशेषकर महत्वपूर्ण थी। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने जिस प्रकार आवाभगत की है चुन चुन कर व्यंजन ही नहीं अपना प्रेम भरोसा है उसे भुलाया नहीं जा सकता
कुछ कमियाँ तो रही ही होंगी क्योंकि निर्णय लेने वाले और कार्य करने वाले तो आखिर इन्सान ही थे अपनी खूबियों और खामियों के साथ । डॉ. वेद प्रताप वैदिक, डॉ. श्यामरुद्र पाठक और ऐसे अनेक लोग जो हिंदी के लिए संघर्ष करते रहे उनकी कमी खली।
लेकिन समग्रत: इस सम्मेलन के माध्यम भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार ने हिंदी-प्रेमियों के मन में आशाओं का संचार किया है। भोपाल विश्व हिंदी सम्मेलन के माध्यम से सरकार ने हिंदी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को जताया है और जनतांत्रिक भावनाओं के अनुरूप इसे राष्ट्रभाषा के रुप मेँ अपनाने और विभिन्न क्षेत्रों मेँ, सेवा मेँ, सुविधाओं मेँ, सूचनाओं मेँ, शिक्षा मेँ इसका समावेश करने का संकल्प रखा है। इस मंतव्य को कार्यान्वित करने मेँ कितनी सफलता मिलती है यह तो वक्त ही बताएगा ।