मात्र 13 साल की उमर में तब 13 रुपये लेकर वो अभिनेता बनने के लिए घर से मुंबई भाग आये। लेकिन गुजारा करना आसान नहीं था, भूखे पेट स्टेशन पर सोये, छोटे-मोटे काम कर गुजारा किया। फिर जैसे-तैसे सिनेमा में आये और सितारों को चाय-पानी परोसने जैसे छोटे-मोटे काम किये। वह काबिलियत और किस्मत के धनी थे, तभी तो सितारों को चाय परोसते-परोसते वह पहले प्रोडक्शन कंट्रोलर बने और फिर डायरेक्टर को असिस्ट करने लगे। उनकी झोली में पहली मूवी आई, जिसका नाम ‘हसीना मान जाएगी’ (1968) है। शशि कपूर और बबीता की फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई और बतौर निर्देशक प्रकाश मेहरा छा गये। फिर उन्होंने 1971 में फिल्म ‘मेला’ और 1972 में ‘समधी’ बनाई। ये फिल्में भी जबरदस्त तरीके से सफल रहीं। मात्र पांच सालों में प्रकाश मेहरा सिनेमा के बेहतरीन निर्देशकों में शुमार हो गये।
फिर आई ‘जंजीर’ की बारी, हालांकि, शायद ही आपको पता हो कि पहले प्रकाश मेहरा ‘जंजीर’ में धर्मेंद्र को कास्ट करना चाहते थे। लिकन फिर एक्टर प्राण ने उन्हें अमिताभ को लेने की सलाह दी। प्रकाश अपना घर और बीवी के गहने गिरवी रखकर यह फिल्म बना रहे थे। उस वक्त अमिताभ बच्चन पर फ्लॉप का टैग लग चुका था। फिर भी उन्होंने रिस्क लेकर अमिताभ को इस फिल्म में कास्ट किया। सिनेमा से जुड़े कई हस्तियों ने प्रकाश मेहरा को बिग बी को न कास्ट करने की सलाह दी। मगर वह पीछे नहीं हटे और कैसे भी करके फिल्म की शूटिंग स्टार्ट की। शुरू में लगा कि मूवी नहीं चलेगी, लेकिन जब आई तब इतिहास रच दिया। फिर ‘लावारिस’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘नमक हलाल’, ‘हेरा फेरी’ जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले प्रकाश मेहरा का 17 मई 2009 को निमोनिया और मल्टीपल ऑर्गन फेलर की वजह से निधन हो गया था।
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