Thursday, November 28, 2024
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हम क्यों नहीं बन सकते जीनियस ?

एक सूफी कहावत है कि खुद को बेहतर बनाना ही, बेहतर गांव, बेहतर शहर, बेहतर देश और बेहतर दुनिया बनाने की ओर पहला कदम होता है।’ चाहता तो हर कोई बेहतर करना ही है, लेकिन बेहतर करने के लिये सबसे पहले इस बात की जरूरत है कि वह अपने आपको गंभीरता से लें। हम एक बार इतिहास में झांक कर देखें और अपने चारों ओर नजर दौड़ाकर देखें, हमें अनेक उदाहरण मिलेंगे जिन्होंने अपने को गंभीरता से लिया और एक नये इतिहास का सृजन कर दिया, असंभव को संभव कर दिया और असाधारण हो गये। जो दुनिया बदलना चाहते हैं या जिन्होंने दुनिया बदली है हमेशा परम्परा से हटकर चले हैं और उनकी सोच परम्परा से हटकर रही है। वे लोग जिन्होंने आपकी जिंदगी और जीवनशैली को बदल दिया है उनकी सफलताएं आपकी स्वीकृति में छिपी है। वे आत्माएं जिनके जीवन में अमृत के प्याले छलकते हैं, वह सब अमृत आप सबके भीतर से संचित किया हुआ है। हम सब जब किसी महान आदमी या किसी महानता के निमित्त हैं तो फिर हम स्वयं महान क्यों नहीं बन सकते? हम क्यों नहीं जीनियस बन सकते?

हर जीनियस और महान् व्यक्ति में यह खास बात होती है कि वह अपने भीतर से आ रही आवाज को जरूर सुनता है। आप भी किसी बड़े निर्णय के वक्त अपनी आत्मा की आवाज को सुनना न भूलें। यह मायने नहीं रखता है कि यह आवाज छोटी है या बड़ी। लेकिन गौर करने पर आप पायेंगे कि आपके इरादों से उनका कहीं-न-कहीं, कोई-न-कोई रिश्ता जरूर है। अचानक आपका कुछ महान् या विलक्षण करने के लिए मन बेचैन होना महज कोई संयोग नहीं है। भीतर से आ रहे ये सिग्नल आपके प्रतिभावान होने या आपसे कोई महान् कार्य कराने के संकेत भी हैं।

निर्माण का सही लक्ष्य प्राप्त न होने का एक कारण है व्यक्ति की बहिर्मुखता। अपने आपसे संवाद की स्थिति न बनना। बहिर्मुख व्यक्ति ऊपर-ऊपर की बातों में उलझता रहता है, भीतर में नहीं पैठता। ऊपर-ऊपर रहने वाला समुद्र के तल में पड़े रत्नों को कैसे पा सकता है? ऊपर के रंग-रूप में उलझने वाला गुणात्मकता ही पहचान कैसे कर सकता है?

सपने और संकल्प जीनियस बनने के मुख्य पायदान है, क्योंकि आज के सपनों में, आने वाले कल के सवालों के गूढ़ उत्तर छिपे होते हैं। हर व्यक्ति सपने देखता है, कुछ हटकर, अलग तरह के। ऐसा व्यक्ति अक्सर एक कदम आगे की सोचता है, इसी नए के प्रति उनके आग्रह में छिपा होता है विकास का रहस्य। कल्पनाओं की छलांग या दिवास्वप्न के बिना हम संभावनाओं के बंद बैग को कैसे खंगाल सकते हैं? सपने देखना एक खुशगवार तरीके से भविष्य की दिशा तय करना ही तो है। किसी भी व्यक्ति के मन के सपनों की विविधता या विस्तार उसके महान या सफल होने का दिशा-सूचक है। अक्सर लोग स्वप्नशील लोगों पर हंसते हैं, मगर वे ही स्वप्नशील लोग सफल होते हैं और महान् कार्य करते हैं।

एक प्रश्न मन को बार-बार झकझोरता है कि गुणों की सुगंध को हवा उतनी तेजी के साथ औरों तक क्यों नहीं पहुंचाती जितनी तेजी के साथ दुर्गुणों की दुर्गंध को फैलाव दे जाती है? यह जिज्ञासा मेरी ही नहीं अनेक लोगों की है, जो जीवन मूल्यों की महत्ता को महसूस करते हैं और उसे व्यापक बनाना चाहते हैं। अक्सर देखने में आता है कि महान लोगों को जीवन मूल्यों की पहचान हुई और पता चला कि उन्हें अच्छाइयों के लिए एक लम्बा सफर तय करना पड़ा। जबकि बुराइयां तो हर मोड़ पर हाथ मिलाने को तैयार रहती है।

इसका कारण हो सकता है कि विफलता का भय हो। जो लोग जोखिम उठाना नहीं चाहते वे भीतर में समाये अमृत से रू-ब-रू नहीं हो सकते। जरूरी है हम स्वयं को इस रूप में तैयार करें कि आने वाली चुनौतियों से न डरें। आशंकाओं से किस तरह पेश हो सकते हैं इसकी तैयारी करें। ऐसा करके हम सफल हो सकते हैं, महान हो सकते हैं, जीनियस बन सकते हैं। अक्सर हम खुद के भय से ज्यादा भयभीत रहते हैं। इसके लिए ताबीज की नहीं, तजबीज की जरूरत है। स्वयं के द्वारा स्वयं कोे देखने की जरूरत है। सोच को संकल्प बनाने की जरूरत है। फिर देखिए किस तरह जिदंगी का जादू जग उठेगा।

एक प्रश्न स्वयं से पूछिए कि आप अपने साथ अच्छी चीजें घटित होने की संभावनाओं को कैसे और क्यों रोक रहे हैं। किस्मत तो हर इंसान के दरवाजे खटखटाती है लेकिन तब तक आपके पास कैसे आयेगी, जब तक कि आप दरवाजा खोलकर उसे अंदर नहीं आने देते?

बुद्ध ने कहा-‘‘पुण्य करने में जल्दी करो, कहीं आप विलम्ब के कारण पुण्य का विश्वास ही न खो दे।’’ महावीर ने कहा-‘‘जागो, प्रमाद मत करो, क्योंकि प्रमाद में कृत-अकृत का विवेक ही खो जायेगा। उन्होंने कहा सोए मन की ऊर्जा का अपव्यय होता है, उपयोग नहीं। इसलिए सोए से जागना जरूरी है। सोए से जागने के कुछ तरीके हो सकते हैं जैसे- अपनी जिदंगी के किसी भाग्यशाली या स्वर्णिम अवसर को याद करें जो देने की क्रिया से उपजा था। संभव है जिस समय आपने देने के लिए हाथ बढ़ाया था उस समय यह न उपजा हो। बहुत समय व्यतीत हो जाने के बाद यह घटित हुआ हो। इसका घटित होना आपकी जिदंगी को कुछ नया अनुभव, नयी उम्मीद, नयी संभावनाएं दे गया हो।

दूसरे लोगों का प्यार भरा और उदार व्यवहार स्वीकार कीजिए। क्योंकि दूसरे लोगों के मन में भी देने की इच्छा होती है। जिस तरह देने में सुख है उसी तरह लेने में भी सुख की मानसिकता को विकसित कीजिए। क्योंकि किस्मत बनाने के लिए आपको ग्रहणशील और सहज-स्वाभाविक होने की जरूरत है। जब कोई आपकी तारीफ करे तो आप शुक्रिया कहें, उससे इनकार न करे। कुछ लेने के भाव को लेकर आप स्वयं को अपराधी न महसूस करे, उसका आनंद उठाएं।
नई सुप्रभात-हर नये दिन को इस संकल्प के साथ शुरू कीजिए कि आप कम-से -कम दिन में एक ऐसी चीज करेंगे जो किसी और को सुकून देगी। किसी की तारीफ कीजिए, किसी मित्र के लिए फूल ले जाइए, किसी को जन्मदिन, शादी की शालगिरह या किसी सफलता पर शुभकामनाएं दीजिए, जब कहीं बाहर खाना खाने जाएं तो सामान्य से थोड़ा अधिक टिप दीजिए। अगर आप किसी बड़े प्रतिष्ठान में उच्च पद पर हैं या आपका स्वयं कोई बड़ा व्यापार है तो साथ काम करने वाले व्यक्ति की अच्छाई को, उसके किसी अच्छे कार्य को देखकर धन्यवाद दीजिए और उस कार्य का उसे श्रेय दीजिए। जीनियस बनने एवं जीवन निर्माण की शुरुआत ऐसे ही छोटे-छोटे उपक्रमों से हो सकती है।

परिस्थितियों का बहाना दुर्बल मनोवृत्तियों वाले लोग करते हैं। जिनमें काम करने का दृढ़ निश्चय होता है, वे इन्हीं चैबीस घंटों में महत्वपूर्ण कार्यों को सम्पादित कर देते हैं जिन्हें करने के लिए दूसरे लोग परिस्थितियों को बहाना बनाकर अपनी कमियों पर पर्दा डालते हैं। अतः वैयक्तिक दुर्बलताओं से और परिस्थितिजन्य विवशताओं से ऊपर उठना ही विकास की सार्थकता है। विकास को गति मिलती है आत्मनिरीक्षण से। जो व्यक्ति अपने चारों ओर पहरेदारी देता है, वह बुराइयों की घुसपैठ नहीं होने देता। उसका हर सपना सत्य में ढलता है। इसलिए जरूरी है कि बीते कल को ईमानदारी से पुनः जीएं। हम कहां खड़े हैं? कहां सही और गलत हैं? गलत की समीक्षा करें। सही को और आगे अवसर दें। अतीत से सबक लेना उतना ही जरूरी है जितना भविष्य में नया करने की सोच। विकास की ऊंचाइयां छूने के लिए हमें सीढ़ियां लगानी होंगी और वे सीढ़िया हैं-‘मैं कुछ होना चाहता हूं’ इस संकल्प से शुरू होकर ‘मैं हूं मेरा भाग्य-विधाता’ इस विश्वास तक पहुंचाना। प्रेषकः

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