दुनिया के पहले हिंदी पोर्टल होने का दावा करने वाले ‘वेबदुनिया’ को 17 साल पूरे हो गए हैं। 23 सितंबर 1999 को जब इसकी शुरुआत हुई थी, तब इसे हिंदी भाषा के लिए नई क्रांति की शुरुआत माना गया था।
वेबदुनिया को इसलिए भी खास पोर्टल माना जाता है, क्योंकि जिस जमाने में अखबारों को तोप और तलवारों से ज्यादा ताकतवर और धारदार माना जाता था, ऐसे समय में लोगों को खबर पढ़ने के लिए उनके हाथ में कंप्यूटर का माउस थमाना वाकई बड़ी बात थी। वेबदुनिया की यही खूबियां उसे औरों से अलग भी करती हैं और आज इस वेब पोर्टल की देश के प्रमुख हिंदी पोर्टल्स/वेबसाइट्स में गिनती होती है।
पिछले डेढ़ दशक को याद करते हुए वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक ने अपनी फेसबुक वाल पर लिखा, ‘वेबदुनिया की स्थापना के 17 वर्ष। 23 सितंबर 1999 को दिल्ली में इंडिया इंटरनेट वर्ल्ड के जमावड़े में एक सपने ने हकीकत की दुनिया में आंख खोली थी। वो आंख जो आने वाले समय को बहुत साफ-साफ देख सकती थी। बहुत दूर तक। इंटरनेट पर कब, क्या, कैसे होगा ये देख सकने वाली आंख। एक जादुई ग्लोब जो डिजिटल दुनिया का भविष्य दिखा रहा था।
ई-पत्र, ई-वार्ता, वेबदुनिया टीवी, कुंभ स्नान, पंचतंत्र और पता नहीं कितने ही सपने जो एक के बाद एक आंख खोल रहे थे। कई सपने और उन सपनों की एक डोर। सूचना के महापथ पर भाषा का परचम लहराने का सपना। अपने देश- अपनी जमीन की बात बताने का सपना। तकनीक के रथ में स्वाभिमान के घोड़े दौड़ाने का सपना। जन-जन तक सूचना क्रांति पहुंचाने का सपना। जन-जन को इंटरनेट से जोड़ने का सपना।
तमाम चुनौतियों और झंझावतों के बीच भी अगर ये सपना हकीकत की जमीन पर फलता-फूलता और लहलहाता रहा है तो हमें उस बीज की ताकत का अंदाजा सहज ही हो जाता है जिसने इसे जन्म दिया। कई-कई लोगों के परिश्रम और स्वेद बूंदों ने इसे सींचा है। आज का दिन उन सभी को सलाम करने का दिन है। इसके और फलने-फूलने और लहलहाने की दुआ करने का दिन है। कर्म-पथ पर आगे बढ़ने और विजयी होने की शुभकामना देने का दिन है। उन करोड़ों पाठकों और शुभचिंतकों के प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है जो इसकी प्राणवायु हैं। और हां इसे नजर से बचाने के लिए टीका लगाने का भी दिन है। आप सभी का स्नेह यथावत बना रहे।’
(लेखक वेब दुनिया के संपादक हैं)
साभार- webdunia.com से