Saturday, November 23, 2024
spot_img
Homeपुस्तक चर्चाआतंकियों के जुल्म की कहानी भुक्तभोगी पत्रकार की जुबानी

आतंकियों के जुल्म की कहानी भुक्तभोगी पत्रकार की जुबानी

आतंकी संगठन आईएसआईएस की चुंगल से छूटे तुर्की के फोटोजर्नलिस्ट बुन्यामिन अयगुन के ऊपर आतंकवादियों द्वारा किए गए जुल्म की कहानी सुनकर आप कांप उठेंगे। 
 
अयगुन ने बताया कि कैसे वे आईएस के चंगुल में फंसे, कैसे आतंकियों ने उनको रखा और कैसे वो रिहा हुए। आईएस की बर्बरता का खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि 40 दिनों तक वो आतंकियों के कब्जे में रहे और ये 40 दिन उनको 40 वर्षों के समान लगे। 
 
उन्होंने बताया कि मैं वहां 40 दिनों तक रोज मर-मर के जीता था। मुझे रोज कहा जाता था, खड़े हो जाओ, प्रार्थना कर लो और जिन्हें याद करना है याद कर लो, तुम्हें कल हम तलवार से मौत के घाट उतार देंगे।
 
बंधक रहने के दौरान अपने अनुभवों को किताब ''40 डेस एट द हैंड्स ऑफ आईएस'' के जरिए दुनिया के सामने ला रहे अयगुन ने कहा कि रोज मेरे सामने मेरा पूरा जीवन होता था। मैं जब भी आंखें बंद करता था तो सपने देखता था कि कैसे आतंकवादी मुझे मौत के घाट उतारेंगे।
 
गौरतलब है कि अयगुन 'मिलियत डेली' के फोटो जर्नलिस्ट हैं और हमेशा अपने काम को लेकर चर्चा में रहते हैं। अवॉर्ड विजेता अयगुन को नवंबर 2013 में आईएसआईएस के आतंकियों ने अगवा किया था।  वह 40 दिनों तक आतंकवादियों के कब्जे में रहे। वह अपने अनुभवों के आधार पर ''40 डेस एट द हैंड्स ऑफ आईएस'' किताब लिख रहे हैं, जिसमें उन्होंने अपनी कहानी कही है।
 
अयगुन ने उल्लेख किया है कि उन्हें आतंकवादी ज्यादातर आंखों पर पट्टी बांध कर रखते थे। इस दौरान अयगुन के दोनों पैर भी रस्सी से बंधे होते थे। इस हालत में उन्हें कई बार ऐसे लगा कि वह वापस अपनी दुनिया में नहीं जा पाएंगे। उन्होंने उल्लेख किया है, 'आईएस की कैद में मेरे 40 दिन बड़ी मुश्किल से बीते। ऐसे लगा कि मैं 40 सालों से यहां कैद हूं।'
 
40 दिनों तक आतंकियों के कब्जे में रहने के बाद जब अयगुन वापस लौटे तो कई दिनों तक 'मिलियत डेली' में उनके बहादुरी के किस्से छापे गए थे। अयगुन एक बार फिर अपनी किताब को लेकर चर्चा में हैं और उनकी यह किताब जल्द ही बाजार में होगी।
 
अपने अनुभवों को बताते हुए उन्होंने किताब में लिखा है कि मुझे तुर्की का निवासी होने का फायदा मिला। तुर्की एजेंसियां लगातार मुझे बचाने का प्रयत्न कर रही थीं और अंत में मुझे बचा लिया गया। उन्होंने बताया कि जहां पर मुझे रखा गया था वहां विद्रोही गुट ने हमला कर दिया, जिस कारण आतंकियो को वहां से भागना पड़ा। इसके चलते मुझे छुड़ाने में तुकी एजेंसियों को मदद मिली।

साभार- समाचार4मीडिया से 

.

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार