आईपीसीसी के दूसरे कार्यसमूह की ताजा रिपोर्ट में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव व्यापक और परिणामी है। साथ ही इसका प्रभाव सभी महाद्वीपों और महासागरों पर पड़ने वाला है। सात साल पहले जारी की गई आईपीसीसी रिपोर्ट के लिहाज से इस रिपोर्ट पर बात की जाए तो यह बेहद अहम घटना है क्योंकि इसमें कहा गया है जलवायु परिवर्तन का प्रभाव स्पष्ट तौर पर सामने आ रहा है।
चिंताजनक बात यह है कि ताजा रिपोर्ट में इसकी पुष्टि की गई है कि जलवायु परिवर्तन केवल आने वाली पीढ़ी के लिए ही समस्या नहीं है बल्कि यह इस समय भी हम सभी को प्रभावित कर रही है। खासकर चीन में, जलवायु परिवर्तन के चलते खाद्य सुरक्षा और कृषि से संबंधित अनेक समस्याओं में इजाफा होगा। मसलन, मक्के की पैदावार में कमी आ सकती है। साथ ही, सूखे और पानी से संबंधित अनेक संकटों के चलते आम लोगों और कारोबार पर अहम आर्थिक प्रभाव पड़ेगा।
और प्रमुख शहर, जैसे गांघजू, शंघाई और तियानजिन तटीय इलाकों में आने वाले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होंगे क्योंकि वैश्विक समुद्री स्तर में 0.5 फीसदी का इजाफा होगा। रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब भी हमारे पास अपने भविष्य को चुनने का अवसर है। इसमें कहा गया है कि तापमान में तेजी से बढ़ोतरी के चलते नुकसान बढ़ा है और इस संकट की स्थिति में सुधार के लिए अनुकूलन के साथ-साथ शमन रणनीति लागू करनी होगी जिससे वैश्विक उत्सर्जन में तत्काल और तेजी से कमी आएगी।
चीन के नेताओं ने भी स्वीकार किया है कि जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ रहा है और उत्सर्जन में कमी लाने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं। इसमें कार्बन-तीव्रता लक्ष्य तय करने, स्वच्छ ऊर्जा में भारी निवेश करने और उत्सर्जन-कारोबार संबंधी पायलट कार्यक्रम शुरू करना शामिल है।
साथ ही कई प्रमुख शहरों के चारों तरफ कोयले के उत्पादन को सीमित करना भी शामिल है। इस रिपोर्ट की एक अहम बात यह भी है कि इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की मुख्य वजह लोग खुद ही हैं। और आज हम जो भी फैसला लेते हैं, उस पर बहुत कुछ निर्भर है कि आने वाले वक्त में हम जलवायु के खतरनाक प्रभावों को रोक सकते हैं या नहीं। अच्छी खबर यह है कि हमारे पास अब भी इसके समाधान का मौका है।
वांग चुंगफेंग, क्लाइमेट चेंज ऑफिस, चीन स्टेट फॉरेस्ट्री एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक़ इस रिपोर्ट ने एक बार फिर पुष्टि की है कि जलवायु परिवर्तन का असर बढ़ रहा है।अब सबसे बड़ी बहस इसके एक आरोप पर है- यह अब भी अनिश्चित है कि क्या कई घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के लिए पूरी तरह से दोषी ठहराया जा सकता है। पर, कुल मिलाकर जो रुझान है, वह खतरनाक है और इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।ऐसे अनेक शोध हो चुके हैं जिनमें यह बात सामने आई है कि चीन में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बहुत गंभीर है। उदाहरण के लिए दक्षिण-पश्चिम औरउत्तर-पश्चिम चीन में खराब मौसम और कुदरती आपदाओं का सामना करना पड़ा है।
मूल्यांकन की प्रक्रिया के दौरान, चीनी विशेषज्ञ निम्नलिखित बातें सामने लाए। मसलन, जलवायु परिवर्तन का चीन की कृषि पर कई तरह से प्रभाव पड़ रहा है। वानिकी के क्षेत्र में यह प्रभाव मिश्रित है। जंगली इलाकों में इसका तेजी से विस्तार हो रहा है और यह उत्तर की ओर बढ़ रहा है। आपदा और बीमारियों में काफी तेजी आ रही है। ग्लेशियरों के पिघलने का मतलब है कि चीन के दो प्रमुख नदी बेसिन में कम अवधि के दौरान ज्यादा पानी आएगा लेकिन लंबी अवधि के हिसाब से इसे देखें तो पाएंगे कि उत्तर-पश्चिम में जल आपूर्ति के लिहाज से नकारात्मक स्थितियां बनेंगी। रिपोर्ट का संदेश यह है कि चीन को अपने अनुकूलन को हर हाल में मजबूत करना होगा जो कि अब तक कमजोर रही है।पहले ही,चीन ने जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय रणनीति तैयार की थी लेकिन अब भी कई व्यावहारिक मुद्दों को हल करने की जरूरत है।विभिन्न क्षेत्रों में समन्वय की जरूरत है लेकिन चीन के मौजूदा प्रणाली और विभागीय बंटवारे की वजह से ऐसा नहीं हो पाया है। बड़े स्तर पर सुधार के हालिया प्रस्ताव और शक्तिशाली मंत्रालयों से उम्मीद है कि वे इस प्रक्रिया में मदद करेंगे।
शीन वे एन और लिज गालाघर के अनुसार इस रिपोर्ट ने चीन के नए शहरीकरण की प्रक्रिया के सामने भी चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। चीन की सरकार का लक्ष्य 2020 तक शहरी निवासियों की संख्या को 10 करोड़ तक बढ़ाने की है। साथ ही 2030 तक इसमें 40 से 50 करोड़ तक इजाफा करने का लक्ष्य है।
शहरीकरण आर्थिक विकास का एक प्रमुख संवाहक है। लेकिन शहरों की क्षमताएं सीमित हैं और वे अपने अस्तित्व के लिए वैश्विक लोक जरूरतों (पानी, भोजन) और ऊर्जा पर निर्भर हैं। जलवायु संबंधी खतरों से निपटने के लिए शहरों की अपनी कोई योजना नहीं है, यह काम राष्ट्रीय सरकारों का है। इस तरह खुद को बदलने के अलावा शहरों के पास कोई विकल्प नहीं है।
जलवायु संबंधी खतरों से निपटने के लिहाज से अपने को तैयार करने के लिए शानदार योजना और उसे लागू करने की जरूरत है जिसमें अच्छे संसाधनों वाला निर्माण कार्य शामिल हैं। ये सब पूरे चीन में शहरीकरण की प्रक्रिया के लिए बेहद अहम हैं।शहरी इलाकों के विस्तार में चलताऊ, सस्ते और काल्पनिक दृष्टिकोण से वातावरण में कार्बन की मात्रा में इजाफा होगा और जलवायु परिवर्तन से जुड़े संकट बढ़ेंगे जो खुशहाल शहरों की नींव हिला देंगे।प्रत्येक देश की तरह एक सम्पन्न और सौहार्दपूर्ण समाज की आशा के लिए चीन महत्वाकांक्षी बहुपक्षीय कोशिशों पर निर्भर है। एक कठोर और महत्वाकांक्षी समझौते पर सहमत होने की जरूरत है जिससे उन सभी को स्पष्ट संकेत मिले जिनके पूंजी आवंटन से यह तय हो सके कि कार्बन में कटौती हमारे में बेहद अहम है। अन्यथा, वैकल्पिक रास्ता खतरनाक साबित होगा। अपर्याप्त प्रयासों की मामूली खुराक बदलाव की कोशिशों को असफल कर देगी। हमें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करते हुए खुशहाली के लिए एक बेहतर भविष्य को सुरक्षित करना है।
ली सू, ग्रीनपीस की मानें तो चीन खासतौर पर जलवायु परिवर्तन के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। हाल के औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया के दौरान अभी तक इस देश की वैश्विक कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में भारी-भरकम हिस्सेदारी है।चीन में कोयले का उपभोग विश्व के भविष्य की जलवायु को निर्धारित करने में अकेला सबसे अहम कारक साबित होगा। 2002 से 2012 के बीच चीन में कोयले के जलने से होने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में 4.5 अरब टन का इजाफा हुआ है जो इस अवधि में वैश्विक कार्बन डाई ऑक्साइड उत्सर्जन का आधा है।
गौरतलब है कि चीन में कोयले के उपभोग में कमी लाने की जरूरत है। निश्चित रूप से यह एक चुनौतीपूर्ण काम है, पर अभी चीन के लिए इसे करना अनिवार्य है। वजह यह है कि न केवल चीन के नागरिक वायु प्रदूषण से बुरी तरह प्रभावित हैं बल्कि यह वैश्विक समुदाय के लिए अति संवेदनशील है जो कि पानी की कमी, समुद्री जल-स्तर में इजाफे और मौसम संबंधी अनेक आपदाओं से जूझ रही है और ये सब जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई हैं।
इधर केसिलिया तोरताजादा, थर्ड वल् र्ड सेंटर फॉर वाटर मैनेजमेंट, मैक्सिको का कहना है कि ताजे पानी को लेकर आईपीसीसी की रिपोर्ट का मूल्यांकन मूलरूप से एक डरावने और नकारात्मक स्थिति की ओर इशारा करता है। कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लाखों लोगों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के साथ ताजे पानी से संबंधित खतरों में इजाफा होने की आशंका बनी हुई है। दोबारा उत्पन्न करने योग्य सतही जल और भूजल संसाधनों के ज्यादातर सूखे उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में और उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों में नीचे जाने की आशंका बनी हुई है। साथ ही वैश्विक स्तर पर बाढ़ और सूखे के बढ़ने की आंशका है।
अब आइये यह समझने की कोशिश करें कि इस तरह के डरावने परिदृश्य के मद्देनजर जल-संसाधन के संबंधित नीतियों के क्या मायने हैं? दुर्भाग्य से, जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों से निपटने के लिए बनाई गई नीतियों की तरह .जल-संसाधन से जुड़ी नीतियां उतनी प्रभावी नहीं हैं। साथ ही जलीय, आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी परिस्थितियां इतनी जटिल हैं कि इससे संबंधित कोई अनुमान इस समय बेहद अनिश्चित है। हमें बेहतर जानकारी और सटीक मॉडल की जरूरत है। सबसे अहम बात यह है कि जलवायु परिवर्तन और जल प्रबंधन की राजनीति बेहद चुनौतीपूर्ण होगी जिसे इस रिपोर्ट में मामूली ध्यान दिया गया है।
इस सिलसिले में चकमेरीजे ओकेरके, यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग का विचार भी काबिलेगौर है कि कई विकासशील देशों के लिए आईपीसीसी की इस नई रिपोर्ट का सबसे अहम प्रभाव यह है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के ऊपर विशेष जोर दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को कम करना काफी कठिन है।
अनुकूलन को नजरअंदाज करके या कम महत्व देकर, वे विकासशील देशों के आर्थिक विकास को रोक रहे हैं और वर्चस्व व अन्याय की ऐतिहासिक प्रणालियों को दोबारा लागू कर रहे हैं। समानता और न्याय से संबंधित प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय सहयोग विकसित करने के रास्ते में कुछ बड़ी चुनौतियां हैं।�
श्रीनिवास कृष्णास्वामी, भारतीय एनजीओ वसुधा फाउंडेशन का अभिमत है कि भारत एक ऐसा देश है जिसका एक बड़ा हिस्सा पहले से ही भयंकर जल संकट से जूझ रहा है। स्थायी सूखे जैसी स्थिति और बाढ़ व बादल फटने जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी हो रही है। यह सब इसलिए भी डरावना है क्योंकि यहां की तकरीबन 22 फीसदी जनता गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करती है और खेती-किसानी जीविका का मुख्य साधन है। इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर संकेत है कि यह एक अति संवेदनशील देश है और अगर जलवायु परिवर्तन के संकट का हल नहीं निकाला गया तो यह और ज्यादा अति संवेदनशील है।
कैमिला टॉलमिन, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट के अनुसार आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन लोगों की शांति और सम्पन्नता के लिए खतरा है। इसमें बताया गया है कि विभिन्न देशों, समुदायों और कंपनियों को इस दिशा में अपने प्रयासों में अवश्य तेजी लानी चाहिए। पर, इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अनुकूलन की अपनी सीमाएं भी हैं और यही ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयास आगे बढ़ाता है। अब अभूतपूर्व वैश्विक एकजुटता और सहयोग का समय आ गया है। अब नए नेताओं के चमकने का मौका है। विश्व के कुछ कम विकसित देश पहले ही इस दिशा में आगे बढ़ चुके हैं। इथोपिया कार्बन उदासीन विकास के लिए प्रतिबद्ध है।
बांग्लादेश ने जलवायु संबंधी गंभीर घटनाओं से अनुकूलन के लिए खुद से 10 अरब डॉलर निवेश किया है। नेपाल पहला देश है जो अनुकूलन योजना सामुदायिक स्तर पर शुरू करने जा रहा है। यह वक्त है कि सम्पन्न देश इस दिशा में अपनी पूरी ताकत लगाएं। अपने यहां और विदेश में निवेश करें ताकि उत्सर्जन को कम किया जा सके और लोगों व संपत्ति के खतरे को बचाया जा सके।
जलवायु हमें यह बताती है कि हम सब एक साथ हैं और केवल एक एकजुट अंतरराष्ट्रीय समुदाय के रूप में ही इस समस्या को हल कर सकते हैं।
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लेखक लायंस डिस्ट्रिक्ट एजुकेशन चेयरमैन और
शासकीय दिग्विजय पीजी ऑटोनॉमस कालेज,
राजनांदगांव में प्रोफ़ेसर हैं। मो.9301054300