आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की। उसके बाद आम जनता पर हुए इसके असर को तो हम रोज अखबार, टीवी और न्यूजसाइट पर लगातार देख रहे हैं लेकिन नेताओं को भी इससे फर्क पड़ा है या नहीं मीडिया में इससे जुड़ी कम ही खबरें दिख रही हैं। ये भले ही किसी अदालत में साबित न हो पाए लेकिन आम जनता मानती है कि इस देश के नेताओं के पास काफी कालाधन है और चुनाव के मौसम में इस कालेधन की जमकर बारिश होती है। नोटबंदी लागू हुए करीब दो हफ्ते हो चुके हैं। शुरुआती दिनों में देश के विभिन्न इलाकों में भारी मात्रा में नकदी कूड़े के ढेर पर फेंके जाने, नदियों में बहाए जाने या किसी जगह फाड़कर फेके जाने की खबरें रह-रह कर आती रही हैं। अब अंदरखाने ये चर्चा भी शुरू हो चुकी है कि किन-किन नेताओं को इस फैसले से गहरी मार पड़ी है। मीडिया में चल रही गुपचुप चर्चाओं की मानें तो कई मौजूदा सांसदों को नोटबंदी से भारी आर्थिक नुकसान हुआ है। हालांकि किसी तरह के ठोस आंकड़े के अभाव में इस नुकसान का आकलन लगभग नामुमकिन है।
बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित एक लेख के अनुसार संसद के गलियारों में इस बात की काफी सुगबुगाहट है कि महाराष्ट्र के वरिष्ठ एनसीपी नेता को नोटबंदी से भारी झटका लगा है। ये नेता पिछली सरकार में मंत्री भी रहे थे। नेताजी की ज्यादातर संपत्ति नकद बड़े नोटों के रूप में थी। महाराष्ट्र के कई बिल्डरों को भी नोटबंदी से बड़ी चपत लगी है। माना जाता है कि इनमें से कई बिल्डर महाराष्ट्र के एक पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री के करीबी मित्र थे। उत्तर प्रदेश से दबी-दबी खबरें आई थीं कि कुछ दल अपने बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को नकद पैसे दे रहे हैं ताकि वो उन्हें अपने खातों में जमा करा सकें। वहीं इस तरह की भी अपुष्ट चर्चाएं मीडिया में आ रही हैं कि कुछ दल टिकट बंटवारे के समय लिए गए पैसे उम्मीदवारों को लौटा रहे हैं ताकि वो नए नोटों में भुगतान करें।
तमिलनाडु चुनाव में नकद रुपये किस कदर इस्तेमाल होते इसका पता इस बात से चलता है कि इसी साल अप्रैल में हुए विधान सभा चुनाव में चुनाव आयोग ने राज्य में करीब 100 करोड़ रुपये नकद जब्त किए थे। नकद पैसे के इस्तेमाल के मामले में शायद ही कोई दल पाक-साफ हो। तमिलनाडु की राजनीति में करुणानिधि की डीएमके और जयललिता की एआईएडीएमके का दबदबा है। जयललिता काफी समय से बीमार हैं इसलिए नोटबंदी पर उनकी प्रतिक्रिया नहीं आई है। वहीं करुणानिधि ने इस फैसले का स्वागत तो किया लेकिन इस बात की भी आशंका जताई कि इससे केवल गरीब प्रभावित होंगे अमीर नहीं। तमिलनाडु आबकारी विभाग के अनुसार राज्य के कुछ इलाकों में शराब की खरीद में बहुत ज्यादा तेजी आई है। इसलिए नोटबंदी का तमिलनाडु की दोनों प्रमुख पार्टियों पर असर पड़ना तय है।
अभी तक केवल आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने ही नोटबंदी को पूरी तरह वापस लेने की मांग की है। लेकिन बीजेपी ने साफ कह दिया है कि ऐसा संभव नहीं है। कांग्रेस, सपा, डीएमके और बसपा जैसे दलों ने नोटबंदी का समर्थन करते हुए इसे लागू करने के तरीकों की आलोचना की है। वहीं जदयू और एनसीपी ने इसका पूरी तरह समर्थन किया है। ज्यादातर राजनीतिक दलों को डर है कि नोटबंदी के विरोध को जनता कहीं कालेधन का समर्थन न मान ले क्योंकि बीजेपी नेता बार-बार यही प्रचार कर रहे हैं। चूँकि इस तरह की खबरों की पुष्टि मुश्किल होती है इसलिए ठीक नेताओं को होने वाले नुकसान से जुड़े आंकड़े शायद ही कभी सामने आ पाए।