आज लघुकथा का दिन है और आज के दिन समीक्षाएं होती है हमारी लघुकथाओ की ।आदरणीय कान्ता जी तथा आदरणीय निरुपमा जी अपनी समीक्षाओं से सदैव मार्गदर्शन करती रहती हैं।मंच पर उनका हार्दिक अभिनंदन करती हूँ-रूपेंद्र राज तिवारी
जी, आप की प्रतीक्षा है मंच को…लघु कथा के साथ
निरुपमा दी प्रिय प्रीति जी आप दोनो का स्नेहिल अभिनंदन – रूपेंद्र राज तिवारी
मित्रों प्रतीक्षा है आपकी सउद्देश्य, सटीक, सामाजिक विसंगतियों पर तीक्ष्ण प्रहार करती सुगठित लघुकथाओं की – रूपेंद्र राज तिवारी
– कोहनी पर कैक्टस ..(लघु कथा)
पार्किंग पर स्कूटर खड़ा कर दिनेश बाजार की गली में घुस गया । जहां भीड़ अधिक थी । वह अक्सर भीड़ भाड़ वाली जगह देखता और मौका पाकर जवान लड़कियों को कोहनी मारकर फर्राटे से भीड़ में गायब हो जाया करता । जवानी में पहली बार बस में धोखे से उसकी कोहनी एक लड़की को लग गई थी , तब उसने तुरंत क्षमा मांग ली थी । किंतु उसको एक अजीब सी सुखद अनुभूति हुई थी । उसी क्षणिक सुख के लिए फिर तो वह अक्सर भीड़ वाली जगह पर जानबूझ कर जाने लगा । और मौका पाते ही जवान लड़कियों को कोहनी मार कर चलता था ।अब यह उसकी आदत सी बन चुकी थी , एक नशा सा था उसको । हालाँकि अब उसकी आंखों पर मोटे फ्रेम का चश्मा चढ़ चुका था , कनपटी के बाल भी सफेद हो गए थे । फिर भी ……।
बाजार की गली में घुसते ही दिनेश ने देखा – जूस वाले की दुकान पर कुछ लड़कियां खड़ी जूस खरीद रही थीं । उसकी आंखें चमकने लगी व तेजी से चलता हुआ उनके पास गया और एक लड़की को कोहनी मारकर आगे बढ़ गया ।तभी पीछे से लड़की की आवाज सुनाई दी- “ अंकल जी !जरा देख कर चलिए “..।
आवाज़ सुनकर वह एकाएक चौंक गया । पलट कर देखा … …और जाने क्यों आज उसे अपनी कोहनी पर कैक्टस के ढेरों बारीक़ कांटें चुभते हुए से महसूस हुये । ‘ अंकिल!कह कर सम्बोधित करने वाली लड़की -’ नेहा थी । ……नेहा ..!!! “ मेरी बेटी …”।
-डॉ निरूपमा वर्मा…
वायरल
कामता जी को अपनी वरिष्ठता का बड़ा दम्भ था। थे भी ऑफिस में सबसे वरिष्ठ सो लोग उनका लिहाज कर रह जाते थे इसी का फायदा वे सदैव उठाते रहते।
जब भी बॉस कोई काम देता करने को, तो वहां बड़ी खूबी से अपनी सहमति जता आते किन्तु बाहर आते ही उनका नाटक आरम्भ हो जाता।
“उखों ! उखों ! अरे ! रोहित मुझे वायरल है यार जरा ये इतना सा काम कर देना।”
कभी रोहित तो कभी साइमन , कभी लीना कोई न कोई शिकार उसे मिल ही जाता। सभी से कहता मुझे वायरल है यार तुमसे नहीं कहूंगा तो किस्से कहूंगा।
सभी जानते थे की ये कामता जी की अलाली है किंतु उन्होंने सब पर बॉस से घनिष्ठता का रौब जो जमा रखा था।
सब यही सोचते कांच के केबिन में बैठे बॉस की आँखों पर भी शीशा चढ़ा है तो कोई क्या कर सकता है।
आज ऑफिस की प्रमोशन लिस्ट निकली जिसमें वरिष्ठ होते हुए कामता जी का कहीं नाम नहीं था। प्रायः सभी कनिष्ठों का प्रमोशन हो चुका था।
कामता जी ने बॉस से प्रश्न किया, जवाब था वायरल का समय से इलाज जरूरी है कामता वरना यह इंफेक्शन फैला देता।
– डॉ लता
आदरणीय लता जी, आप की लघु कथा वायरल एक सन्देश के साथ समाप्त होती है । जैसा करोगे वैसा भरोगे ….. ऐसे चरित्र अक्सर दफ्तरों में देखने मिल जाते हैं । कहानी में बॉस का ईमानदार चेहरा उभर कर आया है । आप को बहुत बधाई
– निरुपमा वर्मा
घर वापसी
विधि ने शीशे में अपना चेहरा देखा और आंसू की दो मोटी मोटी बूंदें उसके गालों पर ढलक आईं । अपना घर बार माता पिता और परिवार छोड़कर एक लड़की पराये घर को आबाद करने आती है पर वहाँ उसे दुत्कार और उपेक्षा मिले तो वो क्या करे ? शेखर ने आज फिर उसे अपमानित किया था। सुबह उठते ही झगड़ने लगा और बिना नाश्ता किये ही ऑफ़िस चला गया। ये बात ठीक है कि मेरी आँख नहीं खुली और उसे देर हो रही थी पर यह बात प्रेम से भी तो बोली जा सकती थी न ? पुरुष होने का यह अर्थ तो नहीं कि हर कदम पर स्त्री को ही झुकाओ और ताने दो । विधि भी कोई गिरी पड़ी तो नहीं है। बी ए पास सुन्दर सुगढ़ है । अच्छा ख़ासा दहेज़ लेकर आई है । जिस स्कूटर पर लाटसाहब ऑफिस जाते हैं वो कहाँ से आया है बताये कोई ? दुःख विधि के हृदय में लावे की तरह उबल कर आँखों की राह से बहने लगा । कुछ देर बाद उसने कुछ निश्चय कर लिया और धीमे से उठकर अपना सामान समेटने लगी, अब वह इस नर्क में नहीं रहेगी । एक कागज़ पर अपना दुखड़ा लिखकर उसने पलंग के सिरहाने रख दिया और अटैची लेकर घर से निकल गई। एक तिपहिये पर सवार होकर स्टेशन पहुंची और टिकट लेकर ट्रेन का इंतिजार करने लगी। अभी ट्रेन आने में दो घंटे शेष थे । विधि ने सामान पैरों के पास रखा और एक सीट पर बैठ कर आस पास का निरीक्षण करने लगी।
प्लेटफॉर्म पर भारी भीड़ थी। बाँहों पर बिल्ला बांधे लाल कपड़े पहने कुली तेजी से इधर उधर आवागमन कर रहे थे। विधि ने सामने की सीट पर एक नवविवाहित जोड़े को देखा तो उसके विचार भी तेजी से मस्तिष्क में दौड़ने लगे। लड़की अभी मुश्किल से बीस साल की थी जिसके हाथो की मेंहदी और ढेर सारी चूड़ियाँ उसके नवविवाहिता होने की चुगली कर रही थी । उसका पति बुद्धू सा था और देखने में भी कुछ ख़ास नहीं । मेरा शेखर तो इसके सामने राजकुमार लगता है फिर उसने सर को झटक दिया उंह ! ऐसा राजकुमार किस काम का जो बीवी को खुश न रख सके। वे दोनों चुहल कर रहे थे। विधि को अपनी केरल यात्रा याद आई। अचानक दुल्हन किसी बात पर भड़क उठी और उसका पति मिमियाने सा लगा तो विधि को हंसी आ गई । जोरू का गुलाम !! बगल में कुछ बड़ी उम्र के पुरुष बैठे अपनी बातों में मशगूल थे। यार परेशान हो गया हूँ अपनी बीवी से ,एक बोला,दिनभर ऑफिस से थक कर बॉस की झिड़कियां सुनकर दुनियाँ भर की समस्याओं से जूझता इंसान घर पहुंचे और वहां भी लटका हुआ चेहरा या शिकायतों का पिटारा ही मिले तो क्या करे आदमी ?
विधि वहां की भीड़भाड़ से असहज सी हो रही थी । उसे अपना आरामदायक कमरा याद आने लगा। शेखर परसों ही उसके लिए नरम नाजुक सी फूलदार लोई लाया था जो ओढ़ने में खूब गर्म थी । शेखर उसे प्यार तो करता है । बस जब दिमाग गर्म हो जाए तब कुछ सुनना नहीं चाहता और यही बात विधि का भी दिल दिमाग भस्म कर देती है आखिर वही हमेशा क्यों झुके ? सामने एक ग्रामीण औरत सर पर भारी गठरी लिए आ रही थी उसने पीठ पर चादर की सहायता से एक बच्चे को बाँध रखा था और एक हाथ में छोटी सी थैली लिए थी।
ऎंठदार मूंछों वाला उसका पति कंधे पर छतरी लटकाये तम्बाकू मलता हुआ उसके आगे चल रहा था। एक अपेक्षाकृत बड़े बच्चे को उसने दूसरे कंधे पर बैठा रखा था। दोनों दंपत्ति मैले कुचैले से कपड़े पहने हुए थे। अचानक महिला लड़खड़ा गई और उसकी वजनी गठरी प्लेटफॉर्म पर गिर गई ।अंदर जोर से कुछ टूटने की आवाज आई । उसका मर्द घूम कर उसे भद्दी भद्दी गालियाँ देने लगा तब तक लोगों की भीड़ उन्हें घेर कर खड़ी हो गई । औरत ने भी दबे शब्दों में प्रतिकार करना चाहा तो उस उजड्ड ने झपटकर उसे एक तमाचा जड़ दिया। औरत सर झुकाकर सिसकने लगी और सब उस आदमी को बुरा भला कहने लगे । एक नौजवान उससे बहस करने लगा और बात गिरेहबान तक पहुँच गई । यह निकट ही था कि पुरुष पिट जाता जिसने जनता की सहानुभूति खो दी थी कि ग्रामीण औरत झपट कर उठी और उसने नौजवान को धकेल कर दूर कर दिया और अपने काम से काम रखने की सलाह दी । भीड़ भुनभुनाते हुए छंट गई। विधि को याद आया कि शेखर ने मारना तो दूर आजतक उसे कभी अपशब्द भी नहीं कहा था । बेचारा दिनभर का थकामांदा आता है तो भी हंस कर ही बोलता है । वो ही कोई न कोई शिकायत किया करती है । उसके मन में शेखर के प्रति प्रेम उमड़ने लगा। जो पका दो खा लेता है कभी शिकायत नहीं करता । लाख नुकसान हो जाए विधि के हाथो कभी एक शब्द शिकायत का नहीं बोलता। अगर एक दिन गुस्से में एकाध शब्द बोल भी दिया तो कौन सा पहाड़ टूट रहा था ? और विधि ही कौन सा चुप रह गई थी ? एक की तीन जड़े बिना कलेजा ठंडा कहाँ होता है ।
एक भिखारिन विधि को छूकर कुछ मांगने लगी तो उसकी विचार श्रृंखला टूट गई और चेहरा घृणा से विकृत हो गया। आखिर ये लोग जीते ही क्यों हैं ? उसने जल्दी से उसे दो रूपये दिए और खुद को समेट कर बैठ गई। उसे चारो ओर दुःख का सागर सा लहराता महसूस हो रहा था। सभी दुखी सभी परेशान सभी निराश। उसे महसूस हुआ कि उसकी जिंदगी तो बहुत अच्छे से कट रही है। वो नाहक ही बात का बतंगड़ बनाकर घर छोड़ रही है । उसका मन किया कि घर लौट जाए । इतने में परेशानहाल शेखर प्लेटफॉर्म पर दिखाई दिया । वो पसीने पसीने था । अचानक उसने विधि को देखा और उसके चेहरे पर राहत के भाव आ गए। जल्दी से आकर उसने विधि से क्षमा मांगी तो विधि उसके गले से लिपट कर फूट फ़ूट कर रो पड़ी । शेखर उसे घर छोड़कर न जाने की विनती कर रहा था और विधि बस रोये जा रही थी ।
– महेश दुबे
महेश जी , कहानी लाजवाब है
– निरुपमा वर्मा
दोस्त – दोस्त ना रहा
राम और श्याम दो मित्र थे। राम धनी परिवार का इकलौता पुत्र था और श्याम एक गरीब परिवार से था। राम पढ़ाई मे साधारण था लेकिन श्याम पढ़ाई मे कुशाग्र बुद्धि था।श्याम मेरे दोस्त मेरे होमवकॆ तू कर दे दोस्त कहते ही श्याम राम के होम वकॆ फटाफट कर देताऔर राम खुश होकर उसे अपनी मँहगी गाड़ी मे घुमाने ले जाता। बड़े से बड़े रेस्तराँ मे खाना खिलाता। अपने सारे खेल-खिलौने भी श्याम को दे देता कहता रख ले यार तू ही तो मेरा दोस्त है भाई है सब कुछ हैऔर श्याम मन ही मन मुस्कराता था।सहसा एक दिन काम पर जाते वक्त राम के पिता की कार दुघॆटना मे मौत हो जाती है। धीरे -धीरे पिता की संपत्ति भी समाप्त होने लगती है।दुख और निराशा के कारण राम परीक्षा मे फेल हो जाता है।इधर श्याम अपनी बुद्धिऔर परिश्रम के बल पर ऊँचाईयो को छूने लगता है।जिसके कारण वह बहुत अभिमानी हो जाता है।अब राम के बार बार बुलाने पर भी उससे मिलने नहीं जात।हारकर एकदिन स्वयं राम श्याम से मिलने जाता है अपनी दोस्ती का वास्ता देता है पर श्याम पर कोई असर नही पड़ता अपने दोस्त की मजबूरी का उल्टे वह राम को बुरी तरह झिड़क देता है आखिर तुम कब तक मेरे भरोसे दुनिया मे चलोगे स्वंय कुछ करना कब सिखोगे?
श्याम के ये शब्द राम की आत्मा को झिंझोड़ने के लिए काफी थे!
– गीता भट्टाचार्य
गीता जी, बहुत अच्छी लघु कथा है । बस्स !!! थोड़ा सा लिखने -कहने का तरीका बदल कर देखिये। घटना की तरह लघु कथा नहीं लिखें । प्रयास के लिए बधाई
– निरुपमा वर्मा
-सुन बे लंगड़
– बोल टकले
– किसी दिन तेरा खून कर दूंगा
– उसके पहले मैं तेरा
-ले मर !
– तू भी ले, ले, अब करेगा मस्ती?
– हाय मर गया
– अबे क्या हुआ
– नालायक तू हट गया हाथ पाटी पर पड़ा, लगता है हड्डी टूट गई
– हे भगवान! ला देखूं रुक, हाथ हिला मत पागल!
– यार बहुत दर्द है
– थोड़ा सब्र कर यार , बर्फ लाकर लगाता हूँ फिर डॉक्टर के यहाँ चलते हैं
– जल्दी आना यार
– फ़िक्र मत कर ,अभी आया हिम्मत रख ।
– महेश दुबे
वाह। दोस्ती पर वास्तव में बेहतरीन लघु कथा । संवाद पर आधारित। आप बहुत अच्छा लिखते है। – निरुपमा वर्मा
रिटायर
आज उसे अपने 35 वर्षों के कार्यकाल से मुक्त किया जा रहा था। ऊपर से तो वह मुस्कुराकर सबसे हाथ मिला रहा था पर अंदर से लग रहा था इन्हीं हाथों में मुँह छिपाकर दीदें फाड़कर रो ले। आखिर कल से कैसे समय काटेगा। अभी तो रोज जाने की तैयारी में सुबह का समय निकल जाता था। शाम को लौटते समय घर के लिए सामान सौदा, सब्जी भाजी लाते आठ बज जाते। खाते सोते दस। अब कहाँ बिताएगा पहाड़ सा दिन।
विदाई के समय साहब ने हार पहनाते हुए धीरे से कहा, रामबाबू कल सुबह घर आ जाना। मैडम की गाड़ी तुम ही चलाओगे। साहब की बात सुनकर रिटायरमेंट का डर दिमाग से निकाल रामबाबू पार्टी का मजा लेने में लग गए।
– जया केतकी
जया जी , वाह । सच रिटारमेंट का दर्द सब से अधिक शून्य होते हुए समय को भरने की चिंता है । पूरी दिनचर्या ही गड़बड़ा जाती है । दूसरी नौकरी हाथ आते ही मानों जिंदगी की नई शुरुआत होने लगती है। बहुत सुंदर कथा है । बधाई – निरुपमा वर्मा
“खुशमिजाज़”
नीहारिका बहुत खुश दिल लड़की थी, किसी को भी उदास देखा की हँसी भरे चुटकुले सनाती, हँसना हँसाना तो उसका शौख था, तितलियों की तरह पूरे घर में यहाँ से वहाँ उड़ती फिरती, ए ओए कह कह कर पूरे मोहल्ले के बच्चों पर रोब जमाती। चंचलता और खुशमिजाज़ी उसका प्राकृतिक सौंदर्य था। उम्र से बड़ी पर दिल से मानो बच्ची ही थी।
माता पिता को शादी की बेहद चिंता थी सो एक अच्छा घर देखकर उसकी शादी अनिकेत के साथ कर दी। बस अब निहारिका के ससुराल पहुँचते ही उसने साँस को माँ मानने की भूल की मेहमान आए तो निहारिका सोफे पर ही बैठी रही, सर पर पल्लु नहीं रखा, अरे मेहमानों में जो वरिष्ठ थे उनका चरण स्पर्श करना कैसे भूल गई? इन सब तानो को सुन सुन कर तो बस उसकी खुशमिजाजी तो मानो धीरे धीरे खत्म होने लगी बस एक औपचारिक एवं सुसंस्कृत बहु के प्रोटोकॉल का जीवंत उदाहरण बन कर रह गई थी।
इसी बीच एक विवाह समारोह मे उसका जाना हुआ , जहाँ उसकी मुलाकात अपने कालेज के मित्र प्रवीण से हुई। प्रवीण उसे देख हतप्रभ रह गया, उसने निहारिका के पास आकर बात करना चाहा, तो निहारिका ने औपचारिक एवं संक्षिप्त शब्दों मे ही संवाद किया। प्रवीण से अब रहा नहीं गया उसने बड़े प्यार से निहारिका से कहा, दो मिनट के लिए मेरे साथ आओ निहारिका ने गहरी साँस लेते हुए सर झुकाया और चल पडी़ प्रवीण के पीछे, प्रवीण ने उससे एक खुबशूरत परदे के सामने खडे होने को कहा, और उसकी एक तस्वीर मोबाइल मे ली। फिर धीरे से उसके पास आ कर उसे एक तस्वीर दिखाई जो कालेज के समय की थी, और एक जो अभी अभी ली थी। और बस एक प्रशन किया कहाँ गई मेरी वो खुशमिजाज़ दोस्त ? जो खुशी का जीता जागता उदाहरण थी, जो बातों मे चहक , आँखों मे चमक, होंठों पे हँसी लिए हर किसी से मिलती थी, यही तो उसका प्राकृतिक सौंदर्य था।अब निहारिका फूट फूट कर रोने लगी, मानो दिल का दर्द आँखों से बह रहा हो। प्रवीण ने उसे समझाया दायित्व अलग है, और तुम्हारा अपना वय्क्तिगत स्वरूप अलग है। दायित्वों को निभाओ पर खुद के स्वरूप उस खुशमिजाजी़ को जिंदा रखो यही जिंदगी है। निहारिका ने नज़रें उठाई और अपने दोस्त प्रवीण से आत्मविश्वास से हाथ मिलाते हुए कहा प्रवीण से कहना निहारिका की खुशमिजाजी़ जिंदा है।
– सरिता।
सरिता जी, स्त्री के जीवनक सच है । परिवार को बनाती हुई वह खुद कब खो जाती है । जान नहीं पाती। सच, प्रवीण जैसे सच्चे दोस्त भी चाहिए । बहुत अच्छी लघु कथा आप की ।– निरुपमा वर्मा
प्रेरणा विकलांग जरुर थी मगर लाचार और बेबस नहीं उसका gunga और बहरा होना कभी उसकी उन्नति के रास्ते मैं बाधक नहीं बना ईश्वर की दी हुई इस विकलांगता को उसने कभी अभिशाप नहीं समझा क्योंकि इस विकलांगता के साथ जीवन को भरपूर जीने की शक्ति अदम्य साहस गजब का आत्मविश्वास देकर ईश्वर ने उसकी क्षमताओं को पूर्णता में बदल दिया था क्योंकि उसके साथ परिवार का सहयोग समाज की सहानुभूति और उसे प्रेरणा देने वाली उसकी बहुत ही प्यारी सहेली मुस्कान थी उसकी मुस्कान में ऐसा जादुई आकर्षण था कि हर कोई उसकी और खिंचा चला जाता था मगर मुस्कान तो प्रेरणा पर अपना सर्वस्व न्यौछावर करती रहती प्रेरणा की पेंटिंग्स को अपनी कल्पना के रंगों से रंग कर कब मुस्कान ने उसके जीवन में रंग भर दिया इसका दोनों को ही एहसास न हो पाया मगर तभी मुस्कान को जिंदगी ने ऐसा दर्द दे दिया कि वह मुस्कुराना ही भूल गई उसकी हंसी के ठहाकों की गूंज से जहां स्कूल का सारा वातावरण ही खुशनुमा हो जाता था वहां उसकी ना टूटने वाली खामोशी ने सारे माहौल में एक सिहरन से पैदा कर दी थी आवाज की मधुरता का जो खूबसूरत उपहार ईश्वर ने उसे दिया जिसने उसे पूरे स्कूल में लता मंगेशकर की उपाधि से नवाज दिया था एक दिन ईश्वर के उस वरदान को बलात्कार के क्रूर हाथों ने अपने शिकंजे में ऐसा जकड़ा कि उसे सदा के लिए खामोश कर दिया कितनी भयानक थी मुस्कान की विकलांगता
– पूर्णिमा ढिल्लो, नासिक
-पूर्णिमा जी, आप की लघु कथा मार्मिक है। आप को बहुत बधाई ।
– निरुपमा वर्मा
यूनिफार्म
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी श्रीमती सरला स्कूल में यूनिफार्म वितरण कर रही थी. विद्यालय प्रारंभ होने के साथ ही उनके पास लिस्ट आ जाती है कितने विद्यार्थी गरीबी रेखा के नीचे हैं, सभी को यूनिफार्म देने का जिम्मा सरला जी का होता, वर्दी वितरण के बाद जब वे स्कूल की प्राचार्या और शिक्षिकाओं के साथ चाय पी रही थी, किसी शिक्षिका ने पूछा-“सरला जी आप हर वर्ष यूनिफार्म ही क्यों वितरित करती हैं?”
सरला जी ने गहरी साँस ली और फिर बोली-“यह मेरे जीवन की ही घटना है जिसे मैं कभी भूल नहीं सकती,मेरे पिता जी मामूली से चपरासी थे,वे बड़ी मुश्किल से हम चार भाई-बहनों को पढ़ा रहे थे, हर वर्ष नयी यूनिफार्म लेना मुमकिन न था, पुरानी को ही ठीक ठाक कर पहनते थे, एक बार पंद्रह अगस्त को जब मैं फटी यूनिफार्म को किसी तरह सीकर पहन कर पहुंची तो वह पी.टी. के दौरान फट गई, तब टीचर ने मुझे अलग निकाल कर डाँट कर कहा था-“औकात नहीं तो पढ़ने क्यों आते हो…..
बस नहीं चाहती यह औकात वाली बात फिर कोई टीचर किसी बच्चे से कहे…..
– ज्योति गजभिये
-ज्योति जी, हमेशा की तरह एक नयी लघु कथा । बच्चों के मन में किस बात की गाँठ बन जाये । अक्सर नहीं समझते है । आप ने मनोविज्ञान को खूबसूरती से बयां किया है । बहुत बधाई आप को।
– निरुपमा वर्मा
गलतफहमी
जी मै खुद बात करूंगी रश्मि से ,वो वैसी लड़की नही है प्लीज़ समझिये समधन जी , ऐसा न कहें …रमा फोन पर गिड़गिड़ा रही थी रमेश जी समझ गए थे कि फोन बिटिया की ससुराल से है । रमा रुआंसी हो चुकी थी ,जैसे तैसे बात कर फोन बन्द किया। क्या हुआ? अब तक रमेश जी भी व्याकुल हो चुके थे पन्द्रह दिन पहले ही तो अपनी संस्कारी बेटी रश्मि को विदा किया था । रमा ने बताया रश्मि की सास बहुत नाराज़ थी शायद रश्मि दामाद के साथ शहर जाकर रहना चाहती है , जबकि उन लोगों से पहले ही बात हो चुकी थी कि 2 साल बाद सब एक साथ शहर में रहेंगे तब तक रश्मि को भी गाँव में रहना होगा दामाद जी आते जाते रहेंगे।
ये क्या रश्मि को तो सब मालूम था फिर क्यों तोड़ रही है सास ससुर का दिल, अब रमेश जी भी चिंतित थे, अभी 15 दिन हुए नही ब्याह को और अलग होने की बात ,इतने में ससुर जी का फोन भी आ चुका था वो भी आहत थे रश्मि के इस फैसले पर…. रश्मि को फोन लग नही रहा था , इधर जैसे ही रश्मि घर आई देखा मम्मी पापा के ढ़ेरों कॉल्स ,वो चाची सास के पास गई थी । उसे समझ नही आ रहा था इधर आज सुबह जब से अजय के पास जाने की बात उसने की थी , सास ससुर ने ढंग से बात तक न की । उसने तुरन्त फोन लगाया रमा को, क्या हुआ मम्मी क्यों इतने फोन कर रही थी, मै मोबाईल भूलकर चाची सास के पास चली गई थी । बस इतना बोलना था कि रमा बरस पड़ीं बेटी पर, क्या यही संस्कार दिए हमने तुझे, तुझे मालूम था तब क्यों अलग होने की बात की, बेचारे बुजुर्गो का दिल तोड़ दिया, नासमझ। कहकर फोन पापा को दे दिया पापा भी खूब बरसने लगे, रश्मि सोचने लगी हे भगवान ये क्या हो गया, सब नाराज़ हो गए मुझसे वो रुआंसी हो गई, पापा कल अजय का फोन आया था तब वही मुझसे बोले कि तुम शहर आ जाओ , थोड़ी ज़िद करो सब मान जाएंगे , तुम्हारे बिना यहां रहा नही जाता, प्लीज़ कुछ करो।
पापा मै अजय की कोई बात नही टाल सकती मै उनको बहुत चाहती हूँ ,पापा ये मैंने अजय के कहने पर किया , आप मुझे माफ़ कर दो ।रुआंसी होकर रश्मि कहने लगी पापा यदि मेरे बुरी बनने से अजय की इच्छा पूरी हो जाती है तो बन जाती हूँ बुरी ,बहू बुरी होगी तो चल जाएगा पर अजय ऐसा चाहते हैं सुनेंगे मेरे सास ससुर, तो टूट जाएंगे अजय तो उनके सामने ज़बान तक नही खोलते हैं ,और मै अपने सास ससुर की सेवा कर बाद में दिल जीत ही लुंगी आप निश्चिन्त रहें पापा । अब चौंकने की बारी रमेश जी की थी पर फिर भी उनके सिर से बोझ हट गया था , बस यही कह पाए बेटी तुम अब कुछ न बोलो हम वहां आ रहे हैं बीच का कोई रास्ता निकालेंगे ताकि दोनों की बात रह जाए और किसी को कुछ पता भी न चले…..रश्मि बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी मम्मी पापा का।
– वर्षा
वर्षा जी, नए कलेवर में है कहानी। हमेशा बहू ही गलत होती है कहानी में । आपने गलतफहमी दूर की । मेरी बधाई स्वीकार करें। – निरुपमा वर्मा
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
दो मित्र थे महेश्वर और सुरेश दोनों का व्यवसाय तो जरूर अलग-अलग था पर था एक ही जैसा । क्वाइन बिजनेस यानी कि सिक्के का बिजनेस मतलब दोनों सुबह उठकर कटोरा लेकर ट्रेन के एक ही डब्बे में घुस जाते। दोनों की मित्रता ऐसी जेसे ईश्वर ने उन्हें एक दूसरे के लिए ही बनाया हो ।एक अद्भुत कवि जिसे सुंदर गीत लिखने और ढफली बजान में महारत और दूसरा उसी के गीत गाता। शाम तक जो कुछ मिलता मस्ती में खाते चैन की बंसी बजाते अचानक नोट के फरमान तथा पैसे की किल्लत ने इस धंधे को चौपट कर दिया अब लोगों की जेब में ही पैसा नहीं तो लोग दान भी कैसे करते, ऊपर से गर्मियों के दिन, आधे से ज्यादा लोग तो गांव चले गये। दोनों परेशान पर महेश्वर ने हिम्मत नहीं हारी ।दिमाग से काम लिया ।दोनों ने मिलकर स्टेशन के बाहर नींबू पानी की दुकान खोल दी और मोबाइल में पेटीएम एप्स डाल दिया ।लोग आते जमकर नींबू का पानी पीते ,गर्मी से राहत मिलती ,और पेटीएम से पैसा देते। इस तरह से उन्होंने एक तरह से देश सेवा भी करनी शुरू कर दी।
इस नए कार्य से उन्होंने अपना पुराना धंधा मतलब भीख मांगने का धंधा भी बंद कर दिया और एक नए उत्साह के साथ जीवन जीना शुरु किया। जब सरकार को यह पता चला तो उन दोनों को एक समारोह में सम्मानित भी किया जहाँ महेश्वर ने अपनी कविता से पूरी महफ़िल का दिल जीत लिया कालांतर में यही महेश्वर देश का सबसे बड़ा कवि बना।
– अमर त्रिपाठी
झूठा सच
राम के बापू ज़रा राम का भेजा हुआ ख़त पढ़कर सुनाइये , ना ! राम की अंधी “माँ ” ने कहा । और एक बार फिर खाली कागज़ से पढ़े हुए झूठे शब्दों ने उसकी माँ केचेहरे पर एक मुस्कान बिखेर दी।
– मीना शर्मा
– मंगलसूत्र
सुधीर ने दफतर से जब लता को फोन पर कहा कि उसकी मां आज दोपहर की गाड़ी से आ रहीं है तब लता के मुँह से सिर्फ ‘ओह’ निकला।
“ओह क्या…”
“नहीं वोह…”
“वो क्या….”
“मैं ने मंगलसूत्र उतार कर कहीं रख दिया है। ढुँढती हूँ। तुम्हें तो पता है मैं वेस्टर्न कपड़े पहनती हूँ और इन कपड़ों के साथ मंगलसूत्र का बिलकुल मेल नहीं होता।”
लता ने अलमारी में देखा, नहीं मिला । अलमारी के लोकर में देखने गई तब हड़बड़ी में पासवर्ड नंबर भूल गई। वह सोच रही थी सास वैसे तो आधुनिक है लेकिन मंगलसूत्र के मामले में बहुत सट्रिकट (नियमनिष्ठ) है। खुद हंमेशा बड़ा सा मंगलसूत्र पहन कर घुमती रहती है और चाहती है कि उसकी बहु भी वैसे ही रहे।
खैर, लता ने रसोई में जा कर काम करना शुरू कर दिया।
दोपहर में जब सासु मां आई तब कुछ परेशान लग रही थी। उनके हाथ में रुमाल था जिसमें टुटा हुआ मंगलसूत्र और काले मोती बांध के रखे हुए थे। आते ही सासु मां ने कहा “आज भीड़ में गाड़ी से उतरते वक्त खींचातानी में मंगलसूत्र टूट गया, कुछ मोती भी गिर गये।अब इसे तुरंत ठीक करवाना होगा । तुम्हें तो पता है मुझे कितनी तकलीफ होती है अगर गले में मंगलसूत्र न हो तो। अरे, बहु तुम्हारा मंगलसूत्र कहां है, टूट गया क्या?”
लता ने कुछ अटक अटक कर कहा, “हं…..हुं।”
– रानी मोटवानी
रानी जी, अच्छी लघु कथा के लिए बधाई। कहानी में सच है । और बहुत अच्छी है।
– निरुपमा वर्मा
आश्चर्य कब तक
आन्टी आपका जो बुढा सा नया ड्रायवर है क्या उसकी शादी नही हुई है?
क्यों क्या हुआ तू ये सब क्यु पूछ रही है
वो बस आन्टी ऐसे ही पूछ रही हूं
अरे ऐसे ही कोई बिना मतलब के कोई किसी से किसी भी प्रकार की बात नही पूछता है —–जरूर कोई बात होगी जो तू ऐसा पूछ रही है
वो क्या है न आन्टी कि कुछ दिनो पहले जब ऊपर वाले फ्लेट वाली आन्टी के कहने पर उनके यहां एक काम वाली बाई को काम के लिये ले कर गई तब से यह ड्राइवर मेरे पीछे पड़ा है और पूछता है की वह औरत कौन थी कहां रहती है कब से काम पर आएगी।
आप जानती हैं आप जब मेरी बड़ी बहन यहां काम पर मेरे साथ आती है तो उसे भी घूर घूर कर देखता है छूने व पकड़ने की कोशिश करता है एक बार तो मेरी बहन ने उस गंदे बूढ़े को गंदी गंदी गालियां भी दी थी।
आंटी यह मर्द जात ऐसी क्यों होती है साले सब नीच कुत्ते कमीने ही क्यों होते हैं। अरे अरे अरे तू तो मेरे यहां अपनी झोपड़पट्टी की गालियां देने लगी यह अच्छी बात नहीं बच्चे सुनेंगे तो गलत असर पड़ेगा। ओह आंटी हम सबकी तो अब यह गाली गलौज करना रात दिन की आदत हो गई है और इन मर्दों को गाली ना दूं तो क्या इन जालिमों की पूजा करू और जानती हो आंटी कि मैं आपको क्या क्या बताऊं कि हमारी झोपड़पट्टी में कैसे कैसे गंदे गंदे लोग रहते हैं अगर आप अपनी आंखों से देखेंगे और सुनेंगी तभी आपको यकीन होगा।
साले सब शराबी नकारे बेचारी औरतें काम कर-कर के घर बड़ी मुश्किल से चलाती हैं और यह घर पर पड़े पड़े बहुत गंदी-गंदी हरकतें करते हैं छोटी-छोटी लड़कियों को बुलाकर अपने को नंगा करके उनसे ना जाने क्या-क्या करवाते हैं और वह छोटी लड़कियों को इन सब का कुछ मतलब समझता नहीं है दो पाँच रुपए में खुश हो जाती है
और जब कभी किसी लड़की ने मुझे यह सब बताया कि किस ने उसके साथ क्या-क्या कैसा-कैसा किया तो मैं उस लड़की को और उन सब को समझाती हूं कि वहां मत जाना सब गंदे हैं यह सब गंदी बातें हैं ये सब हमारी जिन्दगी के लिये अच्ता नही है कारण की आंटी मेरी मां हम चारों बहनों का बहुत ध्यान रखती है बहुत अच्छी अच्छी बातें समझाती है हम सब अपने काम से काम रखती हैं पर अभी कुछ दिनों से आपका ड्राइवर अपने आपको कुछ ज्यादा सयाना होशियार समझने लगा है साला जब देखो मेरे को घूरता रहता है
आंटी यह साले मर्द शादी के बाद भी ऐसा क्यों करते हैं हमेशा दूसरी औरतों की चाह क्यों करते हैं। अच्छा ऐसी बात थी तो तूने यह सब मुझसे अभी तक कहा क्यों नहीं मैं तो उसे बड़ा आदर देती हूं और हां जब उस दिन मेरे सर में बहुत जोरों का दर्द हो रहा था और मुझे कहीं चैन नहीं पड़ रहा था तो उसने मुझसे कहा कि भाभी जी मुझे एक्यूप्रेशर के पॉइंट दबाने आते हैं अगर आप कहे तो आपके सर के पॉइंट दबा देता हूं। मेरे हां कहने पर उसने मेरे सर के पॉइंट दबाये थे।
मेरे मन में तो उसके प्रति पिता समान आदर था मैं हमेशा उसका सम्मान करती हूं पर उसके मन में क्या था उस समय मेरी समझ में नहीं आया था। अरे आंटी उनके मन में कब क्या होता है यह कब क्या सोचते हैं कब क्या करते हैं कोई नहीं जान पाता है इनको ना तो शर्म है ना इनमे कोई प्रेम की भावना है ना किसी के प्रति आदर सम्मान इनको तो सिर्फ अपने आप से ही मतलब है इनको तो सिर्फ औरत के शरीर से ही मतलब है, पर आपको क्या बताऊं आंटी आप तो यह भी नहीं जानती कि आपके पति भी अक्सर मुझे घूर-घूरकर बुरी नजर से देखते हैं आप तो कितनी सुंदर पढ़ी लिखी हो और अच्छा कमाती भी हो फिर भी ना जाने मुझे ऐसी गरीब काली लड़की में उनको क्या दिखता है क्या अच्छा लगता है ओर मुझसे क्या पाने कि चाह मै आप जैसी अच्छी औरत को धोखा देना चाह रहै थे मैने मना किया तो क्या वो कही ओर किसी ओर के साथ ऐसी हरकत नही करेंगे।
यहां तक कि अकेले में मुझे पकड़ने की कोशिश करते हैं और एक बार तो पकड़ कर मेरे सीने में भी हाथ फेर रहे थे मैंने अपने आप को बड़ी मुश्किल से छुड़ाया कहां की आंटी को सब बता दूंगी तो मुझे ही उल्टा डांटने लगे कि तूने अगर अपनी चाहती आंटी को कुछ बताया तो तेरी व तेरी मां की खैर नहीं, तुम दोनों मां बेटी पर चोरी का इल्जाम लगाकर या कुछ और उल्टे सीधे इल्जाम लगा कर पुलिस में रिपोर्ट करवाऊंगा और मुझे सो रुपए जबरदस्ती देने की कोशिश करने लगे पर मैंने नहीं लिए और मैं बहुत डर गई इसलिए आपको भी नहीं बताया ना ही अपनी मां को और इसलिए मैं अब जब आप घर पर नहीं होती या आपके पति अकेले होते हैं तो मैं अकेले काम पर नहीं आती हूं अपनी मां को लेकर आती हूं और काम करके हम दोनों साथ चली जाती है।
एक तेरह चौदह बरस की काली नाटी काम वाली लड़की से ऐसी सब बातें सुनकर मेरा मन और आश्चर्य से नहीं भर पाया क्योंकि मैं जानती हूं इस दुनिया में कब कहां क्या घट जाए क्या हो जाए और फिर खासकर औरत के साथ ऐसा कुछ भी हो सकता है जिसका कि उसको स्वयं भी अंदाजा नहीं होता इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी बड़ी समझदारी की बातें मुझ जैसी पढ़ी लिखी को अनपढ़ साबित कर रही थी
मैं विवश सोच रही थी कि नव पल्लवित चीजें सबको अपनी और आकर्षित करती है वो काली लड़की उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जिससे पूर्ण नारित्व में ढलना है नए-नए परंतु जाने पहचाने शारीरिक परिवर्तन का होना नियति है। यानी प्रकृति का नियम कुछ अजीब है हमेशा बदलाव परिवर्तित नई नई चीजों पर आकर्षित होना इंसान का स्वभाव है बस उसे जो पाना है उसे पाने के लिए वह पागल पनकी हद से भी गुजर जाता है और पागल ही रहता है कली खिले या ना खिले बस तोड़ने की कोशिश हर कोई करता है तो फिर अनायास या सदैव घटित छुपी हुई घटनाओं पर आश्चर्य कब तक करें उस ड्राइवर को तो हमने किसी बहाने निकाल दिया पर अपने पति का क्या करूं अपने पति का क्या उनको कैसे स्वीकार करू कैसे अपने मन मै लगे घावो को भर कर भूल जाऊँ।
– प्रियंका सोनी ” प्रीत”
सब की लघु कथा सारगर्भित रही। सब की मेहनत रंग लाई है। आज मंच पर अच्छा लगा । नए कथ्य के साथ। कल मिलते हैं। सब को शुभ रात्रि।
– निरुपमा वर्मा
समाज सेवा
रीता भाभी से महौल्ले में सभी परिचित हैं आए दिन अखबारों में सुर्खियों में रहती थी विभिन्न आश्रमों में गरीब बच्चों में स्कूल यूनिफार्म हो या कापी वह सब व्यवस्था करवाते जब से ठंड बढी हैं वह कंबल वितरण कर लोगों को ठंड से बचाते आज भी जब वे कंबल बांटकर घर लौट रहे थे तो देखा उनके घर पर बहुत भीड लगी हैं जब करीब गई तो लोगो ने कहा आपके ससुरजी बरामदे में ठंड से ठिठुरते चल बसे।
– शीलू लुनिया