फिल्म निर्देशक नितिन बोस द्वारा 1961 में निर्देशित फिल्म गंगा जमुना का सुपरहिट गीत इंसाफिल्म फ की डगर पे बच्चो दिखाओ चलके-यह देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कल के’, किसी समय देश के अधिकांश लोगों की ज़ुबान पर हुआ करता था। स्कूलों तथा सांस्कृतिक व सामाजिक समारोहों में इस गीत को बार-बार बजाया जाता था। जनता भी बहुत भावुक होकर तथा राष्ट्रप्रेम की भावनाओं से ओत-प्रोत होकर यह गीत सुनती थी तथा अपने बच्चों को भी यह गीत सुनाती थी। परंतु अब यह गीत बजता सुनाई नहीं देता। इस प्रकार के गीत अब आम भारतीयों में राष्ट्रप्रेम तथा राष्ट्रभक्ति की भावनाओं का संचार नहीं कर पाते। ज़ाहिर है इसका एकमात्र कारण यही है कि वर्तमान दौर की राजनीति बेहद प्रदूषित व बदनाम हो चुकी है। राजनीति में देश की सेवा करने वालों तथा उच्च शिक्षा प्राप्त नीति निर्माताओं की जगह अशिक्षित,अवांछनीय,फिल्म फसादी व अपराधी प्रवृति के तथा व्यवसायिक मानसिकता रखने वाले लोग लेते जा रहे हंै। आज की राननीति उस दौर से गुज़र रही है जबकि नेतागण अपना पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित रखते हैं कि किस प्रकार छल-कपट,झूठ,मक्कारी,लालच अथवा पाखंड,सांप्रदायिकता या जातिवाद जैसी बुराईयों को अपना मज़बूत शस्त्र बनाकर चुनाव में विजय हासिल की जाए। वास्तव में राजनीति का सही मायने में तक़ाज़ा तो यही है कि राजनेता समाज को जोडऩे का काम करे,समाज में एकता व भाईचारा पैदा करने की कोशिश करे,समाज के सभी वर्गो को साथ लेकर देश के चहुंमुखी विकास का प्रयास करे। परंतु अफिल्म फसोस की बात है कि आज भारतीय राजनीति अयोग्य राजनीतिज्ञों के चलते एक ऐसे पेशे का रूप धारण करती जा रही है कि अब नेताओं के अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति अपने बच्चे को ‘कल का नेता’ बनाने की बात तो सोच भी नहीं सकता।
आज यदि हम अपने देश के कर्णधार पूर्व नेताओं के भाषणों की उपलब्ध रिकॉर्डिंग सुनें तो ऐसा प्रतीत होगा गोया कानों में शहद सा घुल गया हो। गांधी,नेहरू,पटेल,शास्त्री जैसे नेता जिस समय भाषण दिया करते थे उसमें शिष्टाचार,विकास,राष्ट्रीय एकता,सामाजिक सद्भाव,ईमानदारी तथा विनम्रता की झलक साफिल्म फ दिखाई देती थी। सभी धर्मों व समुदायों के लोग एक साथ खड़े होकर इनकी बातें सुनते थे,उनसे प्रभावित होते थे तथा प्रेरणा प्राप्त करते थे। निश्चित रूप से इन्हीं नेताओं की ओर इशारा करते हुए अपने बच्चों को ‘कल का नेता’ बनाने की कल्पना करने वाला यह गीत कवि प्रदीप द्वारा गंगा-जमुना फिल्मके लिए लिखा गया था। ज़ाहिर है न तो आज देश के पास ऐसे नेता हैं न ही इस प्रकार के गीतों की कल्पना आज के कवि कर सकते हैं। सवाल यह है कि राजनीति को प्रदूषित करने व इसे कलंकित करने का जि़म्मेदार आफिल्म िखर है कौन? आज के नेताओं की बदज़ुबानी,बदतमीज़ी तथा उनके कड़वे बोल हमें सुनाई ही क्यों देते हैं? ज़ाहिर है ऐसे बोल बोलने वाले नेता यह बात बफिल्म खूबी समझते हैं कि ऐसे बोल सुनकर भीड़ में खड़े उनके हमफिल्म ख्याल चंद लोग तालियां बजाएंगे,उनके भडक़ाऊ व बेतुके भाषण सुनकर उत्साहित होंगे। समाज में भले ही दरार क्यों न पड़े परंतु सुनने वाली भीड़ का एक हिस्सा मज़बूती से उनके भडक़ाऊ भाषणों का पक्षधर बनते हुए उनके साथ खड़ा होगा। और यही स्थिति उनकी जीत का कारण बनेगी।
ऐसे अवांछनीय तथा राजनीति को बदनाम करने वाले लोगों को राजनीति के क्षेत्र में लगातार मिलती जा रही बढ़त का एक बड़ा कारण यह भी है कि वर्ततान राजनैतिक वातावरण से भयभीत होकर या हतोत्साहित होकर शरीफिल्म फ,योग्य तथा शिक्षित लोगों ने राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय होने का इरादा ही लगभग छोड़ दिया है। इस स्थिति ने भी अयोग्य लोगों को सियासत के मैदान में गोया ‘वाकओवर’ दे दिया है। एक शरीफिल्म फ और ईमानदार व्यक्ति यह भलीभांति महसूस करने लगा है कि आज की सियासत की परम आवश्यक चीज़ें जैसे बेतहाशा काला धन,कार्यकर्ताओं की लंबी फिल्म फौज,सैकड़ों गाडिय़ों का काफिल्म िफला,जायज़ व नाजायज़ हथियारों का ज़फिल्म खीरा,चुनाव के समय लगभग एक महीने तक लगातार विभिन्न क्षेत्रों में 24 घंटे चलने वाला लंगर तथा इस लंगर में खाने से लेकर ‘पीने’ तक की पूरी व्यवस्था, चुनाव के अंतिम समय में ज़रूरतमंदों को गुप्त रूप से बांटने के लिए धन व विभिन्न प्रतिबंधित सामग्रियों आदि की व्यवस्था कर पाना उसके वश की बात नहीं है। और निश्चित रूप से उपरोक्त चीज़ें आज के दौर के चुनाव व राजनीति की ज़रूरत बन चुकी हैं। ऐसे में जो व्यक्ति इनकी व्यवस्था कर पाता है वही सियासत में अपनी सफलता का परचम लहरा पाता है। चाहे वह सांप्रदायिकता व जातिवाद का राग अलापने वाला हो चाहे दर्जनों आपराधिक मुफिल्म कद्दमों का सामना करने वाला हो, चाहे हत्या,डकैती व फिरौती वसूलने जैसे अपराधों में संलिप्त क्यों न रहा हो।
पिछले दिनों बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने पूर्वांचल के बाहुबली मुख्तार अंसारी को अपनी पार्टी में शामिल किया तथा साथ ही उनके परिवार के कई सदस्यों को टिकट देने की भी घोषणा की। यह वही मुफिल्म ख्तार अंसारी हंै जिन्हें समाजवादी पार्टी में शामिल करने न करने को लेकर सपा में पिछले दिनों भूचाल की स्थिति पैदा हो गई थी। परंतु मात्र पूर्वांचल के अल्पसंख्यक मतों पर नज़र रखते हुए मायावती ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल किया। क्या उन्हें पूर्वांचल में उनके अतिरिक्त कोई और सज्जन व्यक्ति उस क्षेत्र में नहीं मिल सका जिसे वे पार्टी का उम्मीदवार बनातीं? इस प्रकार और कई ऐसे लोग जिनका दूर-दूर तक शिष्टाचार,प्रेम,सद्भाव व भाईचारे से कोई नाता नज़र नहीं आता वे चुनावों में ज़हर उगलते देखे जा रहे हैं। लोकसभा के एक भाजपा सांसद हैं रमेश विधूड़ी। इन माननीय सांसद के बोल सुनिए-‘घर में उम्मीद रहती है कि पोता आए। इसके लिए नौ-दस महीने इंतज़ार करना पड़ता है। यदि पांच-सात महीने में बहू के साथ बच्चा आ जाए तो कैसा लगेगा। अब यह संस्कार तो कांग्रेस के फिल्म खानदान में होते होंगे, मायावती के फिल्म खानदान में होते होंगे,इटली में संस्कार होते होंगे कि शादी के बाद पांच-सात महीने मे ंपौता-पोती आ जाए’। मथुरा की एक चुनाव सभा में माननीय सांसद ने अपने मुखारविंद से यह वाक्य उगले। क्या किसी शिष्ट,शिक्षित व विनम्र नेता द्वारा ऐसे भाषण की उम्मीद की जा सकती है?
इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में चुनाव के दौरान केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री संजीव बालियान ने फिल्म फरमाया कि मुलायम सिंह यादव हमेशा सांप्रदायिक राजनीति करते आए हैं और अब उनकी मौत का वफिल्म क्त आ गया है।किसी नए-नवेले मंत्री स्तर के नेता द्वारा ऐसी भाषा बोला जाना कितना अशोभनीय है। योगी आदित्य नाथ जैसे सांसद जब कहें कि यदि अमुक समाज की एक लडक़ी कोई ले जाए तो उस समाज की सौ लड़कियां उठा लाओ। कोई यदि एक मारे तो तुम दस को मारो। इसी प्रकार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थााना भवन क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी सुरेश राणा अपने भाषण में फिल्म फरमाते हैं कि यदि इस बार वे चुनाव में जीत गए तो देवबंद और मुरादाबाद में कफिल्म फर््यू लग जाएगा। हर-हर महादेव का नारा लगाते हुए भगवा लहराएंगे। इस विधायक का नाम मुज़फिल्म फ्फिल्म फरनगर दंगों के समय सांप्रदायिक हिंसा भडक़ाने में चर्चा में आया था। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी सार्वजनिक रूप से सोनिया गांधी को वेश्या तक कहने से गुरेज़ नहीं करते। इमरान मसूद जिसने नरेंद्र मोदी के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से अशोभनीय टिप्पणी की थी वह इस समय अपनी उसी विवादित टिप्पणी के चलते कांग्रेस पार्टी की आंखों का तारा बना हुआ है और विधानसभा चुनाव भी लड़ रहा है। निश्चित रूप से इस प्रकार के अनेक अवांछनीय तत्वों की राजनीति में सक्रियता तथा उनकी सफलता यह प्रमाणित करती है कि आज की राजनीति तमीज़,तहजीब, शिष्टाचार तथा अनुशासन को अलविदा कह चुकी है।
Nirmal Rani (Writer)
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