विडंबना के रूप में सही, लेकिन हँसते-हँसते अनायास ही सबको यह बात तो समझ में आने लगी है कि हिंदी की उत्कृष्ट रचनाओं को विश्वव्यापी बनाने के लिए अंग्रेज़ी में उनका अनुवाद होना ही चाहिए.
कुछ माह पूर्व भाजपा के वरिष्ठ नेता स्व. केदारनाथ साहनी जी के स्मृति ग्रंथ के लोकार्पण के समय भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा मूल रूप में हिंदी में लिखित पुरोवाक् को अंग्रेज़ी में अनूदित करवाने के लिए कैप्टन रघुवंशी की सेवाएँ ली गई थीं और संपादक मंडल ने उनकी अनुवाद क्षमता की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी.
कल पुणे निवासी संजय भारद्वाज द्वारा लिखित “आज मैं फिर हँसा था…” कविता को और कैप्टन रघुवंशी द्वारा अंग्रेज़ी में रूपांतरित पाठ को जब हिंदी विमर्श और हिंदी शिक्षक बंधु के सदस्यों से साझा किया गया तो अनेक सदस्यों में न केवल इस मार्मिक कविता को सराहा, बल्कि उसके अंग्रेज़ी अनुवाद की भी सराहना की. मैं तो अब केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली केंद्र में उनके अनुवाद के आधार पर साहित्यिक अनुवाद के उत्कृष्ट नमूने के तौर पर छात्रों को व्यावहारिक अनुवाद की कला सिखाने के लिए इसका भरपूर उपयोग भी करने लगा हूँ. ऐसी स्थिति में हर क्षेत्र में पहले करने वाली प्रो. वशिनी शर्मा ने साहित्यिक अनुवाद को प्रोत्साहित करने के लिए अलग वैबसाइट बनाने का संकल्प किया है.
इसलिए मैं आप सबसे और विशेष तौर पर कैप्टन रघुवंशी से अनुरोध करता हूँ कि आपने हिंदी की जिन उत्कृष्ट रचनाओं को अंग्रेज़ी में अनूदित किया हो, उन्हें मूल हिंदी पाठ के साथ युनिकोड में टाइप करके वशिनी जी को यथाशीघ्र भिजवा दें, ताकि इस अनुष्ठान को एक आंदोलन बनाया जा सके. मुझे मालूम है कि विदेशों में बसे हिंदी के अनेक साहित्यकारों ने इस दिशा में प्रयास किये हैं. नॉटिंघम (यू.के.) में बसी जया वर्मा जी का नाम इस संबंध में उल्लेखनीय है.
शुभमस्तु
विजय
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विजय कुमार मल्होत्रा
पूर्व निदेशक (राजभाषा),
रेल मंत्रालय,भारत सरकार1