अब जब एक बार फिर एयर इंडिया को टाटा को बेचे जाने की सुगबुगाहट शुरु हुई है तो इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है कि कैसे देश में आजादी बाद के शासकों के समाजवाद के प्रति झुकाव या निजी पसंद, नापसंद के कारण भारत में उद्योगों का भट्ठा बैठा है। एयर इंडिया इसका जीता जागता उदाहरण है। जो एयरलाइंस कभी टाटा की डेरी में भरपूर दूध देने वाली जर्सी गाय हुआ करती थी उसे सरकारी हस्तक्षेप के चलते अफसरों- नेताओं ने सब्जी मंडियो और कूड़े के ढेर पर मुंह मारने वाली गाय बना कर छोड़ दिया। अब दशकों की लूटपाट के बाद, अरबों रुपए का घाटा उठाने के बाद फिर उसे उसके असली मालिक को सौंपने की चर्चा शुरु हो गई है।
एयर इंडिया और टाटा एक दूसरे के पर्याय है। इस एयरलाइंस को जानने के लिए उसके संस्थापक जेआरडी टाटा को जानना जरुरी हो जाता है। जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा जाने माने व्यापारी रतनजी दादाभाई टाटा के बेटे थे। उनकी मां सुजेन ब्रेयर फ्रांसीसी थीं। वे देश की पहली महिला कार चालक थीं। रतनजी दादाभाई की भतीजी रतीबाई थी जिसने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना से शादी की थी व जमशेदजी टाटा के कजन थे।
जेआरडी का जन्म फ्रांस में हुआ था। उसकी मां ज्यादातर वहीं रहती थीं। उन्होंने लंदन, जापान, फ्रांस व भारत में पढ़ाई की। जब वे फ्रांस में थे तो उस समय प्रथम विश्व युद्ध शुरु हो गया व फ्रांस ने वहां के नागरिकों के लिए सेना में दो साल के लिए भर्ती होना अनिवार्य कर दिया। वे वहां की सिपाही रेंजीमेट में भर्ती हो गए। फ्रेंच व अंग्रेजी भाषा पर उनके अधिकार को देखते हुए रेजीमेंट के कर्नल ने उन्हें अपना सेक्रेटरी बना लिया। बाद में उन्होंने सेना छोड़ दी व भारत की नागरिकता लेकर यहां चले आए। अगले ही साल एक हमले में उनकी पूरी रेजीमेंट का सफाया हो गया।
उन्होंने 1925 में टाटा संस में नौकरी शुरू की। वह प्रशिक्षु की नौकरी थी। उन्हें विमानों से बचपन से काफी लगाव था। जब वे महज पांच साल के थे तो उनकी अपने पड़ोस में रहने वाले जाने माने विमान चालक लुइस लेरियार से दोस्ती हो गई। वे 1929 में भारत के पहले लाइसेंस प्राप्त पायलट बने व 1932 में उन्होंने टाटा एविएशन नाम से दो लाख रुपए की लागत से विमान कंपनी शुरु की। महज 34 साल की उम्र में वे टाटा समूह के अध्यक्ष बन गए। जब उन्होंने कंपनी संभाली तो उसकी 14 कंपनियां थी और जब उन्होंने रिटायर होने का फैसला किया तो टाटा समूह की 90 कंपनियां हो चुकी थी।
उन्होंने 1937 में पहली बार मुंबई व दिल्ली के बीच यात्री उड़ान भरी व 1946 में इस कंपनी के शेयर बेचने के साथ ही उसका नाम एयर इंडिया लिमिटेड रख दिया। देश आजाद होने के बाद उनकी कंपनी अंतरराष्ट्रीय सेवाएं भी देने लगीं। उन्होंने इंग्लैंड के इंपीरियल एयरवेज के साथ मिलकर डाक ले जाने की सेवा शुरु की। देश आजाद होने के बाद जब जवाहर लाल नेहरु प्रधानमंत्री बने तो उन पर समाजवाद का भूत सवार था। उन्होंने गणतंत्र बनने के अगले ही साल 1953 में एयर इंडिया समेत नौ अन्य विमान कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इनमें बीजू पटनायक की कलिंग एयरवेज भी शामिल थी। गनीमत इतनी ही रही कि नेहरु ने जेआरडी को एयर इंडिया का अध्यक्ष बना दिया।
जेआरडी इस एयरलाइंस को अपने बच्चे की तरह मानते थे। वे अक्सर उससे सफर करते समय खामिया ढूंढने व संबंधित अधिकारियों को पत्र लिखकर उन्हें दूर करने का निर्देश देते। । एक बार मुंबई से बेरुत जाते समय उन्होंने पाया कि मिठाई व आमलेट ठीक नही था। उन्होंने प्रबंधकों को लिखा कि मिठाई में से सिर के तेल जैसी बदबू आ रही थी व आमलेट जलने की हद तक भुना हुआ था। उन्होने सुझाव दिया कि जब खाना विमान में लादा जाए तो आमलेट थोड़ा कच्चा होना चाहिए ताकि उसे विमान में गरम करके ठीक पकाया जा सके। उन्होंने कहा कि उड़ान के दौरान फलों में सिर्फ संतरे और सेब ही क्यों परोसे जाते हैं? फ्रैंकफर्ट की उड़ान के बाद उन्होंने मैनेजरों से पूछा कि इस उड़ान पर एक में ऐसी एयर होस्टेस क्यों नहीं है जो कि जर्मन भाषा बोलना जानती हो?
वे यह तय करते थे कि विमान के अंदर की साज सज्जा कैसी हो? उसमें दिया जाने वाला खाना कैसा हो? वे 1972 तक एयर इंडिया के अध्यक्ष रहे। तब तक पूरी कंपनी लगातार मुनाफा कमाती रही। जब जनता पार्टी सत्ता में आयी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने उन्हें कांग्रेसी मानते हुए उन्हें इस पद से हटा कर एयर चीफ मार्शल पीसी लाल को एयर इंडिया का अध्यक्ष बना दिया। इसके बाद यह कंपनी लगातार डूबती चली गई।
जब देवगौड़ा की सरकार बनी तो सीएम इब्राहीम विमानन मंत्री थे। उस समय टाटा ने सिंगापुर एयर लाइंस के साथ मिलकर अपनी एयरलाइंस शुरु करने की कोशिश की। अगर वे अपनी विमान सेवा शुरु कर देते तो जैट एयर लाइंस को कड़ी चुनौती मिलती। उस दौरान कैबिनेट सचिव रहे महाराज किशन काव ने अपनी पुस्तक में लिखा कि उस समय टाटा के विरोधी इतने हावी थे कि मेरी तमाम कोशिशों के बावजूद मंत्री ने इस मामले की फाइल आगे नहीं खिसकायी। सरकार ने रातोंरात कानून बदलकर विदेशी कंपनियों द्वारा भारतीय विमान कंपनियों में निवेश करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी।
उस समय टाटा ने खुलासा किया था कि इस सरकर के एक मंत्री ने मुझे लाइसेंस देने के बदले में 15 करोड़ रुपए की रिश्वत मांगी थी। सन 2012 में सरकार ने विमानन नीति में परिवर्तन किया और तत्कालीन विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने खस्ता होती एयर इंडिया को संभालने के लिए टाटा संस के प्रमुख रतन टाटा से अनुरोध किया जो कि जेआरडी के उत्तराधिकारी थे, मगर उन्होंने इससे इंकार कर दिया। 2013 में टाटा ने एयर एशिया के साथ हिस्सेदारी की और 2015 में सिंगापुर एयर लाइंस के साथ विस्तारा एयर लाइंस शुरु की।
जब जेआरडी टाटा को एयर इंडिया के अध्यक्ष पद से हटाया गया तो उन्होंने कहा था कि वह मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सदमा है। मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मुझसे मेरा बच्चा छीन लिया गया हो। वे एक बेमिसाल इंसान थे। उन्होंने टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज, टाटा मेमोरियल कैंसर रिसर्च सेंटर, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंसजेज की स्थापना की। वे देश के पहले ऐसे नियोक्ता थे जिसने 8 घंटे की ड्यूटी तय की। अपने कर्मचारियों को मेडिकल भत्ता दिया व यह नियम बनाया कि जब श्रमिक घर से काम के लिए चलता है और जब काम से वापस घर लौटता है तो उस दौरान उसे काम पर ही माना जाए।
उनकी कंपनी के नियमों को देख कर सरकार ने आदर्श श्रम कानून बनाया। इंफोसिस के मालिक नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा उनकी कंपनी टेल्को में काम करती थी। एक बार वे छुट्टी होने के बाद गलियारे में खड़ी अपने पति के आने का इंतजार कर रही थी। ज्यादातार लोग जा चुके थे। दफ्तर सूना हो गया था। तभी वहां जेआरडी आए और उन्होंने उनसे पूछा कि वे क्यों खड़ी है? जब सुधा ने उन्हें बताया कि वे पति के आने का इंतजार कर रही है तो टाटा ने कहा कि उनके आने तक मैं यहां रुकता हूं। तुम्हारा अकेले रहना ठीक नहीं है। जब नारायण मूर्ति पहुंचे तो उन्होंने सुधा से कहा कि अपने पति से कहना कि वे समय पर आना सीखें।
जब सुधा ने टेल्को से इस्तीफा दिया और उन्हें बताया कि वे लोग अपनी कंपनी शुरु कर रहे हैं तो टाटा ने उनसे कहा कि जब कुछ हो जाना तो समाज को उसका हिस्सा वापस करना मत भूलना। जब दिलीप कुमार शोहरत की ऊंचाइयां छू रहे थे तो वे एक बार विमान से कहीं जा रहे थे। उनके बगल की सीट पर जेआरडी बैठे थे। सफेद पैंट ,सफेद कमीज पहने वे लगातार खिड़की के बाहर देख रहे थे। उन्होंने बातचीत शुरु करने के लिए उनसे पूछा कि क्या आप फिल्में देखते हैं? टाटा ने कहा कि साल भर पहले एक फिल्म देखी थी। उन्होंने पूछा आप क्या करते हैं? दिलीप कुमार ने कहा कि मैं फिल्मों में एक्टिंग करता हूं। उस समय विमान में बैठा हर यात्री मुड़-मुड़कर दिलीप कुमार को ही देखा जा रहा था। कुछ क्षण बाद दिलीप कुमार से नहीं रहा गया और उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा कि मैं दिलीप कुमार हूं। टाटा ने अपना हाथ बढ़ाया और उनसे मिलाते हुए कहा कि जी मैं जेआरडी टाटा हूं।
बाद में दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा कि कभी यह भ्रम नहीं रखना चाहिए कि आप बहुत बड़े आदमी है। दुनिया में आप से भी बड़े लोग है। अब रतन टाटा जिस एयर इंडिया को खरीदने की सोच रहे हैं वह 59,000 करोड़ का घाटा उठा चुकी है और उसे उबारने के लिए दिया गया 24 हजार करोड़ का पैकेज भी बेकार साबित हुआ। उस सबसे टाटा संस इस कंपनी को उबार पाएगा या नहीं यह तो समय बताएगा। वैसे भारत रत्न से सम्मानित जेआरडी टाटा कहा करते थे कि अच्छा स्टील बनाना अच्छी रोटी बनाने जैसा है। अगर आटा ठीक से न गूंथा जाए तो फिर चाहे उसे सोने के ही बेलन से क्यों न बेला जाए, रोटी कभी अच्छी नहीं बनेगी।
साभार-http://www.nayaindia.com/ से