Monday, November 25, 2024
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मजदूरी करने को मजबूर अंतर्राष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीतने वाली योग शिक्षिका

देश ने बिगत 21 जून को जोर शोर से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया। प्रधानमंत्री ने लखनऊ में योग के आसन किये और देश-दुनिया को स्वस्थ रहने के लिए योग अपनाने को कहा। लेकिन ये दुर्भाग्य है कि जो शख्स अपने जीवन में योग को फैलाने का बीड़ा उठाते हैं उन्हें रोजी रोटी के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। छत्तीसगढ़ की दामिनी साहू ऐसी ही बदनसीबी की शिकार है। योग की दीवानी दामिनी ने हाल में ही काठमांडु में हुए दक्षिण एशिया योग स्पोर्ट्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता है, वह कई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत का नाम रोशन कर चुकी हैं। लेकिन निजी जिंदगी में दामिनी मुफलिसी की शिकार हैं। और उन्हें खेल में शिरकत तक करने के लिए कर्ज लेना पड़ा है, जिसे चुकाने के लिए अब वो अपने माता-पिता के साथ मजदूरी करती हैं। दामिनी के पिता परदेसीराम साहू और माता फूलवंती मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दक्षिण एशिया योग स्पोर्ट्स चैम्पियनशिप में शिरकत करने के लिए दामिनी को नेपाल जाना था लेकिन उसके पास पैसे नहीं थे, दामिनी ने छत्तीसगढ़ के ग्रामीण विकास मंत्री अजय चन्द्राकर को पत्र लिखकर मदद मांगी, लेकिन उसे कोई सहायता नहीं मिली।

आखिरकार दामिनी के माता पिता ने सूद पर 10 हजार रुपये कर्ज लिये इसके बाद ही वह नेपाल जा सकी। नेपाल से लौटने के बाद दामिनी को इस कर्ज को चुकाने के लिए अपने माता-पिता के साथ मजदूरी करनी पड़ रही है। जब मजदूरी करती हुई उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई तो छत्तीसगढ़ राज्य योग एसोसिएशन के चेयरमैन ने उनसे संपर्क किया और उन्हें राज्य का योग अंबेसेडर बनाने का वादा किया है। लेकिन ये मदद हालात की मारी दामिनी तक कब पहुंचती है ये देखने वाली बात होगी। दामिनी कहती हैं कि 8 से 10 घंटे तक मजदूरी करने के बाद वो मुश्किल से 100 से 150 रुपये कमा पाती हैं। दामिनी के पिता का दाहिना हाथ काम नहीं करता है और वो बैलून बेचकर मुश्किल से 100-50 रुपये कमा पाते हैं।

दामिनी तमाम मुश्किल के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए है, फिलहाल वो बी कॉम फर्स्ट इयर की छात्रा है। 9 सालों से योग कर रही दामिनी साहू का सपना एक कामयाब योग शिक्षक बनने का है। इसलिए वो तमाम संघर्षों के बावजूद अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा रही है। हां उसे सरकारी मदद की सख्त दरकार है।

साभार- http://www.jansatta.com/ से

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