राजनीति की इस काल कोठरी में एक सक्षम, दूरदर्शी और ईमानदार नीतियों से अपनी धाक जमाने वाले श्री सुरेश प्रभु के स्तीफे को लेकर सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक मंचो और आम आदमी के बीच कई प्रतिक्रियाएँ सामने आ रही है। इस पूरी बहस का सबसे उजला पहलू ये है कि प्रभु के विरोधी राजनीतिक भी प्रभु से स्तीफा माँग रहे हैं उनके खिलाफ भ्रष्टाचार, मनमानी, भाई भतीजावाद जैसे कोई आरोप लगाने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं, यानी उनको सुरेश प्रभु का स्तीफा चाहिए भल ही उनके खिलाफ पद के दुरुपयोग से लेकर किसी तरह का कोई परोक्ष या अपरोक्ष आरोप नहीं लगा हो। ऐसा लगता है सुरेश प्रभु के स्तीफे के की माँग के पीछे वे ताकतें और दलाल सक्रिय हैं, जो पहले के रेल मंत्रियों के कार्यकाल में रेल भवन के गलियारे में मंडराया करते थे। श्री सुरेश प्रभु जब रेल मंत्री बने तो उनके दरवाजे के बाहर खड़े रहने वाले कर्मचारी ने खुद प्रभु साहब को बताया कि पहले तो यहाँ हर काम के दलाल घूमा करते थे, लेकिन आपके आने के बाद पूरे गलियारे में सन्नाटा हो गया है। तो ये है सुरेश प्रभु की शख्सियत, जिन्हें क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थ और सत्ता के दलालों के मीडिया मैनेजमेंट के जरिए एक अपराधी की तरह पेश किया जा रहा है। लेकिन सुरेश प्रभु क्या हैं, इस पर श्री अमरजीत मिश्र का ये लेख जरुर पढ़िए
(संपादक)
प्रभुजी
सादर नमन !
मुझे आज भी याद 2014 का वह दिन ।जब आपको जल्दबाजी में सूचना गयी थी कि आज ही शाम को आपको केंद्रीय मंत्री पद की शपथ लेनी है। भागते दौड़ते नेताओं की एक टीम जैसे तैसे आपको उस सर्द शाम में लेकर राष्ट्रपति भवन के हॉल में दाखिल हुयी थी। तब तक आपको पता भी नहीं था कि आप फिर से केंद्रीय मंत्री बनेंगे और न ही आप इसके लिए ‘गणेश परिक्रमा’ ही किये थे।देश का एक बहुत बड़ा वर्ग इस पर भी आश्चर्यचकित था कि तब तक आप सत्तारूढ़ भाजपा के सदस्य भी नहीं थे।लेकिन योग्यता को पक्षीय चश्मे से न देखनेवाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पारखी निगाहों ने तुम्हारा चयन भी कर लिया। शपथ के दूसरे ही दिन देश के सबसे चुनौतीपूर्ण मंत्रालय की जवाबदारी तुम्हारे कृषकाय, परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत कंधों पर डाल दी गयी थी। बीते तीन वर्षों से भी कम वर्षों के अपने रेल मंत्री कार्यकाल में आपने दुनिया भर के देशों से निवेश लाया।रेल विभाग के मुलभुत ढांचे को सक्षम बनाने के साथ साथ आपने सबसे अधिक भ्र्ष्टाचार की सम्भावनाएं जिस विभाग में होती हैं उस विभाग में भ्र्ष्टाचार को कम करने का हर सम्भव प्रयत्न किया। रेल अधिकारीयों में काम करने की आदत भी आपने डाली।रेलवे के ठेकेदारों और रेल अधिकारियों के बीच के गठजोड़ की वजह से होनेवाले नुकसान को रोका। विभाग में बहुत से बदलाव आपकी वजह से आये। काम करने की संस्कृति की आपने नीव डाली। मंत्री से कुछ ले दे कर काम करवाने की प्रवृत्ति को आपने जड़ से समाप्त किया।
दीवाली और नए वर्ष पर भी किसी भी तरह के तोहफे अस्वीकार करने की आपने घोषणा की और आपने पूरी शिद्दत से उसका पालन किया।कार्यकर्ताओं और रेल सुविधाओं के लिए आन्दोलनरत एक्टिविस्टों से आप खुलकर बात करते रहे।उनकी समस्याओं पर ध्यान दिया।कभी भी और किसी भी प्रकार का भ्र्ष्टाचार को आपने प्रश्रय नही दिया।अपनी पत्नी को भी रेलमंत्री की पत्नी की तरह सुविधा न दिलवाकर आपने सांसद की पत्नी की तरह सुविधा देने का हमेशा आग्रह रखकर आपने सुचिता का पालन किया है।
नई ट्रेनों को चलवाने से लेकर, रेल विभाग के आधारभूत ढांचे को सक्षम बनाने और विकास के नए काम करने की भी योजना पर आप काम कर रहे थे। कम से कम आपके भाई भतीजा , बेटा बेटी ,पत्नी ,भांजा जैसे आपके रिश्तेदार किसी को ठेका दिलाने के लिए आगे आते नही दिखे।
आपने रेल बजट को पूर्व के रेल मंत्रियों की तरह सस्ती लोकप्रियता का पिटारा नहीं बनाया बल्कि रेल्वे के विकास के लिए ब्लू प्रिंट के रूप में पेश किया।
शुचिता,ईमानदारी,कर्मठता , निष्ठा में आपका कोई सानी नही है। और अपने सम्बंधों के आधार पर दुनिया के लंबरदार अमेरिका और विश्व बैंक से भी सहयोग लाने में आप नम्बर एक रहे हो। विपक्षियों के तानों से तंग आकर आपको पलायन करने की जरूरत नहीं है। दूरदर्शी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के “इंतजार करिये” के इशारे को समझिये।और जाइए मत। रुकिये, अभी बहुत से काम अधूरे हैं।
(लेखक भाजपा मुंबई के महामंत्री हैं)
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