• 1871 का एक कानून है जिसके अंतर्गत उस समय के 198 जनजाति समुदायों के एक करोड़ बीस लाख लोग जन्म से ही अपराधी मान लिये जाते थे। चोरी चकारी, उठाईगीरी, हर तरह के अपराध आदि ही उनका पेशा था। अपने पैरों पर खड़े होते ही बच्चे को जेब काटने की ट्रेनिंग और भारत ब्लेड दिया जाता था। पकड़े जाने पर पुलिस की मार, सज़ा और सज़ा से छूटने के लिए साहूकार के महंगे कर्ज ही उनकी जीवन गाथा थी। कर्ज चुकाने के लिए दूसरी चोरी। वे न तो जमीन के मालिक हो सकते थे और न ही उन्हें कोई नौकरी ही दी जाती थी। ऐसे ही एक परिवार में 1952 में लक्ष्या यानी लक्ष्मण गायकवाड़ पैदा हुए।
• पिता की इच्छा हुई कि कम से कम एक बच्चा तो पढ़ लिख जाये। परिवार और जाति के खिलाफ लक्ष्या को स्कूल भेजना इतना आसान न था। भयंकर गरीबी, खाने के लिए चूहे समेत सभी चौपाये, जड़ें, पत्तियां और कुछ भी न मिलने पर कई कई दिन तक सिर्फ पानी पी कर गुजारा। इन सारी स्थितियों से लक्ष्या भी गुज़रे। खाना नहीं, कपड़े नहीं, किताबें नहीं। अपमान और मार भरपूर। एक बार तो लगातार नौ दिन भूखे रहे।
• कई बार पढ़ाई छूटी। घर में एक पढ़ने वाले का मतलब एक चोर का कम होना।
• स्कूल में पहली ही कक्षा में पढ़ते समय एक बात बहुत परेशान करती – भारत मेरा देश है। सारे भारतीय मेरे बंधु हैं। मुझे देश की परंपरा पर अभिमान है। लक्ष्या को लगता – ये सारी बातें हमारे हिस्से में क्यों नहीं।
• एक बार एक दोस्त लक्ष्या को अपने घर खाना खाने ले गया। लक्ष्या ने आज तक इतनी सारी कटोरियों वाली पकवानों से भरी थाली नहीं देखी थी। समझ ही न आये कि किस चीज के साथ क्या खाना है।
• कई बार पढ़ाई छूटी। हर तरह के छोटे मोटे धंधे किये। बाल मजदूर के रूप में एक कॉटन मिल में काम किया। वहां मजदूरों के शोषण के खिलाफ लड़े, भूख हड़ताल की और मजदूरों को उनका हक दिलाया। नतीजा ये हुआ कि मिल मालिकों ने बाहर का रास्ता दिखा दिया।
• लिखने की शुरुआत मजूदरों के लिए गीत लिखने से हुई। एक बार ट्रेन में लक्ष्मण साथी लेखक शरण कुमार लिंबाले को अपनी आत्मकथा सुना रहे थे। वहीं एक भिखारिन बैठी थी। लक्ष्मण की कथा सुन कर रोने लगी – मेरी तकलीफें तो कुछ भी नहीं हैं रे। तूने कितने कष्ट भोगे हैं। यह सुनकर लिंबाले कहने लगे – लक्ष्मण, भिखारिन को रुलाने वाला साहित्य लिखने वाला तू पहला साहित्यकार है।
• लक्ष्मण की आत्मकथा उचल्या (उठाईगीर, the branded) को 1988 में साहित्य अकादमी सम्मान मिला।
• लातूर में कई लाख लोगों की मौजूदगी में जब राजीव गांधी ने उन्हें महाराष्ट्र सम्मान दिया तो पूरी बिरादरी अपना हिस्सा मांगने लगी। चोरी का माल मिल बांट कर खाने वाली बिरादरी यही समझती रही कि लक्ष्या ने सरकार के सामने हमारे भेद खोले हैं इसलिए इसे ईनाम मिला है। इस पर सबका हक है।
• इसी सम्मान समारोह में एक पुलिस अधिकारी ने कहा था – इस किताब में तुम्हारे खिलाफ इतने सबूत हैं कि चाहूँ तो अभी गिरफ्तार कर सकता हूँ।
• लक्ष्मण ने अपने समुदाय के विकास के लिए लगातार काम किया और विमुक्त मुक्ति समाज आयोग बनवाने में बड़ी भूमिका निभायी।
• लक्ष्मण के प्रयासों से उनका समाज काफी बदला है। लोग पढ़ने लिखने लगे हैं, और इज्जत से काम करने लगे हैं।
• लक्ष्मण गायकवाड़ की आत्मकथा के तेरह संस्करण आये हैं और सारी भाषाओं में अनुवाद हुए हैं। उनकी कुल ग्यारह किताबें हैं।
• लक्ष्मण कहते हैं कि कभी राजनीति में नहीं जायेंगे और अपने किसी भी सामाजिक कार्य के लिए सरकारी मदद नहीं लेंगे।
• बेहद विनम्र लक्ष्मण गायकवाड़ की इच्छा है कि वे जिस तबके से आये हैं, वहां हर आदमी सिर उठा कर जी सके। अभी भी दस करोड़ भारतीय जन्म से अपराधी वाला बिल्ला लगाये जीने को अभिशप्त हैं।
आत्मकथा का हिंदी अनुवाद साहित्य अकादमी से उठाईगीर और राजकमल प्रकाशन से उचक्का नाम से उपलब्ध है।
लेखकों के बारे में मेरी सभी पोस्ट मेरे ब्लॉग www.kathaakar.blogspot.com पर पढ़ी जा सकती हैं।
जाने माने कथाकार सूरज प्रकाश जी के फेसबुक पेज से साभार