मदद या दान में दिए अपने पैसों का इस्तेमाल देखने के लिए आप कहां तक जाएंगे?
मुंबई के रहने वाले शरत डिवैला इसके लिए 3,371 किलोमीटर की यात्रा कर उत्तर-पूर्वी राज्य मिज़ोरम तक गए.
शरत ने एक बेवसाइट के ज़रिए मिज़ोरम की कुछ औरतों को कारोबार बढ़ाने के लिए पैसे दिए और जब वो इस पैसे को दान समझकर लगभग भूल चुके थे तब एक दिन उनके अकाउंट में ‘दान’ के ये पैसे वापस लौट आए. शरत ने उन औरतों से मिलने का फैसला किया और सामने आई एक दिलचस्प कोशिश.
शरत कहते हैं, ''डोनेशन के ज़रिए लोगों की मदद करना कोई नई बात नहीं. मुझ जैसे बहुत से लोग हैं जो मदद करना चाहते हैं, लेकिन भारत में सबसे बड़ी दिक्कत है एक भरोसेमंद एनजीओ ढूंढना या फिर सीधे इन लोगों तक पहुंचना. सच कहूं तो मुझे उम्मीद नहीं थी कि पैसे कभी वापस मिलेंगे, लेकिन मिलाप ने मुझे उन लोगों तक पहुंचाया जिन्हें वाकई मेरे पैसे की ज़रूरत थी.''
मिलाप क्राउडफंडिग https://milaap.org/how-it-works यानी लोगों के ज़रिए पैसा जुटाने के मॉडल पर आधारित एक बेवसाइट है. इसके ज़रिए दुनिया के किसी भी कोने में बैठा व्यक्ति किसी ज़रूरतमंद की मदद के लिए उसे पैसे या लोन दे सकता है. ज़रूरत दो हज़ार की हो या दो लाख की, मदद की पेशकश 100 रुपए या एक लाख कुछ भी हो सकती है.
जितने ज़्यादा लोग जुड़ते हैं रकम जुटाना उतना आसान. इस लोन को चुकाने के लिए छह से 18 महीने की समय-सीमा होती है. मूल रकम के साथ चुकानी होती है सर्विस फीस जो आमतौर पर दस से 12 फीसदी है.
यानी साहूकारों को दिए जाने वाले 30-40 फ़ीसदी ब्याज के मुक़ाबले 10 से 12 फ़ीसदी की सर्विस फ़ीस चुका कर पैसे उधार लिए जा सकते हैं.
मदद का सिलसिला
इस बीच पैसा अकाउंट में वापस आने पर मदद करने के इच्छुक उसी रकम से फिर किसी और की मदद कर सकते हैं.
मिलाप से जुड़ी तनाज़ दारूवाला बताती हैं, ''ज़्यादातर सभी लोन अब तक वापस हुए हैं. इसकी सीधी सी वजह है कि हम लोग स्थानीय एनजीओ की मदद से लगातार उन लोगों से संपर्क में रहते हैं जिन्हें पैसा दिया जा रहा है. हमें पता रहता है कि काम कैसा चल रहा है. पैसे का सही इस्तेमाल हुआ या नहीं.''
मिलाप पर कुछ लोग खुद अपने लिए पैसे जुटा रहे हैं, कुछ लोगों की ज़रूरतें दूसरों के ज़रिए दुनिया तक पहुंचती हैं और कुछ ग़ैर सरकारी संस्थाओं ने भी लोगों की कहानियां लिखी हैं. कारोबारी ज़रूरत, डॉक्टरी इलाज, सोलर लैंप, कॉपी-किताबें, ट्यूशन फ़ीस या टॉयलेट ज़रूरत छोटी हो या बड़ी, हर तरह के लोन मौजूद हैं. लोन के अलावा मिलाप उन लोगों के लिए भी मदद का एक ज़रिया है जो शायद पैसा लौटाने की स्थिति में नहीं हैं.
27 फ़रवरी 2015 को सुरेंद्र कुमार जब घर से निकले तो उनकी पत्नी सुमन को इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि दिन बीतते-बीतते उनकी ज़िंदगी हमेशा के लिए बदल जाएगी.
पेशे से ड्राइवर सुरेंद्र कुमार, जिनकी लगभग आधी ज़िंदगी गाड़ी चलाते, सवारियों को उनकी मंज़िल तक पहुंचाते गुज़र गई, उस दिन घर नहीं लौटे.
शाम के साढ़े आठ बजे, दिल्ली की एक सड़क पर सुरेंद्र को दिल का दौरा पड़ा. गाड़ी तो रुक गई, लेकिन उनके साथ कोई नहीं था जो उन्हें अस्पताल पहुंचा पाता.
बंगलौर के रहने वाले मयूख चौधरी ने दिल्ली में अपने सफ़र के दौरान सुरेंद्र के एक साथी ड्राइवर से उनकी कहानी सुनी और अब मिलाप के ज़रिए उनके लिए पैसे जुटा रहे हैं.
मयूख कहते हैं, ''सुरेंद्र की कहानी सुनकर मुझे लगा कि जो लोग अपनी रोज़मर्रा ज़िंदगी में काम-काज के लिए इन ड्राइवरों पर निर्भर हैं वो ज़रूर उस आदमी की मदद करना चाहेंगे जिसकी मौत सड़क पर गाड़ी चलाते यूं ही अचानक हो गई. क्या हम कभी इन लोगों के बारे में सोच पाते हैं?''
मयूख के कैंपेन के ज़रिए अब तक डेढ़ लाख रुपए से ज़्यादा रकम जुट चुकी है. कोशिश है पांच लाख रुपए जुटाने की.
इस बीच सुरेंद्र की पत्नी सुमन भले ही मिलाप के बारे में ज़्यादा नहीं जानतीं लेकिन उन्हें पता है कि कहीं दूर बैठे कुछ लोग मिलजुल कर उनकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं.
वो कहती हैं, ''बूंद-बूंद सागर भरता है दीदी. हम गरीब थे लेकिन बच्चे पढ़ रहे थे, घर चल रहा था. अब इन बच्चों की ज़िंदगी खराब न हो इसलिए मदद के इंतज़ार में हूं.''
साबार- बीबीसी हिन्दी http://www.bbc.co.uk/hindi से