अंग्रेजी व मलयालम भाषा की मशहूर भारतीय लेखिका कमला सुरय्या पूर्व नाम कमला दास के काम और जिंदगी को याद करते हुए आज गूगल ने विशेष डूडल बनाया. निजी जिंदगी में बेहद साधारण रूप से जीवन जीने वाली कमला दास ने जब कागज पर अपनी भावनाओं को उकेरते हुए रचनाएं लिखी तो वे दूसरों के लिए भी एक प्रेरणा बन गई. साल 1984 में उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया. आजादी से तेरह साल पहले 1934 में केरल में जन्मी कमला दास ने बहुत छोटी उम्र में कविताएं लिखना शुरू कर दी थी. उनकी मां बालमणि अम्मा भी बहुत अच्छी कवियित्री थीं. उनकी लेखनी का भी कमला दास पर काफी असर पड़ा. मां से प्रेरणा लेकर उन्होंने सिर्फ 6 साल की उम्र में कविताएं लिखना शुरू कर दीं.
जब अपनी जिंदगी को लेकर उन्होंने आत्मकथा ‘माई स्टोरी’ लिखी तो पुरुष समाज को हिला कर रख दिया. कमला दास की छवि एक परंपरागत महिला के रूप में थी, लेकिन उनकी आत्मकथा इसके विपरीत थी. उन्होंने अपने जीवन को शब्दों में पिरोते हुए जिस बेबाकी से स्त्री भावनाओं को लेकर लिखा उसके कारण विवाद खड़ा हो गया. एक महिला द्वारा इतनी बोल्ड लेखनी को कई लोगों ने गलत ठहराया. कमला दास की आत्मकथा जितनी विवादास्पद हुई, उतना ही ये प्रसिद्ध भी हुई.
इस किताब के बदौलत उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली. ‘माई स्टोरी’ का पंद्रह विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी किया गया. परिवार के सो जाने के बाद लिखती थीं 15 साल में कमला का विवाह रिजर्व बैंक के एक अधिकारी माधव दास के साथ हुआ. पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण उन्हें लिखने के लिए तब तक जागना पड़ता था जब तक कि पूरा परिवार सो न जाए. परिवार के सो जाने के बाद वे रसोई घर में अपना लेखन जारी रखतीं. वे लिखने में इतनी डूब जाती थीं कि उन्हें पता ही नहीं चलता था कि सुबह कब हो गई. इससे उनकी सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ा और यही कारण है कि वे बीमार रहने लगीं.
मलयालम भाषा में कमला दास माधवी कुटटी के नाम से लिखती थीं. भारत की मशहूर साप्ताहिक पत्रिका ‘इलेस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया’ में भी उनकी कविताएं प्रकाशित होती थीं. इसमें वे वे के. दास के नाम से लिखती थीं. इस बारे में उनका मानना था कि वे इस नाम का इसलिए उपयोग करती थीं क्योंकि उन्हें डर था कि पत्रिका के संपादक शॉन मैंडी कवयित्रियों के प्रति पक्षपात का भाव रखते होंगे.
कमला दास न सिर्फ खुद एक बड़ी कवि थीं, वो कई उभरते हुए कवियों को प्रोत्साहित भी किया करती थीं. पति की मौत के बाद उनमें जीने की भावना कम होने लगी. इस बीच अचानक उन्होंने साल 1999 में इस्लाम अपना लिया. बाद में अभिव्यक्ति की मांग को लेकर कट्टर मुल्लाओं से भी उनकी ठनी.
कमला दास के तीन बेटे थे, बावजूद इसके पति की मौत के बाद वो अकेलेपन से जूझ रही थीं. वो खुद की जिंदगी खत्म करना चाहती थीं. इसके लिए एक बार वो खुद एक सुपारी किलर के पास पहुंच गई थीं, लेकिन इस व्यक्ति ने भी उन्हें समझाकर घर वापिस भेज दिया. 31 मई 2009 को उनका निधन हो गया.