सलमान खान को सजा दिलवाने वाले राजस्थान के बिश्नोई समाज का इतिहास भी कम गौरवशाली नहीं है। इस देश में कई पंथ, संप्रदाय, मठ और आश्रमों की परंपराएं अनादिकाल से चली आ रही है लेकिन विश्नोई समाज ने जो जीवन दर्शन अपनाया है उस पर हमें नाज़ होना चाहिए।
राजस्थान का यह बिश्नोई समाज जोधपुर के पास पश्चिमी थार रेगिस्तान से आता है. इन्हें प्रकृति के प्रति प्रेम के लिए जाना जाता है. इस समाज के लोग जानवरों को भगवान समझते हैं. 1485 में गुरु जम्भेश्वर भगवान ने इसकी स्थापना की थी। वन्यजीवों को यह समाज अपने परिवार जैसा मानता है और पर्यावरण संरक्षण में इस समुदाय ने बड़ा योगदान दिया है। इस संप्रदाय के लोग जात-पात में विश्वास नहीं करते हैं। इसलिए हिन्दू-मुसलमान दोनों ही जाति के लोग इनको स्वीकार करते हैं। जंभसार लक्ष्य से इस बात की पुष्टि होती है कि सभी जातियों के लोग इस संप्रदाय में दीक्षित हुए। उदाहरण के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, तेली, धोबी, खाती, नाई, डमरु, भाट, छीपा, मुसलमान, जाट एवं साईं आदि जाति के लोगों ने मंत्रित जल लेकर इस संप्रदाय में दीक्षा ग्रहण की।
बिश्नोई बीस (20) और नोई (9) से मिलकर बना है. इस समाज के लोग 29 नियमों का पालन करते हैं, जिनमें से एक नियम शाकाहारी रहना और हरे पेड़ नहीं काटना भी शामिल है. बिश्नोई समाज इन 29 नियमों का पालन करने के लिए अपनी जान तक पर खेल जाते हैं।
बिश्नोई समाज की महिलाएं हिरण के बच्चों को अपना बच्चा मानती हैं। यह समुदाय राजस्थान के मारवाड़ में है। प्रकृति को लेकर इस गांव में बेशुमार प्रेम है, खासकर हिरण को लेकर। यहां के पुरुषों को जंगल के आसपास कोई लावारिस हिरण का बच्चा या हिरण दिखता है तो वह उसे घर पर लेकर आते हैं, बच्चों की तरह उनकी सेवा करते हैं। यहां तक कि महिलाएं अपना दूध तक हिरण के बच्चों को पिलाती हैं। ऐसे में एक मां का पूरा फर्ज वे निभाती दिखती हैं। कहा जाता है कि पिछले 500 सालों से यह समुदाय इस परंपरा को निभाता आ रहा है।
इस समाज के पर्यावरण प्रेम को इस उदाहरण से समझा जा सकता है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1736 में जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में बिश्नोई समाज के 300 से ज्यादा लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे दी। बताया जाता है कि राज दरबार के लोग इस गांव के पेड़ों को काटने पहुंचे थे, लेकिन इस समुदाय के लोग पेड़ों से चिपक गए और विरोध करने लगे। इस समाज में उन 300 से ज्यादा लोगों को शहीद का दर्जा दिया गया है। इस आंदोलन की नायक रहीं अमृता देवी जिनके नाम पर आज भी राज्य सरकार कई पुरस्कार देती है।
राजस्थान में जोधपुर तथा बीकानेर में बड़ी संख्या में इस संप्रदाय के मंदिर और साथरियां बनी हुई हैं। मुकाम नामक स्थान पर इस संप्रदाय का मुख्य मंदिर बना हुआ है। यहां हर साल फाल्गुन की अमावस्या को एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं। इस संप्रदाय के अन्य तीर्थस्थानों में जांभोलाव, पीपासार, संभराथल, जांगलू, लोहावर, लालासार आदि तीर्थ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनमें जांभोलाव बिश्नोईयों का तीर्थराज तथा संभराथल मथुरा और द्वारिका के सदृश माने जाते हैं। इसके अलावा रायसिंह नगर, पदमपुर, चक, पीलीबंगा, संगरिया, तन्दूरवाली, श्रीगंगानगर, रिडमलसर, लखासर, कोलायत (बीकानेर), लाम्बा, तिलवासणी, अलाय (नागौर) एवं पुष्कर आदि स्थानों पर भी इस संप्रदाय के छोटे -छोटे मंदिर बने हुए हैं।
काला हिरण भारत, नेपाल और पाकिस्तान में पाई जाने वाली हिरण की एक प्रजाति है। यह मूलतः भारत में और पाया जाता है, जबकि बांग्लादेश में यह विलुप्त हो गया है। 20वीं सदी के दौरान अत्यधिक शिकार, वनों की कटाई और निवास स्थान में गिरावट के चलते काले हिरण की संख्या में तेजी से गिरावट आई है। भारत में 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अनुसूची I के तहत काले हिरण के शिकार पर रोक है।
बिश्नोई समाज के 29 नियम
परोपकारी पशुओं की रक्षा करना.
अमल नहीं खाना
तम्बाकू नहीं खाना
भांग नहीं खाना
मद्य तथा नहीं खाना
नील का त्याग करना.
बैल को बधिया नहीं करवाना.
प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करना.
30 दिन जनन – सूतक मानना.
5 दिन रजस्वता स्री को गृह कार्यों से मुक्त रखना.
वाद–विवाद का त्याग करना.
अमावश्या के दिनव्रत करना.
विष्णु का भजन करना.
जीवों के प्रति दया का भाव रखना.
हरा वृक्ष नहीं कटवाना.
ल का पालन करना.
संतोष का धारण करना.
बाहरी एवं आन्तरिक शुद्धता एवं पवित्रता को बनाये रखना.
तीन समय संध्या उपासना करना.
संध्या के समय आरती करना एवं ईश्वर के गुणों के बारे में चिंतन करना.
निष्ठा एवं प्रेमपूर्वक हवन करना.
पानी, ईंधन व दूध को छान-बीन कर प्रयोग में लेना.
वाणी का संयम करना.
दया एवं क्षमाको धारण करना.
चोरी नहीं करना
निंदा नहीं करना
झूठ नहीं बोलना.
काम, क्रोध, मोह एवं लोभ का नाश करना.
रसोई अपने हाध से बनाना.