नई दिल्ली । बात 1968 की है, जब देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को सीआईए और एमआई 6 की तर्ज पर भारत में भी खुफिया मामलों के लिए अलग एजेंसी की जरूरत महसूस हुई। इसके बाद रिसर्च ऐंड अनैलेसिस विंग (रॉ) की स्थापना की गई। रॉ के पहले निदेशक के तौर पर चुना गया आर एन काव को। बेहद आकर्षक, शांत और शर्मीले स्वभाव के माने जाने वाले काव का जन्म आज के ही दिन (10 मई, 1918) हुआ था। आइए भारत के पहले ‘बॉन्ड’ के बारे में जानते हैं कुछ दिलचस्प बातें:
पंडित नेहरू की सुरक्षा का जिम्मा: रामेश्वरनाथ काव का जन्म 10 मई, 1918 को वाराणसी में हुआ था। 1940 में उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा का एग्जाम पास किया। सर्विस जॉइन करने के 8 साल बाद जब इंटेलिजेंस ब्यूरो की स्थापना हुई तो काव को आईबी में भेज दिया गया। काव आईबी के सहायक निदेशक बने और उस वक्त देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सुरक्षा की जिम्मेदारी इन्हें सौंपी गई।
रॉ का पहला निदेशक बनाया गया: 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद देश भर के टॉप अफसरों ने भारत की अपनी खुफिया एजेंसी की जरूरत महसूस की। इसके बाद 1968 में इंदिरा गांधी ने सीआईए और एमआई 6 की तर्ज़ पर भारत में भी देश के बाहर के ख़ुफ़िया मामलों के लिए एक एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) बनाने का फैसला किया और काव को इसका पहला निदेशक बनाया गया।
सिक्किम का विलय भारत में कराया: भारत ऐशिया की प्रमुख शक्तियों में शुमार हो रहा था। सिक्किम की समस्या उस समय बढ़ने लगी, जब वहां के महाराज ने एक अमेरिकी महिला से शादी कर ली। इसके बाद वहां सीआईए का दखल होने लगा, जो भारत के लिए अच्छा नहीं था। बताया जाता है कि उस समय काव ने ही इंदिरा गांधी को सुझाव दिया कि सिक्किम का भारत में विलय कराया जा सकता है। चीन की नाक के नीचे यह सब करना मुश्किल था। चीन की सेना सीमा पर थीं, लेकिन काव के कुशल नेतृत्व और शानदार रणनीति की वजह से बगैर खून बहाए, 3000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र का भारत में विलय कराया और सिक्किम भारत का 22वां राज्य बना।
दुनिया के टॉप खुफिया प्रमुखों में शुमार: 1982 में फ्रांस की खुफिया एजेंसी एसडीईसीआई के प्रमुख काउंट एलेक्जांड्रे से पूछा गया कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खुफिया प्रमुखों में वे किसे रखेंगे तो काउंट ने 5 नाम लिए थे। इन नामों में काव का नाम दूसरे नंबर पर था।
पहनते थे खास तरह का बनियान: रॉ के पूर्व अतिरिक्त निदेशक राणा बनर्जी भी काव को बेहद करीब से जानते थे। राणा ने एक न्यूज एजेंसी को बताया था, ‘काव एक खास किस्म का बनियान पहनते थे। यह बनियान कलकत्ता की गोपाल होजरी में बनता था। ये कंपनी बंद हो गई, लेकिन इसके बावजूद काव के लिए अलग से साल भर में जितनी उनकी जरूरत थी, उतने बनियान बनाया करती थी।’
चीन ने भी माना था लोहा: काव को अपने करियर की शुरुआत में ही बेहद बड़ा ऑपरेशन करने का मौका मिला, इस ऑपरेशन की सफलता ने ही साबित कर दिया था कि साधारण से दिखने वाले काव असाधारण सोच के साथ काम करते हैं। 1955 में चीन की सरकार ने एयर इंडिया का एक विमान ‘कश्मीर प्रिंसेज’ चार्टर किया, जो हॉन्गकॉन्ग से जकार्ता के लिए उड़ान भरने वाला था। इसमें चीन के प्रधानमंत्री चू एन लाई बांडुंग जाने वाले थे। लेकिन प्रधानमंत्री लाई ने एपेंडेसाइसटिस का दर्द उठने के कारण यात्रा रद्द कर दी थी। विमान ने उड़ा भरी और इंडोनेशिया के तट के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसमें बैठे ज्यादातर चीनी अधिकारी और पत्रकार मारे गए। भारत की तरफ से रामेश्वरनाथ काव को इसकी जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई। कांव ने बेहद कम समय में जांच पूरी की और बताया कि यह हादसा सामान्य नहीं था। इसके पीछे ताइवान की इंटेलीजेंस एजेंसी का हाथ था। चीनी प्रधानमंत्री काव से इतना प्रभावित हुए कि उन्हें अपने दफ्तर में विशेष महमान के तौर पर बुलाया और अपनी निजी सील भेंट की।
साभार- टाईम्स ऑफ इंडिया से