मुंबई। कुछ बच्चे तमाम सुख-सुविधाएं होने के बाद भी परीक्षा में अच्छी सफलता हासिल नहीं कर सकते, वहीं मुंबई में फुल बेचकर और भीख मांगकर गुजारा करने वालों के दो बच्चों ने स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़कर कामयाबी हासिल की है। पढ़िए 17 वर्षीय दशरथ पंवार और 20 वर्षीय मोहन काले की कहानी –
इन बच्चों ने ठाणे महानगर पालिका और समर्थ भारत व्यासपीठ द्वारा शुरू किए गए द सिग्नल स्कूल में पढ़ाई की है। यह स्कूल स्ट्रीट लाइट के नीचे एक कंटेनर में लगता है। शुक्रवार को घोषित परिणामों में इस स्कूल का एसएससी का पहला बैच निकला।
दशरथ और मोहन का बचपन ठाणे के ट्रैफिक सिग्नल पर बीता, क्योंकि इनके माता-पिता यही रहकर दो वक्त की रोटी की व्यवस्था करते हैं।
मोहन का परिवार तीन पीढ़ियों से भीख मांगकर गुजारा कर रहा है, लेकिन अब 77 फीसदी अंक लाने के बाद उसके पास इस नर्क से निकलने का मौका है। बकौल मोहन, पांचवीं तक पढ़ाई करने के बाद मैं कभी स्कूल नहीं जा सका। हम तीन हाथ नाका के पुल के नीचे रहते थे। एक दिन में महानगर पालिका के स्कूल में गया तो टिचर ने पढ़ने को कहा। मैं वहां जाने लगा और अब मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। मैं इंडस्ट्रियल ट्रैनिंंग से जुड़ा कोर्स करना चाहता हूं ताकि अपनी मां को भीख मरने से मुक्ति दिला सकूं।
मोहन की मां इसी सिग्नल पर भीख मांगती है। पति का नाम प्रभू है, जो दो साल पहले एक एक्सिडेंट में अपने दोनों पैर खो चुके हैं। पिता को तो यह भी पता नहीं था कि उनका बेटा किस स्कूल में पढ़ रहा है और उसने कितने फीसदी अंक हासिल किए हैं। अब वे बहुत खुश हैं। उन्हें भरोसा है कि मोहन के कारण पूरे परिवार की जिंदगी बदल जाएगी।
वहीं दशरथ का परिवार ट्रैफिक सिग्नल पर फूल बेचता है। उसे इस काम में जरा भी रुचि नहीं है। एसएससी में सफलता हासिल करने के बाद अब वो पुलिस फोर्स में शामिल होने का अपना सपना पूरा करना चाहता है।
दशरथ का कहना है कि अब मैं एचएससी एक्जाम दूंगा और पुलिस एक्जाम की तैयारी करूंगा। मैंने अपने परिवार को बताया है। वे बहुत खुश हैं, लेकिन मैं खुशी तभी मनाऊंगा जब पुलिस की नौकरी हासिल कर लूंगा। वहींं एनजीओ समर्थ भारत व्यासपीठ के सीईओ भातू सावंत का मानना है कि यह उनके लिए बड़ी कायमाबी है।
साभार- https://naidunia.jagran.com से