पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुपर सितारे कमल हासन ने भी अभिनेता से नेता बनने की राह पकड़ ली है। तमिलनाडु में छह महीने पहले वे नयी राजनैतिक पार्टी ‘मक्कल निधि मैयम’ का एलान कर चुके हैं। चार बार राष्ट्रीय फिल्म फिल्म पुरस्कार और डेढ़ दर्जन से अधिक फिल्म फेयर अवार्ड पाने वाले कमल हासन (असली नाम पार्थसारथी श्रीनिवासन) का हिन्दी फिल्म दर्शकों से पहला परिचय कराया था एक दूजे के लिये (1981) ने।
इस शुक्रवार प्रदर्शित विश्वरूपम-2 अभिनेता, लेखक और निर्देशक कमल हासन की इसी नाम से पांच साल पहले आई पहली कड़ी का फूहड़ विस्तार है। विश्वरूपम में अल कायदा से जुड़े आतंकवाद की साज़िश का पर्दाफ़ाश करने वाले भारतीय ख़ुफ़िया एजेंट के कारनामों का तानाबाना न्यूयार्क की पृष्ठभूमि में बुना गया था। विश्वरूपम-2 में कहानी को भारतीय सन्दर्भ में सामयिक घटनाक्रम से जोड़ने की कोशिश उबाऊ साबित हुई है। तीस पर कमजोर कहानी और सुस्त पटकथा ने ख़ुफ़िया जासूसी के रोमांच की हवा निकाल कर रख दी है।
पिछली कड़ी से तारतम्य बनाये रखने के लिये फिल्म में मुख्य किरदार और उन्हें निभाने वाले अधिकांश कलाकार पांच साल बाद उसी रूप में दोहराए गए हैं। निर्माण के दौरान कई प्रकार की विषम परिस्थितियों से जूझते हुए फिल्म का निर्देशन इस बार भी कमल हासन ने ही किया है। मुख्य भूमिकाएँ भी खुद कमल के अलावा राहुल बोस, शेखर कपूर, पूजा कुमार, जयदीप अहलावत, आंद्रेई जेरेमिया ने निभाई हैं। मेगा बजट की इस फिल्म का कैनवास अत्यंत भव्य है और लोकेशंस, सिनेमाटोग्राफी, पार्श्व संगीत और कुशल संपादन उसे उच्च तकनीकी गुणवत्ता के मानकों पर खरा उतरने में मदद करते हैं। फिल्म की शूटिंग थाईलैंड और चेन्नई में की गई है। एयर बेस पर फिल्माए गए दृश्य कमाल के हैं। बम निष्क्रीय करने, स्कूबा डाइविंग व पानी के अन्दर लड़ाई समेत सभी एक्शन सीक्वेंस हॉलीवुड की टक्कर के हैं।
विज़ाम अहमद कश्मीरी उर्फ़ विश्वनाथन के मुख्य किरदार में कमल हासन इस कदर निराश करते हैं कि लगता है राजनीति में पदार्पण के साथ कहीं यह उनकी आखिरी फिल्म बनकर न रह जाये। जबकि राहुल बोस ने अल कायदा के आतंकी ऊमर कुरैशी को जीवंत बनाया है। पूजा कुमार व आंद्रेई जेरेमिया ने डॉ। निरुपमा और अश्मिता सुब्रमण्यम के किरदार भलीभांति निभाए हैं। कर्नल जगन्नाथ के रोल में शेखर कपूर को देखना सुखद अनुभूति है। माँ बेटे के भावनात्मक संबंधों को उभारने में वहीदा रहमान की 80 बरस की उम्र आड़े आती है। अतुल तिवारी के संवाद और प्रसून जोशी के लिखे गीतों में कोई दम नहीं।
इस शुक्रवार प्रदर्शित दूसरी फिल्म ‘लष्टम पष्टम’ का शाब्दिक अर्थ ढूँढना टेढ़ी खीर था। बोलचाल की भाषा के इस अटपटे शब्द का भावार्थ ‘जैसे तैसे’,‘किसी तरह’ अथवा ‘येन केन प्रकारेण’ के नज़दीक पहुँचता है। ‘लष्टम पष्टम’ भारत और पाकिस्तान के दो युवा टेनिस खिलाडियों समर विरमानी (सिड ओबेरॉय) और फहद खान (विभव रॉय) की कहानी है। दुबई में टेनिस के खिताबी युगल मुकाबले में साथ खेलते हुए इनकी दोस्ती परवान चढ़ती है। खेल खेल में हुई दोस्ती व भाईचारे के बीच आखिर सरहद की सीमाएं आड़े आ ही जाती हैं। इस बाधा को दूर करने का काम पाकिस्तानी टैक्सी ड्राईवर सलीम (ओम पुरी) एक समझौते के जरिये करता है। विडम्बना है कि ‘लष्टम पष्टम’ जैसी औसत बजट की फिल्म को मेगा बजट की विश्वरूपम-2 के साथ रिलीज़ होने पर काफी कम स्क्रीन मिले हैं। ऐसे में नए कथानकों के जरिये सिनेमा को नई दिशा देने के लिये तत्पर मानव भल्ला जैसे प्रतिबद्ध फिल्मकारों को प्रोत्साहन कैसे मिलेगा।।! यदि इस फिल्म को किसी बड़े बैनर ने बनाया होता तब आलम कुछ और ही होता।
इन दिनों सच्ची घटनाओं से प्रेरित फिल्मों की बाढ़ आई हुई है। ‘लष्टम पष्टम’ भी टेनिस के शौक़ीन दर्शकों को पुरुषों के उस डबल्स मुकाबले की याद दिलाती है जिसमे रोहन बोपन्ना और ऐजामुल हक़ कुरैशी की जोड़ी यूएस ओपन ग्रैंडस्लैम जीतने के करीब पहुँच गई थी। आम तौर पर भारत-पाक पृष्ठभूमि पर फिल्म बनाते हुए निर्देशकों को कई तरह के लिहाज़ पालने होते हैं ताकि अच्छी खासी मेहनत पर कहीं बैठे ठाले पानी न फिर जाए। यहाँ तारीफ़ करनी होगी युवा निर्देशक मानव भल्ला की, जिन्होंने बगैर किसी लाग लपेट के फिल्म को मूल विषय से भटकने नहीं दिया। फिल्म की कथा, पटकथा और संवाद पर नितिन केसवानी ने पर्याप्त मेहनत की है। खुरदुरे चेहरे वाले ओम पुरी ने अपनी इस आखिरी फिल्म में सलीम ड्राईवर के किरदार में लाजवाब काम किया है। सहायक भूमिकाओं में टिस्का चोपड़ा, इशिता दत्ता, प्रियांशु चटर्जी, डॉली अहलुवालिया आदि प्रभावित करते हैं।
(लेखक वरिष्ठ फिल्म समीक्षक हैं और आकाशवाणी-दूरदर्शन में रीजनल न्यूज़ हेड रह चुके हैं)
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