दो टूक: सत्ता पर काबिज होने और विश्व विजेता बनने की आरजू रखने वाले बाहुबलियों और फिर उनसे किसी महावीर के टकराकर दुनिया को बचाने की कथाएँ सदियों से चली आ रही हैं। रामायण और महाभारत से लेकर सिकंदर और फिर हिटलर तक का इतिहास इसका गवाह है। प्रभास, राणा दग्गुबाती, तमन्ना और अनुष्का शेट्टी जैसे कलाकारों को लेकर बनी निर्देशक एस.एस. राजमौली की फिल्म बाहुबली भी ऐसी ही एक गाथा कहती है.
कहानी : फिल्म की कहानी रामायण और महाभारत के प्रसंगो से प्रेरित है। नायक शिवा (प्रभास) की मां दुश्मनों के चुंगल में हैं और उसे कैद करने वाले बाहुबली सिवधु (प्रभास ही दोहरी भूमिका में ) और उसके ताऊ के लड़के भल्लाला देवा (राणा दग्गुबाती) में महीषमतिनाम के राज्य का राजा बनने को लेकर जंग मची है।उधर नायिका अवंतिका (तम्मना भाटिया ) की कहानी है जो देवसेना (अनुष्का शेट्टी) को भल्लाला की कैद से आजाद कराना चाहती है। अवंतिका के लक्ष्य को शिवा अपना लक्ष्य बना लेता है और महीषमति पहुंच जाता है। वहां उसे बाहुबलि कह कर पुकारा जाता है और लोग उसके सामने झुकने लगते हैं. यह देख उसे आश्चर्य होता है। वहां उसे अपने अतीत से जुड़े कुछ रहस्य पता चलते हैं और यह भी कि वही वास्तव में बाहुबलि का बेटा है। इसके बाद शुरू होती है एक भयंकर खूनी लड़ाई की शुरुआत जिसमे सुदीप, आदिवि शेष, सथ्यराज,नासेर, रमैया कृष्णा, तानिकेना भरानी और राकेश वारे के पात्र और चरित्र भी शामिल हैं।
गीत संगीत: फिल्म में एम एम करीम का संगीत और मनोज मुन्तशिर के गीत हैं लेकिन हिंदी में डब किये गए और बॉम्बे जयश्री, स्वेता राज, कैलाश खेर, नीति मोहन, काला भैरव, एम एम करीम के गाये गए ये गीत फिल्म की भव्यता में खो जाते हैं। पर उनका छायांकन कमाल का कैनवास बनाता है।
अभिनय : फिल्म केंद्र में प्रभाष दोहरी भूमिका में हैं और राणा का किरदार नकारात्मक है लेकिन उनकी शारीरिक भाषा और करतब देखकर लगता है जैसे दोनों ने विशेष प्रभावों और कम्प्यूटर से तालमेल कर खुद को पूरी तरह अपने पात्रों और चरित्रों में आत्मसात कर लिया है। रमैया कृष्णन सहायक भूमिका में हैं लेकिन वो राणा और प्रभास के आधार पात्र हैं। नासेर हमेशा की प्रभावी रूप से सामने आते हैं और सत्या राज अपनी भूमिका में निराश नहीं करते। अनुष्का शेट्टी और तमन्ना भाटिया खूबसूरत दिखती हैं लेकिन उनके हिस्से में बहुत कुछ नहीं आया है।
निर्देशन: एसएस राजामौली की फिल्म बाहुबली मूल रूप से हिंदी में नहीं बनी है। पर यह हिंदी फिल्मकारों के लिए सबक और दर्शकों के एक अद्भुत अनुभव है। काल्पनिक कथा के साथ कंप्यूटर जनित (सीजी) इस एपिक फिल्म के दृश्यों में गजब की भव्यता है और सम्मोहन के साथ कॉस्ट्यूम ड्रामा वाली ये फिल्म बांधे रखती है। युद्ध के दृश्य चमत्कृत करते हैं. लेकिन महल, पौराणिक नगर, शिल्प, पोशाक, अस्त्र-शस्त्र और कहानी कहने का शिल्प, युद्ध-दृश्य फिल्म को ट्रॉय, हैरी पॉटर, लॉर्ड आफ दि रिंग्स, दि ग्लैडिएटर जैसी फिल्मों की श्रेणी में ले आते हैं. पर इस भाग के देखते हुए जो कुछ शेष रह गया है उसे फिल्म के आने वाले दूसरे भाग में देखा जा सकेगा। भल्लाल देव का अंत शिवा और अवंतिका की बची प्रेम कहानी के साथ अँधेरे धूसर रंगों में बनी इस फिल्म को देखना एक नया अनुभव है।
फिल्म क्यों देखें: तकनिकी तौर पर एक अद्भुत फिल्म है।
फिल्म क्यों न देखें: ऐसा कोई कारण नहीं मेरे पास।