हल्के चुटकुलों की बमबारी और झूठी खबरों के प्रसार के लिए कुख्यात हो रहे व्हाट्सऐप पर साहित्यिक समूहों की मौजूदगी सुखद आश्चर्य की तरह है। सोशल मीडिया माध्यमों की बढ़ती लोकप्रियता के बीच उनसे जुड़ी तमाम अच्छी और बुरी बातें भी सामने आई हैं। बीते कुछ समय में ये माध्यम झूठी खबरों के प्रचार प्रसार के लिए भी चर्चा में रहे हैं। इस बीच व्हाट्सऐप पर हिंदी साहित्य से जुड़े कुछ साहित्यिक समूहों ने अपनी एक नयी पहचान कायम की है। आभासी होने के साथ-साथ यह एक तरह से वास्तविक भी है क्योंकि इनका हर सदस्य दूर-दूर होने के बावजूद अपनी असली पहचान के साथ ही समूह के अन्य साथियों से रूबरू होता है। इस आभासी मंच का इस्तेमाल साहित्यिक कृतियों के प्रकाशन, सामूहिक चर्चा और गोष्ठियों के लिए किया जा रहा है।
प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े हिंदी के चर्चित कवि अनिल करमेले हिंदी साहित्य में व्हाट्सऐप समूहों की भूमिका को बहुत सकारात्मक ढंग से देखते हैं। ‘दस्तक’ नामक साहित्यिक समूह के एडमिन करमेले कहते हैं, ‘दस्तक समूह साहित्य के उस मूलभूत उद्देश्य की पूर्ति के लिए लगातार काम कर रहा है जिसके तहत किसी व्यक्ति की रुचि को निरंतर परिष्कृत कर एक बेहतर मनुष्य की रचना की जाती है।’ वह कहते हैं कि व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करने वालों में नई पीढ़ी के काफी लोग हैं। उनमें से कइयों ने देश विदेश के सुप्रसिद्घ रचनाकारों का नाम तक नहीं सुना। युवा जब हमारे समूह पर ऐसी रचनाओं को पढ़ते हैं तो हमें सार्थकता की अनुभूति होती है।
करमेले कहते हैं कि साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं तक हर व्यक्ति की पहुंच नहीं है। वे हर जगह आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। अगर मिल भी जाती हैं तो कई पत्रिकाएं खरीदने का आर्थिक बोझ भी बहुत होता है। ऐसे में डेटा क्रांति के कारण सस्ता हुआ डेटा पाठकों के काम आ रहा है। जानेमाने कहानीकार सत्यनारायण पटेल व्हाट्सऐप पर ‘बिजूका’ नामक साहित्यिक समूह चलाते हैं। पटेल कहते हैं कि ये समूह इस मायने में महत्त्वपूर्ण हैं कि ये नए रचनाकारों को पहचानने के काम आते हैं। कई युवा रचनाकारों को इन समूहों में मौजूद वरिष्ठ रचनाकारों ने रेखांकित किया और आगे चलकर साहित्य जगत में उनकी अलग पहचान बनी।
वह कहते हैं कि साहित्यिक चर्चाओं के लिए पहले जहां दिन-स्थान और समय तय करना पड़ता था वहीं व्हाट्सऐप समूहों ने इनकी जरूरत समाप्त कर दी है। इन समूहों पर ऐसी वरिष्ठ चर्चाएं चलती हैं जो किसी मायने में वास्तविक संगोष्ठियों से कमतर नहीं होतीं। उदाहरण के लिए उनके समूह पर इन दिनों ‘हम लिखते क्यों हैं?’ विषय पर विभिन्न लेखक लेख लिख रहे हैं जिसे आगे चलकर पुस्तकाकार लाने की योजना है। व्हाट्सऐप पर ही सक्रिय एक अन्य साहित्यिक समूह है ‘सृजन पक्ष’। इस समूह के एडमिन हैं वागीश्वरी सम्मान से सम्मानित कवि सुरेंद्र रघुवंशी। सुरेंद्र रघुवंशी मानते हैं कि व्हाट्सऐप पर सक्रिय साहित्यिक समूह अत्यंत महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हैं। स्वयं उनका समूह साहित्यिक कृतियों की समालोचना में सक्रिय है। वह कहते हैं कि ऐसे वक्त में जबकि व्हाट्सऐप को फिजूल संदेशों और चुटकुलों से पाट दिया गया हो या फिर फेक न्यूज जैसी खतरनाक चीजें इसके माध्यम से प्रसारित की जा रही हों, वैसे में साहित्य सृजन में इसका इस्तेमाल होना अत्यंत सुखद है।
विविध भारती के रेडियो प्रस्तोता यूनुस खान कहते हैं, ‘मैं बहुत सारे ऐसे समूह का हिस्सा हूं जो सिनेमाई संगीत पर गहन विमर्श करते हैं। वहां दुर्लभ कलाकारों और साजिंदों पर भी बातें की जाती हैं। हिंदी सिनेमा और साहित्य को लेकर बहुत सारे व्हाट्सऐप समूह सक्रिय हैं। यह पठन और विमर्श का एक विकल्प बनकर उभरे हैं। कई बार हम व्यस्तता के कारण पत्रिकाओं को नहीं पढ़ पाते। ये समूह हमें उन रचनाओं से गुजरने का मौका देते हैं।’
,साभार- https://hindi.business-standard.com/ से