एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ने वाले 19 साल के बिट्टू कुमार ने कंस्ट्रक्शन साइट से कबाड़ इकट्ठा कर एक प्रोटोटाइप लेजर बैरिकेडिंग डिवाइस बनाई है। बिट्टू का दावा है कि इस डिवाइस से देश की सीमाओं पर होने वाली घुसपैठ का पता लगाया जा सकता है। वैसे भारत-पाक सीमा पर पहले से लेजर वाले बाड़े लगाए गए हैं, लेकिन बिट्टू का कहना है कि उनकी बनाई हुई डिवाइस काफी सस्ती है। ढाई हजार की लागत वाली इस डिवाइस को 'जुगाड़' से बनाया गया है।
लेजर बैरिकेड दो हिस्सों से बनता है जो एक-दूसरे से दूर रहते हैं। एक हिस्से में सेंसर, माइक्रोकंट्रोलर, अडॉप्टर और स्पीकर लगा होता है और दूसरे हिस्से से लेजर बीम निकलती हैं। लेजर किरणें एक छोर से मेन डिवाइस के सेंसर्स तक जाती हैं। यदि किरणों के बीच कोई व्यवधान होता है तो अलार्म बज जाता है। मकैनिकल इंजीनियरिंग के तीसरे साल के छात्र बिट्टू ने कहा कि उनकी लेजर डिवाइस की रेंज 100 मीटर है, लेकिन थोड़ा और पैसा लगाकर वह इसकी सीमा एक किमी तक बढ़ा सकते हैं।
बिहार के सुपौल में रहे बिट्टू का जिला भारत-नेपाल बॉर्डर के काफी नजदीक है। उन्होंने बताया कि जब पुलिस ने जाली करंसी के रैकेट का भांडाफोड़ किया था, तब वह पांचवी कक्षा में थे और तब से ही वह ऐसी डिवाइस बनाना चाहते थे। हालांकि तब उन्हें तकनीक की जानकारी नहीं थी। इससे वह पुलिस और बॉर्डर सिक्यॉरिटी की मदद करना चाहते हैं। बिट्टू मानते हैं कि प्रोटोटाइप की भी सीमाएं होती हैं और वह अपग्रेड्स पर काम कर रहे हैं।
अगले डिवेलपमेंट के तौर पर वह ऐसा सेंसर लगाना चाहते हैं जो घुसपैठ के प्रयास के स्थान का अनुमान लगा सके। अभी यह डिवाइस फर्जी घुसपैठ का पता नहीं लगा सकती। अभी यह डिवाइस यह पता नहीं लगा सकती कि घुसपैठ इंसान द्वारा हो रही है अथवा जानवर द्वारा। अगर कोई चिड़िया भी लेजर किरणों के बीच आती है तो सायरन बज जाता है। बिट्टू का मानना है कि अगर वह इस डिवाइस को मनमुताबिक स्तर तक डिवेलप कर पाए तो यह आर्मी के काफी काम आ सकती है। बिट्टू के इस प्रॉजेक्ट की उनके टीचर्स ने भी काफी सराहना की।