राजनांदगाँव । प्रतिष्ठित साहित्यकार और पत्रकार पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के निधन पर दिग्विजय कॉलेज के प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने भावसुमन अर्पित करते हुए कहा है कि बेटी के बिदा जैसी मार्मिक रचना के सृजेता ने अनगिन चाहने वालों को अलविदा कहकर स्तंभित कर दिया है। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के 75 सृजनशील वर्ष हिंदी और छत्तीसगढ़ी की सर्जना में बिताकर स्व.चतुर्वेदी जी एक तरह से मिथक बन गए । उनके बिछोह की भरपाई संभव नहीं है ।
डॉ. जैन ने चुनिंदा साहित्यिक आयोजनों के अलावा सन 2005-06 में मुक्तिबोध स्मारक और त्रिवेणी परिसर में पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के साथ तीन दिनों तक साझा किए पलों को याद करते हुए कहा कि भाषा पर उनका अद्भुत अधिकार देखते ही बनता था । वे सिर से पांव तक सृजन, संवेदन और अभिव्यक्ति की बेचैनी में डूबे रहते थे । उनका मुस्कराता मुखमण्डल सहज स्नेह की सौगातें दे जाता था । वहीं, उनमें सच के पक्ष में दोटूक कहने का अदम्य साहस भी आजीवन बरकरार रहा । मुक्तिबोध स्मारक की स्थापना और त्रिधारा कार्यक्रम की उन्होंने मुक्त कंठ से सराहना करते हुए उसे सदी की महान उपलब्धि निरूपित किया था । मुक्तिबोध स्मारक समिति और अन्य धुरंधर साहित्यकारों के साथ बड़े प्रेम से तस्वीरें उतरवाई थीं ।
डॉ. जैन ने आगे कहा पंडित चतुर्वेदी जी में छत्तीसगढ़ महतारी की पीड़ा और वेदना की पुकार हर पल ज़िंदा रही। ठेठ छतीसगढ़ी का ठाठ जमाने वाले ऐसे गीतकार, कवि और वक्ता इने गिने ही मिल सकते हैं । दूसरा पहलू यह भी था कि पंडित चतुर्वेदी में गजब का हास्य बोध था । व्यंग्य में भी उनका कोई जवाब नहीं था । साथ ही, डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने यह भी कहा कि एक इंसान के नाते चतुर्वेदी जी का जीवन अत्यंत सादगी से भरा और उनका हृदय करुणा से आपूरित था । पत्रकार के नाते संघर्ष और सृजेता के नाते मानवता के हर्ष के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया । वे अपनी वाणी में सदा जीवित रहेंगे ।