लखनऊ : गुस्से से प्यार का रिश्ता गहरा है। जिस प्यार में गुस्सा नहीं, वह बनावटी है। प्यार में सिर्फ दो तरह के हादसे होते हैं। एक, जिसे हम चाहें, वो हमें ना मिले और दूसरा, जिसे हम चाहें वो हमें मिल जाए। मुझपे दोनों हादसे गुजरे हैं। यह बात लेखक एवं गीतकार मनोज ‘मुंतशिर ने दैनिक जागरण वार्तालाप में ‘प्यार पर केंद्रित शायरी में गुस्से और निराशा की अधिकता को लेकर कही .लखनऊ के गोमती नगर स्थित होटल नोवोटेल में आयोजित जागरण वार्तालाप में गजल गायक डॉ. हरिओम ने सिने गीतकार मनोज ‘मुंतशिर’से उनकी किताब ‘मेरी फितरत है मस्ताना’ पर बात की।
20 साल पहले गौरीगंज (अमेठी) से निकले मनोज शुक्ला मुंबई पहुंचकर मनोज ‘मुंतशिर’ हो गए। गलियां, तेरे संग यारा, कौन तुझे यूं प्यार करेगा, मेरे रश्के कमर, मैं फिर भी तुमको चाहूंगा.. फिल्मी गीतों संग शोहरत की फेहरिस्त लंबी होती गई। बावजूद इसके जुबान, तहजीब और जमीन को नहीं छोड़ा। पहला सवाल उनके शुक्ला से मुंतशिर बनने की कहानी से जुड़ा था। मनोज मुंतशिर बोले, शायरों के तखल्लुस रखने की परंपरा रही है। सागर और साहिर तखल्लुस भी सोचा था, पर हर तखल्लुस आपस में टकरा रहा था। 1995 की सर्दियां थीं। चौक में दद्दन चाय की दुकान पर रेडियो पर शेर सुना,
‘मुंतशिर’ हम हैं तो रुखसार पे शबनम क्यों है, आईने टूटते रहते हैं, इसमें गम क्यों है।।
बस, वहीं से ‘मुंतशिर’ हो गए।
बात प्यार के विस्तार के साथ आगे बढ़ी। डॉ. हरिओम ने पूछा दिल के टूटने और निराशा के अलावा भी दुनिया में कई मुद्दे हैं। इस पर लेखन के प्रश्न पर वो बोले, ये शर्म की बात है कि आज भी लोग भूख से मर रहे हैं। पहले खुलकर लिखा जाता था, आज असहिष्णुता का माहौल है। मैंने लिखा- बच्चों के बस्तों में छुपकर अल्ला जाता है स्कूल मंदिर मस्जिद ढूंढें उसको, हम न करेंगे ऐसी भूल।।
प्रश्न हिंदी में अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग और भाषायी शुद्धता पर भी हुए। इस पर मुंतशिर बोले, जो समझ में आए उसी भाषा का प्रयोग होना चाहिए। फिर भी भाषायी अदब का लिहाज रहता है, क्योंकि :
जैसा बाजार का तकाजा है, वैसा लिखना अभी नहीं सीखा
मुफ्त बंटता हूं आज भी मैं तो, मैंने बिकना अभी नहीं सीखा
एक चेहरा है आज भी मेरा, वो भी कमबख्त कितना जिद्दी है
जैसी उम्मीद है जमाने को, वैसा दिखना अभी नहीं सीखा।।
कार्यक्रम में मनोज मुंतशिर की मां प्रेमा शुक्ला और पिता शिव प्रताप शुक्ला भी मौजूद थे।
जागरण वार्तालाप के बारे में
यह भी अपने तरह का एक अनूठा कार्यक्रम है इस मासिक आयोजन में लेखकों के साथ उसकी नवीनतम कृति पर बातचीत की जाती है, कोशिश ये की जाती है कि साहित्य से जुड़े लोगों के अलावा अन्य क्षेत्र के लोगों को भी आमंत्रित किया जाए ताकि पढ़ने की आदत का विकास हो सके, जागरण वार्तालाप का उद्देश्य पुस्तक और पाठक संस्कृति का विकास करना है.
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संतोष कुमार
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