देश के मूर्धन्य पत्रकार दादा बनारसी दास चतुर्वेदी की याद में मध्यप्रदेश के कुंडेश्वर में विभिन्न भागों से पत्रकार आए और उनकी 126वीं जन्मतिथि पर उनके योगदान पर चर्चा की।
गौरतलब है कि आगरा के पास फिरोजाबाद के निवासी दादा ने कुंडेश्वर से ही राष्ट्रीय स्तर पर पत्रिका ‘मधुकर’ का अनेक वर्षों तक प्रकाशन किया था। उल्लेखनीय बात ये है कि चतुर्वेदी जी को इस बात का श्रेय है कि नेहरू सरकार पर दबाव डालकर भारत में श्रमजीवी पत्रकार क़ानून लागू करवाया और तब जाकर काम के आठ घंटे तय हुए। वे उन दिनों राज्य सभा के सदस्य थे।
उनकी जयंती पर यह आयोजन गर्भनाल न्यास, बुन्देलीमाटी डॉट कॉम और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ने किया था। समारोह में वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र, पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर और राजेश बादल समेत दूर-दूर से आए अनेक पत्रकार मौजूद रहे। माखनलाल चतुर्वेदी विवि से प्रतिकुलपति लाजपत आहूजा, बुन्देलीमाटी से रज्जू राय, गर्भनाल न्यास से आत्माराम शर्मा और दादा चतुर्वेदी के फिरोजाबाद से आए परिजनों ने भी आयोजन की शोभा बढ़ाई। इस अवसर पर ‘हिंदी में प्रवासी साहित्य: आधुनिक संदर्भ और यथार्थ’ विषय पर स्मरण-संवाद आयोजित किया गया। कार्यक्रम में चतुर्वेदी जी के कृतित्व पर केन्द्रित स्मरण-पुस्तक का भी विमोचन हुआ।
स्वागत वक्तव्य देते हुए गर्भनाल न्यास के सचिव आत्माराम शर्मा ने हिंदी समाज की अपने बुजुर्ग साहित्यकारों की अनदेखी करने की वृत्ति को रेखांकित करते हुए कहा, ‘पं. बनारसीदास चतुर्वेदी जी के साहित्यिक अवदान के अलावा सामाजिक सरोकारों को भी स्मरण करना आवश्यक है। चतुर्वेदी जी उन बिरले पत्रकारों में एक थे, जिन्होंने समाज की तकलीफों को न केवल महसूस किया, बल्कि उसे दूर करने के अथक प्रयास किए।‘
उन्होंने कहा, ‘हमें इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आजादी के समय हिंदी की हैसियत के बारे में जो निर्णय लिया गया था, उसे तुरंत लागू न करते हुए कुछ समय के लिए स्थगित किया गया था। लेकिन आज इतने वर्षों बाद उसे उसी स्वरूप में लागू नहीं किया जा सकता। हमें आज संपूर्ण देश के संदर्भ में हिंदी की एक नई भूमिका खोजनी होगी और यह भूमिका सभी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर ही तय की जा सकती है।’
राज्यसभा टीवी के पूर्व एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर और प्रख्यात पत्रकार राजेश बादल ने ‘हिंदी की अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों की सच्चाई’ पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि हिंदी का बाजार तो बढ़ा है, लेकिन उसे बोलने बालों के दिलों में उसका सम्मान घटा है। युवा पीढ़ी अंग्रेजीदा हो गई है, जबकि पुरानी पीढ़ी भारतीय भाषाओं की समर्थक है। इससे संवादहीनता की स्थिति बन गई है। अब यह छुपी हुई बात नहीं रह गई है कि हिंदी सम्मेलनों के नाम पर क्या-कुछ होता है। यह समझने की बात है कि घूमने-फिरने और पिकनिक मनाकर हिंदी का बड़ा हित कभी नहीं किया जा सकता है। उन्होंने इस अवसर पर चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व और कृतित्व को फिल्म के माध्यम से प्रदर्शित करने की आवश्यकता बताई।
प्रख्यात कवि-कथाकार ध्रुव शुक्ल ने ‘दुनियादार होती हिंदी और पं. बनारसीदास चतुर्वेदी’ विषय पर कहा, ‘हमें अपनी जड़ों से ऊर्जा लेते रहना होगा, साथ ही नई और पुरानी पीढ़ी के समन्वय को भी साधना होगा। अगर अंग्रेजी ज्ञान की भाषा है तो हमें हिंदी और सारी भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी के इस ज्ञान को समाहित करना होगा। कुंडेश्वर में जहां पं. चतुर्वेदी जी रहते थे, उस कोठी के एक कक्ष में पंडित जी के नाम पर गैलरी बननी चाहिए, जहां उनके साहित्य और कृतित्व को प्रदर्शित किया जाए।’
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने ‘बाजार के दवाब में आज का पत्रकार’ विषय पर कहा कि पत्रकारिता अब प्रभाव क्षेत्र वाले संदर्भ से ऊपर पहुंच गई है और अब बाजार ने इसका चरित्र ही बदल दिया है। उनका कहना था कि आगामी दशकों में भारत और चीन के अलावा दुनिया में कहीं भी अखबारों का चलन बाकी नहीं बचेगा। उन्होंने विश्वविद्यालय की ओर से कुंडेश्वर में पं. बनारसीदास जी की स्मृति को स्थायी करने में सहयोग का आश्वासन दिया।
माधवराव सप्रे स्मृति समाचार-पत्र संग्रहालय के संस्थापक-संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने ‘हिंदी में प्रवासी साहित्य और उसके मंतव्य’ विषय पर कहा कि प्रवासी साहित्य के नाम पर जो चुनिंदा साहित्य लिखा और प्रचारित किया जा रहा है, उससे कहीं ज्यादा साहित्य अप्रचारित है, जिसे हिंदी समाज के सामने लाने की आवश्यकता है। यह बात जोर-शोर से उठाई जानी चाहिए कि हिंदी के साहित्य को दलित साहित्य, महिला साहित्य और प्रवासी साहित्य जैसे अलग-अलग खण्डों में नहीं बांटा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि डाइट परिसर में पं. चतुर्वेदी जी के व्यक्तित्व की जानकारी स्मृति-पटल के तौर पर दर्ज होनी चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रख्यात पत्रकार अच्युतानंद मिश्र ने ‘आज की पत्रकारिता को बाजार ने कैसे अपने कब्जे में ले लिया है’, इसके अनेक प्रसंग सामने रखे। उन्होंने कहा कि पेड न्यूज से समाचारों की विश्वसनीयता दाव पर लग गई है। समारोह में इस बात पर सैद्धांतिक सहमति बनी कि चतुर्वेदी जी की याद में एक विशाल संग्रहालय बनाया जाए, उन पर एक फ़िल्म का निर्माण हो, उनके लेखन का समग्र पुनर्प्रकाशन हो और उनकी स्मृति में फेलोशिप प्रदान की जाए।
साभार- http://www.samachar4media.com से